सिंधुदुर्ग जिले के देवगड तालुका में श्रीक्षेत्र कुणकेश्वर को कोकण की काशी संबोधित करते हैं । काशी में १०८ शिवलिंग हैं, तो कुणकेश्वर में १०७ शिवलिंग हैं । ऐसे पवित्र स्थान की संक्षिप्त जानकारी प्रस्तुत लेख में दे रहे हैं ।
संकलक : श्री. विजय पवार, देवगड, जि. सिंधुदुर्ग
श्रीक्षेत्र कुणकेश्वर भगवान के मंदिर कुणकेश्वर गांव में समुद्र के किनारे पहाडी की तलहटी पर स्थित हैं । मंदिर की ऊंचाई ७० फुट है । कोकण के अन्य प्रसिद्ध भगवान शंकर के स्थानों में इसकी गणना होती है । कुणक अर्थात कणक नामक वृक्षों के बाग वहां थे । इस पर कुणकेश्वर नाम प्रचलित हुआ है ।
आख्यायिका
एक ब्राह्मण की एक गाय चरते हुए प्रतिदिन वर्तमान में श्री कुणकेश्वर मंदिर के परिसर में आती थी । वह घर पर कभी दूध नहीं देती थी । इस बात को जानने के लिए ब्राह्मण ने गाय का पीछा किया । उसने देखा वह इस स्थान पर आते ही एक स्वयंभू पाषाण पर दूध की धार बहने लगती थी । उसने अपने हाथ की लाठी से उस पाषाण पर प्रहार किया । उसी क्षण पाषाण से एक टुकडा टूटा और वहां से रक्त बहने लगा । यह देख वह ब्राह्मण आश्चर्यचकित हो गया और उस पाषाण की क्षमायाचना कर, वहां प्रतिदिन दिया-बाती कर उसकी पूजा करने लगा । तदुपरांत यह समाचार फैलने लगा । वर्तमान में इस स्थान को श्रीक्षेत्र कुणकेश्वर के नाम से जाना जाता है ।
श्री देव कुणकेश्वराचा इतिहास
श्री देव कुणकेश्वर का स्थान इ.स. ११ वीं शताब्दी से पूर्व ही प्रसिद्ध था । ऐसा उल्लेख है कि श्री देव कुणकेश्वर के संदर्भ में नागदेव ताम्रपत्र के संदेश में ‘देवशर्मा नामक एक ब्राह्मण इंदुल (वर्तमान में हिंदळे गांव) इस समृद्ध / प्रशस्त गांव में आया । वहां के राजा ने उसका सम्मान किया तदुपरांत राजा को राजलक्ष्मी प्राप्त हुई और श्री कुणकेश्वर के रूप में भगवान शंकर के आशीर्वाद से पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई ।
प्राचीन देवालय
श्री देव कुणकेश्वर के मंदिर की निर्माण शैली द्रविडी (दाक्षिणात्य) पद्धति की है । इस मंदिर के परिसर में श्री जोगेश्वरी का छोटा देवालय, श्री देव मंडलिक नामक एक शिवालय, श्री नारायण मंदिर, श्री गणेश मंदिर और श्री भैरव मंदिर है ।
कुणकेश्वर की गुफा
कुणकेश्वर में वर्ष १९२० के आसपास देवालय के समीप ही पूर्व में पहाड की ढलान पर कुछ लोगों द्वारा भूमि की खुदाई करते समय बंद गुफा का एक द्वार खुल गया । उसमें मिली पाषाण की उत्कीर्ण मूर्तियों में योद्धाओं समान वेश-भूषा और शिरोभूषण धारण किए उत्कीर्ण मूर्तियां हैं । मध्यभाग में शिवलिंग और नंदी की मूर्तियां हैं और उनके चारों ओर उन देवताओं के उपासकों के पुतले हैं ।
पुरातन सरोवर
देवालय के दक्षिण में तालाब के समीप ही श्री हनुमान का मंदिर है । इस मंदिर में श्रीमान लब्दे महाराजजी के तपश्चर्या करते समय उन्हें इस सरोवर से संबंधित दृष्टांत हुआ । इस स्थान पर खुदाई करने पर वहां सरोवर पाया गया । इसका पानी मीठा है ।
श्री काशी क्षेत्र से साम्य दर्शानेवाले शिवलिंग
इस मंदिर के पीछे विद्यमान शिवलिंगों के कारण ही इस स्थान को कोकण की काशी संबोधित किया जाता है । गत अनेक वर्षों से इन शिवलिंगों पर समुद्र की लहरों का बारह महीने टकराने पर भी इन्हें कोई हानि नहीं पहुंची है । वर्तमान में पानी के उतरने (भाटा आने) पर केवल ५-६ स्थानों पर ही शिवलिंग के दर्शन होते हैं । इसप्रकार के पत्थरों पर स्थित शिवलिंग, काशी तीर्थस्थल में भी पाए जाते हैं ।
उत्सव का स्वरूप
श्रीदेव कुणकेश्वर, आसपास के ७२ गांवों के देवताओं के अधिपति माने जाते हैं । इस शक्तिपीठ से अपना देवत्व बढाने के लिए ७२ गांवों के देवताओं के शिवरात्रि पर यहां आने की परंपरा है । इस अवसर पर भाविक भगवनद्दर्शन के अनुपम समारोह का आनंद उठाते हैं । ये देवता अमावास्या तक कुणकेश्वर में रहते हैं । इन देवताओं के भक्तगण समुद्रस्नान कर श्री देेव कुणकेश्वर की पूजा करते हैं ।