मानसपूजा

१. व्याख्या

देवता अथवा गुरु के सगुण रूप की मन से कल्पना कर मन से ही उनकी स्थूल की कृति समान पूजा करना, अर्थात मानसपूजा करना ।

 

२. महत्त्व

अ. कर्मकांड की पूजा स्थूल स्तर पर, जबकि मानसपूजा सूक्ष्म स्तर की होती है । ‘स्थूल से सूक्ष्म में जाना’ इस साधना के सिद्धांत के अनुरूप मानसपूजा कर्मकांड की पूजा की तुलना में श्रेष्ठ है ।

आ. कुछ लोगों को नौकरी, व्यवसाय जैसे कारणों से देवपूजा करने की इच्छा होते हुए भी वह करने नहीं मिलती है । ऐसों को प्रवास में आते-जाते अथवा अन्यत्र मानसपूजा करने का अवसर मिलता है । उसीप्रकार यदि कोई प्रतिदिन देवपूजा करता हो, तब भी वह मानसपूजा कर सकता है ।

स्त्रोत : सनातन-निर्मित ग्रंथ ‘पंचोपचार आणि षोडशोपचार पूजन का शास्त्र’

 

मानसपूजा कैसे करें ?

श्री महालक्ष्मीदेवी की मानसपूजा का एक उदाहरण आगे दिया है । इस अनुसार श्री शांतादुर्गा, श्री विठ्ठल-रखुमाई आदि देवताओं के भक्त उन देवताओं की मानसपूजा कर सकते हैं ।

 

श्री महालक्ष्मीदेवी की मानसपूजा

पूजा का साहित्य

सोने की छोटी थाली, सोने की थाली में पुष्प, सोने का कलश और फूलपात्र, सोने के ५ दीपक और सोने की कटोरियों में हलदी-कुंकू ।

पूजा

‘आज मेरे जीवन का सौभाग्यपूर्ण दिन है । मुझे देवीमां की पूजा करने का अवसर मिला है । मैंने एक सोने के कलश में गुनगुना सुगंधित जल लिया है । अब उस गुनगुने जल से मूर्ति को स्नान करा रही हूं । अब मैंने एक सोने के फूलपात्र में पंचामृत लिया है । श्री महालक्ष्मीदेवी की मूर्ति पर धीरे-धीरे पंचामृत का अभिषेक कर रही हूं । अब पुन: गुनगुने जल से मूर्ति को स्नान करवा रही हूं । देवी की मूर्ति पोछने के लिए मैंने अत्यंत कोमल रेशमी वस्त्र लिए हैं । उन वस्त्रों से अत्यंत ही कोमलता से मैं मूर्ति को पोछ रही हूं ।

महालक्ष्मीदेवीने लाल रंग की रेशमी साडी परिधान किए हैं । साडी की किनारी सुनहरी है । उन्होंने गहरे पीला वस्त्र धारण किया (ओढा) है । उन पर सुंदर बेल-बूटे बने हैं । देवी विविध आभूषणों से सुसज्जित हैं । मेरे मन के भावानुसार देवी का रूप भी बदलता प्रतीत हो रहा है । देवी के विविध रूप देखकर मन अत्यधिक प्रसन्न है ।

सोने की थाली में हलदी-कुंकू, केशर, अष्टगंध एवं कस्तुरी से भरी सोने की कटोरियां हैं । मैं देवी के माथे पर उसे धीरे-धीरे लगा रही हूं । अब मैं देवी को प्रिय बेला (मोगरा), कमल, चंपा, बकुल इत्यादि सुगंधित पुष्प उनके चरणों में अर्पण कर रही हूं । अब मैं २ सुवासिक उदबत्तियों से श्री महालक्ष्मीदेवी को प्रेम से आरती उतार रहा हूं । आरती उतारते समय मैं घंटी बजा रहा हूं । अब मैं देवी को पूरण (उबली हुई चने की दाल को पीसकर उसमें गुड और इलायची मिलाकर तैयार किया मिश्रण) से भरी रोटी का भोग लगा रही हूं । माता महालक्ष्मीदेवी को भोग ग्रहण करने के लिए आर्तता से प्रार्थना कर रही हूं । मैंने घी के ५ दीपक लगाए हैं । पंचारती करते समय मुझे देवी के विविध रूप दिखाई दे रहे हैं । देवी के चरणों में संपूर्णरूप से शरण जाकर उनसे विनती कर रही हूं ‘हे मां, मेरा उद्धार करें ।’ देवी मेरी ओर वात्सल्ययुक्त नजरों से देख रही हैं । उनके एक कृपाकटाक्ष से मेरे सर्व दुःखों का नाश हो गया है । मां अपना प्रेमभरा वरदहस्त मेरे सिर पर रखकर मुझे आशीर्वाद दे रही हैं । मां मुझे बेले के फूलों का गजरा, प्रसाद के रूप में दे रही हैं । मैं उनके श्रीचरणों में अनन्यभावे से कृतज्ञता व्यक्त करती हूं, ‘हे माता, आपने मुझे अपनी सेवा करने का अवसर दिया, इसके लिए कोटि कोटि कृतज्ञ हूं ।’

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