भोजन बनाते समय विविध कृतियों में कैसा भाव रखें ?

कहते हैं ‘जैसा अन्न, वैसा मन’ । अर्थात भोजन बनाते समय हमारे मन में जैसा भाव होगा, वैसा ही भाव खानेवाले के मन में भी निर्माण होता है । पता है घरों में महिलाओं को ही भोजन बनाने की सेवा क्यों होती है । क्योंकि जिस भाव से मां अपने पुत्र को, बहन अपने भाई को और पत्नी अपने पति को भोजन कराती है, प्राय: वह भाव पुरुषों में नहीं होता । इसलिए महिलाओं का यह उत्तरदायित्व है कि हमारा अन्न पौष्टिक होने के साथ ही सात्विक भी हो । अगर हम मन में व्यवहारिक विचार, किसी के प्रति क्रोध इत्यादि के विचार लेकर भोजन बनाएंगे, तो वैसे ही विचार भोजन ग्रहण करनेवालों के मन में भी आएंगे । परंतु यदि हम भावपूर्ण भोजन बनाएंगे, तो वह भोजन प्रसाद स्वरूप होगा । इसलिए अब हम अपनी रसोई बनाते समय कैसा भाव रखेंगे, यह देखते हैं ।

 

भोजन बनाने से पहले

मैं भोजन बनाने जा रही हूं । आज मैं भावपूर्वक भोजन बनाने का प्रयास करनेवाली हूं । मैंने ऐसे भाव रखा है कि मेरी जो रसोई है, वह सीता माता की रसोई है । इस रसोई में सीता माता ने पहले भोजन बनाया है और अब मुझे उस रसोई में प्रसाद बनाने का सौभाग्य मिला है ।

 

अन्नपूर्णामाता से प्रार्थना

मेेरी रसोई में अन्नपूर्णा माता की छोटी-सी मूर्ति / छायाचित्र है । मैंने उनके आगे दीपक /अगरबत्ती जलाई हैै और उनसे प्रार्थना की है कि हे अन्नपूर्णा माता ! आपकी कृपा से ही मेरे घर में अन्न-धान्य और शाक – सब्जियां सब उपलब्ध हैं । जिससे हम अपना भरण-पोषण कर पा रहे हैं । हे अन्नपूर्णा माता ! यह भोजन मैं बनाने जा रही हूं । आप ही मुझसे यह भोजन प्रसादस्वरूप में बनवा लीजिए जिसे ग्रहण कर, मेरे परिवार के सभी सदस्यों को इस प्रसाद का चैतन्य प्राप्त हो और वे निरोगी रहें ।

अब मैंने प्रसाद बनाने की तैयारी आरंभ की है, भोजन बनाते समय मैं अपनी कुलदेवी का नामजप कर रही हूं ॥ श्री कुलदेवतायै नम: । श्री कुलदेवतायै नम: ॥ और आटा गूंदकर, रोटियां बेलने की तैयारी करते समय ऐसा भाव रख रही हूं कि इनसे जो रोटियां बनेंगी, वे मैं अपनी कुलदेवी को अर्पण करनेवाली हूं और देवीमां उससे हमें राष्ट्र और धर्मतेज निर्माण करने की शक्ति देनेवाली हैं ।

 

बर्तनों के प्रति भाव

उपयोग में आनेवाले सभी बर्तनों को हाथ लगाते समय बार-बार यही स्मरण हो रहा है कि इन बर्तनों का उपयोग मेरे कुलदेवी के लिए /इष्ट देवता के लिए भोग बनाने के लिए हो रहा है । मुझे इसे अच्छे से स्वच्छ करके ही इसका उपयोग करना है । प्रसाद बनकर तैयार हो गया है अब मैं अपने घर के सभी सदस्यों के माध्यम से सभी देवी-देवताओं को भोग लगा रही हूं । ऐसा भाव रख उन्हें भोजन परोस रही हूं । यह सब करने से मुझे भान हो रहा है कि मेरे अंदर बहुत स्थिरता और आनंद-सा लग रहा है । तभी मुझे भान हुआ कि भाव से कृति करने के कारण ही मुझमें यह बदलाव आ रहा है ।

मुझसे भावपूर्ण रसोई बनवाकर ली, इसलिए मैं अन्नपूर्णा मां को कृतज्ञता व्यक्त कर रही हूं ।

हमने देखा कि हम भावपूर्ण रसोई बनाने का कैसे प्रयास कर सकते हैं । अब हम यह भी जानेंगे कि इसके ही साथ हम रसोई बनाने की कृतियों और वस्तुओं से प्रार्थना कैसे कर सकते हैं ।

 

रसोई बनाने के पूर्व प्रार्थना

हे अन्नपूर्णा माता, आपकी कृपा से मेरे द्वारा जो भी रसोई बने वह सात्त्विक हो । यह अन्न ग्रहण कर परिवारजनों का स्वास्थ्य अच्छा रहने दीजिए ।

अग्नि देवता – हे अग्नि देवता ! अपना तेजतत्व भोजन में निर्माण होने दें । इससे हमारे दोष अहं नष्ट कर, हमारा मन निर्मल कीजिए ।
जल देवता – आपके समान निर्मलता और सभी से एकरूप होने का गुण मुझमें भी निर्माण होने दें ।

अन्न देवता – आपके हर अंश से मुझे प्रभु का नाम लेने की शक्ति मिले और मुझे आरोग्य प्राप्त हो ।

सब्जी – आप जिसप्रकार अपना सर्वस्व का त्याग कर लोगों को भोजन के माध्यम से सुख देती हो, वैसा ही त्याग करने की वृत्ति मुझमें भी निर्माण करें ।

भोजन बनानेवाले बर्तन – आप स्वयं तप कर, हमें स्वादिष्ट और पौष्टिक भोजन देते हो, वैसे ही कष्ट उठाकर दूसरों को आनंद देने का गुण मुझमें निर्माण करें ।

भोजन करने से पूर्व प्रार्थना – इस प्रसाद के प्रत्येक कण से मेरे अंदर ईश्‍वर के प्रति भाव निर्माण हो । मुझे शक्ति, चैतन्य और आरोग्य प्राप्त हो ।

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