वार यह शब्द ‘होरा’ शब्द से बना है । होरा अर्थात ‘अहोरात्र’, जिसका अर्थ होता है ‘सूर्योदय से दूसरे दिन के सूर्योदय तक ।’ होरा अर्थात घंटा । अहोरात्र अर्थात २४ घंटे । प्रत्येक होरा एक-एक ग्रह का होता है । ज्योतिषशास्त्र की दृष्टि से सूर्योदय के समय जिस ग्रह का होरा होता है, उसका नाम उस दिन के वार को दिया जाता है । वार का प्रारंभ सूर्योदय से होता है ।
श्रीमती प्राजक्ता जोशी
१. वारों का क्रम निश्चित होने का कारण
‘मंदात् शीघ्रपर्यंतम् होरेशा:’ का अर्थ मंद गति के ग्रह से शीघ्र गति के ग्रह तक होरे चालू रहते हैं । पृथ्वी की अंर्तकक्षा में बुध और शुक्र ग्रह की भ्रमणगति अधिक है । पृथ्वी की बाह्य कक्ष के ग्रह जितने दूर है, उतनी उनकी गति मंद होने के कारण उन्हें ‘मंद ग्रह’ कहते हैं, उदा. शनि इस मंद ग्रह को एक राशि का भ्रमण पूर्ण करने में ढाई वर्ष की कालावधि लगती है । चंद्र (सोम) इस शीघ्र ग्रह को एक राशि का भ्रमण पूर्ण करने में सव्वा दो दिन की कालावधि लगाता है । ग्रह के सूर्य के आसपास घूमने की गति से उसका राशि में भ्रमण समझ में आता है ।
२. मंद ग्रह से शीघ्र ग्रह का क्रम
शनि, गुरु, मंगल, रवि, शुक्र, बुध, चंद्र (सोम), उदा. शनिवार को प्रथम होरा (घंटा) शनि ग्रह का, दूसरा गुरु, तीसरा मंगल, चौथा रवि, पांचवा शुक्र, छठा बुध, सातंवा चंद्र इन ग्रहों को होता है । इस अनुसार तीन वार, अर्थात २१ होरा (घंटे) होने पर २२ वां पुन: शनि का, २३ वां गुरु का और २४ वा मंगल का, ऐसे २४ घंटे पूर्ण होने पर दूसरे दिन अगले होरे में सूर्योदय होता है । इस अनुसार शनिवार के उपरांत रविवार आता है ।
३. होरा कोष्टक
टीप | रविवार | सोमवार | मंगलवार | बुधवार | गुरुवार | शुक्रवार | शनिवार |
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१ | रवि | चंद्र | मंगल | बुध | गुरु | शुक्र | शनि |
२ | शुक्र | शनि | रवि | चंद्र | मंगल | बुध | गुरु |
३ | बुध | गुरु | शुक्र | शनि | रवि | चंद्र | मंगल |
४ | चंद्र | मंगल | बुध | गुरु | शुक्र | शनि | रवि |
५ | शनि | रवि | चंद्र | मंगल | बुध | गुरु | शुक्र |
६ | गुरु | शुक्र | शनि | रवि | चंद्र | मंगल | बुध |
७ | मंगल | बुध | गुरु | शुक्र | शनि | रवि | चंद्र |
८ | रवि | चंद्र | मंगल | बुध | गुरु | शुक्र | शनि |
९ | शुक्र | शनि | रवि | चंद्र | मंगल | मंगल | गुरु |
१० | बुध | गुरु | शुक्र | शनि | रवि | चंद्र | मंगल |
११ | चंद्र | मंगल | बुध | गुरु | शुक्र | शनि | रवि |
१२ | शनि | रवि | चंद्र | मंगल | बुध | गुरु | शुक्र |
१३ | गुरु | शुक्र | शनि | रवि | चंद्र | मंगल | बुध |
१४ | मंगल | बुध | गुरु | शुक्र | शनि | रवि | चंद्र |
१५ | रवि | चंद्र | मंगल | बुध | गुरु | शुक्र | शनि |
१६ | शुक्र | शनि | रवि | चंद्र | मंगल | बुध | गुरु |
१७ | बुध | गुरु | शुक्र | शनि | रवि | चंद्र | मंगल |
१८ | चंद्र | मंगल | बुध | गुरु | शुक्र | शनि | रवि |
१९ | शनि | रवि | चंद्र | मंगल | बुध | बुध | शुक्र |
२० | गुरु | शुक्र | शनि | रवि | चंद्र | मंगल | बुध |
२१ | मंगल | बुध | गुरु | शुक्र | शनि | रवि | चंद्र |
२२ | रवि | चंद्र | मंगल | बुध | गुरु | शुक्र | शनि |
२३ | शुक्र | शनि | रवि | चंद्र | मंगल | बुध | गुरु |
२४ | बुध | गुरु | शुक्र | शनि | रवि | चंद्र | मंगल |
पंचागों में होरा कोष्टक दिया होता है; परंतु पंचांग न हो, तो उपरोक्त नियम के अनुसार होरा ध्यान में रखना सुलभ होता है । पंचागों का होरा कोष्टक निम्नानुसार है ।
टीप : सूर्योदय से घंटे
४. होरों के अनुसार किए जानेवाले कृत्य
होरा | कृत्य |
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१. रवि | राजसेवा और औषधि लेना |
२. चंद्र | सभी कार्य |
३. मंगल | युद्ध और वादविवाद |
४. बुध | ज्ञानार्जन |
५. गुरु | शुभकार्य |
६. शुक्र | यात्रा |
७. शनि | संपत्ती का संग्रह करना |
प्रत्येक होरे में निर्धारित कृत्य करने पर उनका अधिक लाभ होता है ।’