सारिणी
- १. देवताके चरणोंमें लीन भावसे नमस्कार करना
- २. देवताको नमस्कार करते समय पुरुषोंद्वारा सिरसे टोपी उतारना
- ३. देवताको नमस्कार करते समय स्त्रियोंद्वारा अपना सिर आंचलसे ढकना
- ४. कोई भी वस्तु देवताके चरणोंमें अर्पण करें
- ५. देवालयके गर्भगृहमें प्रवेश निषिद्ध होनेका कारण
- ६. धर्मशास्त्रके अनुसार
१. देवताके चरणोंमें लीन भावसे नमस्कार करना
देवताके दर्शन करते समय उनके चरणोंमें लीन होनेका भाव रखें । उनके रूपको अपने नेत्रोंमें संजोनेका प्रयत्न करें । इससे शरीरके सभी अवधान देवताकी मूर्तिपर केंद्रित होते हैं, अपनी स्थूल देहका विस्मरण हो जाता है । साथ ही प्राणमयकोष तथा मनोमयकोषमें सत्त्वकणोंकी प्रबलता बढती है एवं अष्टसात्त्विक भाव जागृत होते हैं ।
२. देवताको नमस्कार करते समय पुरुषोंद्वारा सिरसे टोपी उतारना
देवताके प्रत्यक्ष दर्शनके समय टोपी धारण किए हुए पुरुष अपनी टोपी उतार दें । नमस्कार करते समय भ्रूमध्य अर्थात आज्ञाचक्रपर तथा छातीके पास अर्थात अनाहतचक्रपर हाथोंकी उंगलियोंका स्पर्श होता है । उस समय जो मुद्रा बनती है, उस कारण नमनकर्ताका आज्ञाचक्र जागृत हो जाता है – तथा छातीके पास अर्थात इस कारण शरीरमें सात्त्विकता अधिक मात्रामें प्रवेश कर सकती है । अनेक बार कुंडलिनीकी जागृतिके कारण सिरके माध्यमसे भी सत्त्वतरंगें शरीरमें आने लगती हैं । इन तरंगोंको ग्रहण करने हेतु पुरुष अपना सिर न ढकें ।
३. देवताको नमस्कार करते समय स्त्रियोंद्वारा अपना सिर आंचलसे ढकना
कुंडलिनीकी जागृतिके कारण सिरके माध्यमसे भी सत्त्वतरंगें शरीरमें आने लगती हैं; परंतु अनेक बार अनिष्ट शक्तियां इसका अनुचित लाभ उठानेका प्रयास करती हैं तथा वे सत्त्वतरंगोंमें काली शक्ति मिश्रित करती हैं । पुरुषोंकी अपेक्षा स्त्रियां अधिक संवेदनशील होती हैं तथा स्त्रियोंकी कुंडलिनीजागृतिकी क्षमता न्यून होती है । इसके कारण पुरुषोंकी तुलनामें स्त्रियोंपर काली शक्तिका प्रभाव एवं परिणाम अधिक होता है, तथा इससे उन्हें कष्ट हो सकता है । इसलिए स्त्रियां नमस्कार करते समय सिरपर आचल लें । इससे सिर तथा तरंगोंके बीच वस्त्रकी बाधा होती है तथा अनिष्ट स्पंदन शरीरमें प्रवेश नहीं कर पाते । इससे यह स्पष्ट होता है, कि ईश्वर प्रत्येक व्यक्तिका कितना ध्यान रखते हैं ।
४. कोई भी वस्तु देवताके चरणोंमें अर्पण करें
यदि मूर्ति दूर हो, तो ‘मूर्तिके चरणोंमें अर्पण कर रहे हैं’, ऐसा भाव रखकर देवताके सामने रखी थालीमें रखें; परंतु देवताके शरीरपर न फेंकें । कोई भी वस्तु देवताके चरणोंमें अर्पण करनेको कारण देवालयमें कुछ लोग दूरसे मूर्तिपर चढावन, उदा. पैसे, पुष्प आदि फेंकते हैं । उन्हें लगता है, कि, उनके द्वारा अर्पित वस्तु देवताके चरणोंमें गिरे; परंतु ऐसा करना अनुचित है । यदि हमें कुछ देते समय कोई वह वस्तु हमारे शरीरपर फेंके, तो क्या हमें अच्छा लगेगा ? हम किसी गरीब याचकका भी, कुछ फेंककर अपमान नहीं करते, उसके हाथोंमें कुछ रख देते हैं । ऐसेमें देवताके शरीरपर वस्तु फेंकना पूर्णतः अनुचित है ।
५. देवालयके गर्भगृहमें प्रवेश निषिद्ध होनेका कारण
कई देवालयोंके गर्भगृहमें दर्शनार्थियोंके लिए प्रवेश निषिद्ध होता है । इसका कारण यह है, कि ‘देवालयके गर्भगृहमें’ देवताका प्रमुख शक्तिस्रोत होता है । यहांसे सर्वत्र चैतन्य प्रक्षेपित होता है । यह चैतन्य सामान्य दर्शनार्थीको सहन नहीं होता । इसलिए सामान्यजनोंको गर्भगृहमें प्रवेश नहीं दिया जाता । इसके साथही सामान्य व्यक्तिके रज-तम प्रधान होनेके कारण गर्भगृहकी सात्त्विकता अल्प होनेकी आशंका रहती है ।
६. धर्मशास्त्रके अनुसार
मुख्य देवताके प्रत्यक्ष दर्शन करनेके उपरांत अग्निदेवताके दर्शन एवं सूर्यदेवताके दर्शन कर पुनः मुख्य देवताके दर्शन करते हैं । मुख्य देवताके दर्शनके उपरांत अग्निदेव एवं सूर्यदेवके दर्शन कर, पुन: मुख्य देवताके दर्शन करना । इसका प्रतीकात्मक अर्थ इस प्रकार है, प्रारंभमें मुख्य देवताके दर्शन करना अर्थात निर्गुण तत्त्वतक जाकर पुन: कनिष्ठ देवताके, अर्थात् अग्निदेव एवं सूर्यदेवके माध्यमसे सगुण कार्य करना, तदुपरांत मुख्य देवताके दर्शन करना अर्थात् मूल निर्गुण तत्त्वमें विलीन होना है । इसीको देवताका ‘अद्वैत-द्वैत सिद्धांत’ अथवा ‘ब्रह्मांडका एक चक्र’ कहते हैं । ‘अद्वैतसे द्वैतमें आना एवं पुन: अद्वैतमें जाना’, इस संपूर्ण चक्रके माध्यमसे ईश्वर ब्रह्मांडके लिए कार्य करते हैं ।’
संदर्भ – सनातनका ग्रंथ – ‘देवालयमें दर्शन कैसे करें ?’