आजकल पूरे विश्व में कोरोना का प्रकोप है । विश्व का प्रत्येक देश किसी भी स्थिति में कोरोना से मुक्ति पाने हेतु संघर्ष कर रहा है । अमेरिका और यूरोप में कोरोना के कारण उत्पात मचा है । ये दोनों अपनी दुर्दशा के लिए चीन को ही उत्तरदायी प्रमाणित कर रहे हैं । वे आजकल चीन को सदैव धमकियां और चेतावनियां दे रहे हैं । आगामी संकट को जानकर चीन भी अपनी तैयारी में जुट गया है; परंतु यह तनाव विश्व को तीसरे विश्वयुद्ध की खाई में ढकेल सकता है । इस लेख में इस संदर्भ में मिल रहे प्रबल संकेतों का विस्तृत वर्णन किया गया है ।
१. चीन द्वारा निरंतर किए जा रहे परमाणु परीक्षण !
विश्व को कोरोना में व्यस्त रखकर चीन ने परमाणु परीक्षण किया है, ऐसा कहा जा रहा है । चीन की संस्थाओं ने भूमि के नीचे परमाणु से संबंधित अल्प तीव्रतावाले बम विस्फोट करवाए हैं । अमेरिका की संस्थाओं ने चीन के इस परमाणु परीक्षण की जानकारी दी है; परंतु उनके पास इसका कोई प्रमाण नहीं है । तथापि स्थितिजन्य प्रमाणों के आधार पर चीन ने परीक्षणस्थल लॉप नूर पर परीक्षण किया है । सबसे पहले समाचार पत्र वॉल स्ट्रीट जर्नल में छपे समाचार पर अमेरिका के विदेश मंत्रालय ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि कदाचित चीन लॉप नूर परीक्षण स्थल को संपूर्ण वर्ष जारी रखने की तैयारी में है । उसने वहां बडे-बडे कक्ष (विस्फोटक चेंबर्स) खडे किए हैं । लॉप नूर में चल रहे परमाणु परीक्षण के संदर्भ में पारदर्शिता नहीं दिखाई जाती ।
२. चीन की ओर से तेलसंग्रह में बडी मात्रा में वृद्धि !
२ अ. पिछले कुछ दिनों से प्रकाशित एक समाचार में कहा गया था, चीन युद्ध की तैयारी में व्यस्त है । चीन ने पिछले एक महीने में अपने तेल के आरक्षित संग्रह में बडी मात्रा में वृद्धि की है । विगत कुछ दिनों में कच्चे तेल के भाव गिरे हैं । इसके कारण चीन बडी मात्रा में तेल का संग्रह करने के प्रयास में है । कच्चे तेल की मांग में बडी मात्रा में गिरावट आने से, साथ ही रूस के साथ मूल्य की प्रतियोगिता के कारण सऊदी अरब ने तेल की आपूर्ति बढा दी है । इसके कारण मार्च महीने में यूएस ऑइल फ्यूचर और ब्रेंट व्रूड के भाव विगत १८ वर्षों में पहली बार आधे पर आ गए हैं ।
२ आ. सीएनपीसी के मतानुसार वर्ष २०२० के अंत तक चीन उसके द्वारा आपातकाल में उपयोग किए जानेवाले तेल के आरक्षित संग्रह में ८.५ करोड टन तेल का संग्रह करने के प्रयास में है । यह संग्रह अमेरिका के स्ट्रेटेजिक पेट्रोलियम रिजर्व में (आपातकाल के लिए आरक्षित तेलसंग्रह) रखे जानेवाले तेल के संग्रह से अधिक है । अमेरिका का आरक्षित तेलसंग्रह विश्व का सबसे बडा तेलसंग्रह (बैकअप) है ।
२ इ. समाचार संस्था रॉइटर्स द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार मार्च महीने में चीन ने कच्चे तेल का आयात १२ प्रतिशत से बढाकर ४ करोड ३० लाख मिलियन टन तक किया है । पिछले वर्ष में कच्चे तेल के भाव ५० प्रतिशत से अधिक नीचे आ गए हैं ।
३. चीन की ओर से समुद्र में स्वयं की शक्ति बढाने का प्रयास !
कोरोना संकट में चीन ने समुद्र में अपनी शक्ति दिखाना आरंभ किया है ।
३ अ. दक्षिण चीन सागर में चीन ने मछली पकडनेवाले विएतनाम की एक नौका को धक्का मारकर उसे डुबो दिया । इस डूबी नौका पर ८ लोग काम कर रहे थे । उसके पश्चात चीन ने विएतनाम की २ नौकाओं को अपने नियंत्रण में कर लिया ।
३ आ. जनवरी महीने से फिलिपीन्स के नियंत्रण में पगासा द्वीप के पास लगभग ३० चीनी नौकाएं दिखाई दी हैं ।
३ इ. चीन ने दक्षिण चीन सागर में मनुष्य निर्मित बडे द्वीपों पर २ नए शोध केंद्र आरंभ किए हैं । ये दोनों शोध केंद्र विवादित द्वीप समूह क्षेत्र में फील्ड नेविगेशन और अन्य शोध कर रहे हैं । उन्हें रोकनेवाला अमेरिका अब कोरोना के साथ संघर्ष में व्यस्त है ।
चीन ने विगत अनेक वर्षों से समुद्र में स्वयं का विस्तार करने की नीति चला रखी है; परंतु विश्व को कोरोना के संकट में व्यस्त रखने के पश्चात उसकी गतिविधियां अनेक गुना बढ गई हैं । पहले अमेरिका की नौसेना उसका विरोध करती थी; परंतु अब अमेरिका में कोरोना का प्रकोप बढने के कारण चीन की गतिविधियों से अमेरिका का ध्यान भटक गया है । दक्षिण चीन सागर और पूर्व चीन सागर, इन दोनों स्थानों पर चीन की विस्तारवादी नीति चलती ही रहती है । चीन सदैव दक्षिण चीन सागर पर अपना अधिकार जताता है । वास्तव में इस सागर पर विएतनाम, मलेशिया, फिलिपीन्स, ब्रूनेई और ताईवान का भी अधिकार है । पूर्व चीन सागर में चीन और जापान एक-दूसरे के सामने खडे हो जाते हैं । माना जाता है कि दक्षिण एवं पूर्व चीन सागर खनिज संपत्ति से समृद्ध हैं । विश्व के कार्य की दृष्टि से भी यह जलक्षेत्र महत्त्वपूर्ण है । अब कोरोना संकट का लाभ उठाकर चीन इस प्रदेश पर अपनी पकड मजबूत कर रहा है ।
४. अमेरिका ने चीन को दी परिणाम भोगने की धमकी !
अमेरिका में कोरोना का प्रकोप होने के लिए उसके राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प चीन को उत्तरदायी प्रमाणित कर रहे हैं । एक पत्रकार परिषद में एक पत्रकार ने प्रश्न किया कि क्या चीन उसके कृत्य का परिणाम नहीं भुगतेगा ? उस पर क्षुब्ध होकर ट्रम्प ने कहा, चीन को परिणाम भुगतने नहीं पडेंगे, यह आप कैसे सोच सकते हैं ? उस पर उस पत्रकार ने अगला प्रश्न पूछा कि चीन के विरुद्ध क्या कार्रवाई होगी ? तब ट्रम्प ने उत्तर दिया, चीन को क्या परिणाम भुगतने होंगे, यह मैं आपको नहीं बता सकता । उसने जो किया है, उसके परिणाम अच्छे नहीं है, यह चीन की समझ में आएगा । ट्रम्प के इस वक्तव्य से स्पष्ट है कि अमेरिका चीन से अप्रसन्न है और कारवाई करने के लिए उचित समय की प्रतीक्षा कर रहा है ।
५. चीन के प्रति ब्रिटेन का भी क्षोभ !
एक ओर अमेरिका चीन पर अप्रसन्न है, तो दूसरी ओर ब्रिटेन भी उसकी हुई हानि के कारण चीन को ही उत्तरदायी प्रमाणित कर रहा है । कोरोना से संक्रमित होने की आश्वस्तता होने पर ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉन्सन ने सभी ब्रिटिश परिवारों को एक पत्र लिखा । उसमें उन्होंने चेतावनी दी है किस्थिति ठीक होने के स्थान पर और बिगडेगी । प्रधानमंत्री द्वारा लिखा पत्र कोरोना विषाणु से लडने के संदर्भ में सरकार द्वारा प्रकाशित पुस्तक के साथ डाक के माध्यम से ३ करोड घरों में भेजा गया है । इसके लिए लगभग ५८ लाख पाऊंड (५४ करोड ७२ लाख ७ सहस्र ७१९ रुपए) खर्च हुए हैं । ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ने कहा है कि वे कठोर कदम उठाने से पीछे नहीं हटेंगे और उसके पश्चात स्थिति अच्छी होने की अपेक्षा और बिगड सकती है ।
६. चीन के विरुद्ध कार्रवाई का रूपांतरण युद्ध में !
वैश्विक महासत्ता माने जानेवाले अमेरिका और यूरोप के देश उनके समाप्त हो रहे वर्चस्व को लेकर चिंता में हैं । अभी तक वे वैश्विक महाशक्तियां और शक्तिशाली देश माने जाते थे । यह उन्हें जब प्रतीत होता था, तब वे किसी भी देश की ओर आंख उठाकर उनपर प्रतिबंध लगा देते थे; परंतु आज उन्होंने कोरोना के सामने घुटने टेक दिए हैं । विश्व पर आर्थिक नियंत्रण रखनेवाले फ्रान्स, जर्मनी, ब्रिटेन, स्पेन और यूरोप एवं पश्चिम के सभी देश आज कोरोना के प्रकोप से त्रस्त हैं । उसके कारण यूरोपीयन देश और अमेरिका का विश्व में जो वर्चस्व था, वह अब चीन के पास जाता दिखाई दे रहा है । जो देश विश्व की व्यवस्था और आर्थिक नीति के संचालक थे, आज उन पर नाक रगडने की स्थिति आ गई है । अतः कोरोना का संकट समाप्त होते ही अमेरिका और यूरोप किसी भी क्षण चीन के विरुद्ध दंडजन्य कारवाई कर सकते हैं और अंततः उसका रूपांतरण युद्ध में हो सकता है ।
७. दक्षिण चीन समुद्र में चीन को रोकने
हेतु अमेरिका द्वारा भारत को क्षेपणास्त्रों की आपूर्ति !
कोरोना संकट की स्थिति में भी चीन की विस्तारवादी नीति देखकर यूरोप और अमेरिका को भारत से बहुत अपेक्षाएं हैं । महामारी का संकट होते हुए भी अमेरिका ने भारत को १ सहस्र १७८ करोड रूपए के हारपून और टॉरपैडो क्षेपणास्त्र बेचने का निर्णय लिया ।
चीन के कारण समुद्र में उत्पन्न संकट को ध्यान में रखते हुए यह निर्णय लिया गया । वहां के रक्षा मंत्रालय ने अमेरिका के विदेश मंत्रालय द्वारा इस अनुबंध की अनुमति दिए जाने की जानकारी दी है । अमेरिका के प्रसारमाध्यमों द्वारा प्रकाशित एक ब्यौरे में कहा गया है कि इन क्षेपणास्त्रों के कारण भारत को क्षेत्रीय चुनौती का सामना करने में सहायता मिलेगी ।
अमेरिका की डिफेन्स सिक्युरिटी कॉर्पोरेशन एजेन्सी ने अमेरिका के संसद में इस अनुबंध की जानकारी दी है । वर्ष २०१६ में अमेरिका ने भारत को रक्षा से संबंधित प्रमुख मित्र की श्रेणी प्रदान की थी ।
अमेरिका के रक्षा मंत्रालय के मत के अनुसार हारपून क्षेपणास्त्र के माध्यम से हवा से समुद्री सीमा पर ध्यान रखने के साथ ही किसी भी संदेहजनक नौका को लक्ष्य बनाकर आक्रमण किया जा सकता है । पेंटैगॉन के मतानुसार इसके कारण अमेरिका और उनके सहयोगी देशों को संवेदनशील समुद्री क्षेत्रों पर ध्यान रखना और सहयोग बढाने में सहायता मिलेगी । दक्षिण चीनी समुद्र में चीन की विस्तारवादी नीति पर रोक लगाना ही इस अनुबंध का मुख्य उद्देश्य है ।
८. संभावित विश्वयुद्ध की पृष्ठभूमि पर
अमेरिका के नागरिकों द्वारा बडी मात्रा में शस्त्रों की खरीद !
आगामी विश्वयुद्ध के संकट का अनुमान होने से अमेरिका की जनता परेशान है । इस महामारी के समय अमेरिका ने बडी मात्रा में शस्त्रों की खरीद की है, यह उनकी परेशानी का एक और कारण है; क्योंकि अमेरिका की ओर से मार्च महीने में जो खरीद की गई, वह विगत २० वर्षों में सबसे अधिक है । एफबीआई (फेडरल ब्युरो ऑफ इंवेस्टीगेशन) के दिए आंकडों से यह समझ में आता है कि इस मार्च महीने में २० लाख से भी अधिक शस्त्र (फायर आर्म्स) खरीदे गए ।
अमेरिका के कुछ प्रांतों में शस्त्र खरीद के लिए भागदौड आरंभ होने जैसी स्थिति है । अमेरिका ने इलिनॉय प्रांत में सबसे अधिक शस्त्रों की खरीद की है । इसके पश्चात टेक्सास, केंटुकी, फ्लोरिडा और कैलिफोर्निया का क्रम आता है । जानकारों का मत है कि अमेरिका में कोरोना का संकट समाप्त होने के पश्चात विश्व युद्ध जैसी स्थिति बनी, तो वहां की सिविल सोसाईटी अर्थात दमकल विभाग, पुलिस बल और स्वास्थ्य सेवाएं लाचार हो सकती हैं और उससे अमेरिका में विधि-व्यवस्था बिगड सकती है । ऐसी स्थिति में स्वरक्षा हेतु शस्त्र खरीदना एक उचित उपाय सिद्ध हो सकता है ।
९. कोरोना का संकट समाप्त होते ही संपूर्ण विश्व चीन
पर टूट पडेगा और इस संघर्ष का रूपांतरण विश्वयुद्ध में होगा !
९ अ. संयुक्त राष्ट्रसंघ एवं विश्व बैंक के आंकडों के अनुसार अमेरिका के पश्चात चीन विश्व के दूसरे क्रम की अर्थव्यवस्था है । चीन की महत्त्वाकांक्षी सरकार स्वयं को पहले क्रम पर लाने की इच्छा रखती है और यह चीन का बहुत पुराना स्वप्न भी है ।
चीन में कोरोना विषाणु होने की बात नवंबर २०१९ के अंत में ज्ञात हुई; परंतु उसके पहले कितने महीने तक चीन ने इसकी जानकारी छिपाकर रखी । साथ ही यह विषाणु लंबे समय तक हवा में टिका रह सकता है, चीन इस वास्तविकता को अस्वीकार करता रहा ।
९ आ. संयुक्त राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद ने जब कोरोना के संबंध में पारदर्शिता रखने हेतु बैठक करने का निर्णय लिया, तब चीन ने अपना वेटो (नकाराधिकार) उपयोग कर यह बैठक नहीं होने दी ।
९ इ. कोरोना का प्रकोप जब पहले चरण में था, तभी सभी देशों ने राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय विमान सेवाएं बंद करने हेतु उचित कदम उठाने के प्रयास किए; परंतु चीन ने उसमें अडंगा डाला । इस संकेत से यह स्पष्ट होता है कि कोरोना के समर्थन में चीन अपनी विस्तारवादी नीति को बल देने का प्रयास कर रहा है । अमेरिका और यूरोप ने भी चीन के इस कुटिल षड्यंत्र को समझ लिया है; परंतु आजकल वे कोरोना के विरुद्ध संघर्ष करने में व्यस्त हैं । इसके कारण कोरोना का संकट समाप्त होते ही संपूर्ण विश्व चीन पर टूट पडेगा और इस संघर्ष का रूपांतरण विश्वयुद्ध में होने से कोई नहीं रोक सकता ।