१. ‘गुरुपुष्यामृत योग’ का अर्थ क्या है ?
‘गुरुवार को पुष्य नक्षत्र होने पर ‘गुरुपुष्यामृत योग’ होता है । इस दिन सुवर्ण खरीदना और शुभकार्य करने की प्रथा है ।
२. वर्ष २०२० में ‘गुरुपुष्यामृत योग’
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इस वर्ष चार ‘गुरुपुष्यामृत योग’ हैं । उनकी तिथि और उनकी कालावधि आगे दिएनुसार है ।
अ. चैत्र शुक्ल पक्ष नवमी (२.४.२०२०) : सायं. ७.२८ (१९.२८) से लेकर अगले दिन सूर्योदय तक था ।
आ. वैशाख शुक्ल पक्ष सप्तमी (३०.४.२०२०) : सूर्योदय से लेकर अगले दिन प्रात:१.५३ (२५.५३) तक
इ. ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष षष्ठी (२८.५.२०२०) : सूर्योदय से लेकर सवेरे ७.२७ तक
ई. मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष प्रतिपदा (३१.१२.२०२०) : सायं. ७.४९ (१९.४९) से लेकर अगले दिन सूर्योदय तक
३. वर्ष २०२० में ‘गुरुपुष्यामृत योग’की विशेषताएं !
अ. २.४.२०२० और ३१.१२.२०२० को ‘गुरुपुष्यामृत योग’ सूर्यास्त के उपरांत आरंभ होकर सूर्योदय को समाप्त होता है । सूर्यास्त के उपरांत होने से इस योग का बहुत अधिक लाभ नहीं होता ।
आ. इस वर्ष होनेवाले सर्व गुरुपुष्यामृत योगों में गुरु ग्रह मकर राशि में होगा । मकर राशि (नीच राशि) गुरु ग्रह के लिए अशुभ होती है । सुवर्ण खरीदी करने के लिए यह ‘गुरुपुष्यामृत योग’ बहुत लाभदायी नहीं । इस काल में शारीरिक कष्ट और आर्थिक मंदी के संकट की संभावना होती है ।
यह सर्व ‘गुरुपुष्यामृत योग’ साधना के लिए अनुकूल हैं; इसलिए कि गुरु ग्रह मकर राशि में होते हुए आध्यात्मिक कष्ट होने की संभावना अधिक होती है । इसके लिए साधकों को ‘गुरुपुष्यामृत योग’पर सुवर्ण खरीदने के स्थान पर अधिकाधिक साधना करना आवश्यक है । अपने जीवन का सोना बनाने के लिए गुरु का आज्ञापालन कर, अष्टांग साधना का शुभकार्य करने का प्रयत्न करेंगे ।’