देवपूजा होने के उपरांत हम आरती करते हैं । आज भागदौड के युग में हम नियमित आरती नहीं कर पाते, तब भी शुभदिन अर्थात नवरात्री, दिवाली आदि के समय हम आरती करते ही हैं । बहुत लोग प्रतिदिन भी आरती करते हैं, पर समय के अभाव अथवा अन्य किसी कारण से जल्दी-जल्दी करते हैं । परंतु आज हम आरती योग्य पद्धति से कैसे करनी चाहिए ? आरती करते समय कैसे भाव रखें ? तो आज हम ईश्वर को आरती के माध्यम से कैसे पुकारें, यह जान लेंगे ।
आरती का महत्त्व
उपासक के हृदय में भक्ति का तेज जगाने के लिए तथा देवता का कृपाशीर्वाद प्राप्त करने के लिए सबसे अधिक सरल मार्ग है आरती । हम जो आरती गाते हैं, वह संतों के संकल्प से बनी हैं । ऐसी आरतियों को जब हम शास्त्रोक्त पद्धति से, अंतर्मन से, लगन से व भाव के साथ गाते हैं तभी हमारा आरती गाने का उद्देश्य सफल होता है ।
जीव जब अंत:करण में ईश्वर के गुणों का स्मरण करता है, तब जिस भावलहरी का निर्माण होता है, उसे आरती कहते हैं ! कलियुग में आरती का इतना महत्त्व क्यों है ? कई लोगों के मन में प्रश्न उठता है कि ईश्वर क्या है ? ईश्वर कहां है ? ईश्वर दिखता क्यों नहीं ? आरती का अर्थ है, ईश्वर को आर्तता से बुलाना ! अत: इसप्रकार भावपूर्ण आरती करने से निश्चित ही ईश्वर हमें किसी न किसी प्रकार से दर्शन देते हैं । देवता स्तुतिप्रिय तथा दयानिधान हैं । उनकी स्तुति के रूप में आरती गाने पर वह भक्त पर प्रसन्न हो जाते हैं और उस पर अनुग्रह करते हैं । आरती की रचना संतों ने अथवा उनके भक्तों ने की है । आरती बोलने से हमें उन संतों के संकल्प और आशीर्वाद का भी लाभ होता है । आरती गाने पर हमें देवताओं के चैतन्य और शक्ति का भी अधिक लाभ होता है ।
आरती के गाने से नादतरंगें भी निर्माण होती हैं, जिससे हमारे परिसर की शुद्धि होती है और वहां का वातावरण सात्त्विक बनता है ।
आरती कब करनी चाहिए ?
आप सब अपने घर में आरती करते ही होंगे । कुछ एक समय तो कुछ दो समय आरती करते हैं । पर सही में आरती कब करनी चाहिए ?
आरती सुबह और शाम, दोनों समय करनी चाहिए । सूर्योदय के समय के चैतन्य का स्वागत उपासक को सुबह की आरती से करना चाहिए । इससे दिनभर देवता का स्मरण भी रहेगा और आनंद मिलेगा । सूर्यास्त के समय वातावरण में रज-तम बढ जाता है, उसका हमें कष्ट न हो इसलिए हम शाम की आरती करते हैं । इसलिए हमारे धर्मशास्त्र में दो समय आरती करने के लिए कहा है ।
आरती कैसे बोलें ?
आरती गाते समय उसे केवल न गाते हुए अपितु आर्तता से भावपूर्ण गानी चाहिए । आरती करने में सबसे अधिक महत्त्व भाव को है । आरती करते समय ईश्वर के प्रति जितना भाव होगा, आरती उतनी ही सात्त्विक और भावपूर्ण होगी, और वही आरती ईश्वर तक पहुंचती है । इसलिए प्रत्येक जीव को आरती भावपूर्ण करने का ही प्रयत्न करना चाहिए । अत: आरती एक लय में, मधुर स्वर में और भावपूर्ण ही गाएं ।
कोई भी गीत गाते समय शब्दों के उच्चार को महत्त्व है । यदि अपना उच्चार योग्य पद्धति से होगा, तो भाव की निर्मिति होकर सहज अपनी प्रगति हो सकती है । उसके साथ ही अपने मन को आनंद भी होता है । आंतरिक शांति पाने के लिए हम प्रयत्नरत होते हैं, जबकि वह आंतरिक शांति उस समय ही अनुभव होती है ।
आरती कहते समय आरती का अर्थ समझ कर लेना
हमें पता है कि अधिकतर आरतियां किसी संत अथवा उनके किसी उन्नत भक्त द्वारा रचित हैं । बहुत बार उच्च संतों द्वारा रचित आरतियों का अर्थ समझना हमारे लिए कठिन होता है । परंतु, हमें उसका अर्थ समझकर लेना चाहिए । क्योंकि अर्थ समझकर जब हम आरती गाते हैं तो देवता के प्रति शीघ्र भाव निर्माण होता है । इसलिए हमें आरती का अर्थ नहीं पता है, तो वह हमें समझकर लेना है । तब आरती करते समय ऐसा लगता है कि प्रत्यक्ष वहां ईश्वर उपस्थित हैं, यह भाव जागृत होता है और उसके चैतन्य का लाभ भी हमें होता है ।