लाखों वर्षों का इतिहास प्राप्त और भारत से श्रीलंका में तलैमन्नार के छोर तक फैला रामसेतु : श्रीराम से अनुसंधान साधने का भावबंध !

‘श्रीराम और श्रीलंका, इन दोनों का संबंध ध्यान में आने पर ‘रामसेतु’ संबंधी विचार आते हैं । श्रीरामावतार त्रेतायुग में, अर्थात न्यूनतम १७ लाख वर्षों पूर्व हुआ । रामायण में वर्णित जिस-जिस स्थान पर श्रीराम का आगमन हुआ, उस स्थान पर नया तीर्थ, दिव्य क्षेत्र और मंदिर आज हमें देखने मिलता है । १०० करोड हिन्दुओं की भावना श्रीराम के जिस चिह्न से संबंधित हैं, वह है ‘रामसेतु !’ महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय की ओर से सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळ और ४ विद्यार्थी-साधक जनवरी २०१८ में श्रीलंका के अभ्यास दौरे के निमित्त से रामसेतु के श्रीलंका की छोर पर जाकर आए ।

 

१. रामसेतु के संशोधक श्री. कल्याणरामन् द्वारा दी जानकारी

१. भारत का भूभाग (बायीं ओर) और श्रीलंका का भूभाग (दाईं ओर) को जोडनेवाला रामसेतु (गोल में दिखाए अनुसार) (उपग्रह चित्र)

१ अ. नल के नेतृत्व में और नील की सहायता से १० लाख वानरों ने
केवल २५ दिनों में रामसेतु का निर्माण किया जाना और रामसेतु के रक्षक हनुमानजी होना

रामसेतु के संशोधक श्री. कल्याणरामन ने हमें बताया कि, ‘‘पूर्व में रामसेतु का नाम ‘नलसेतु’ था । रामायण में भी यह ‘नलसेतु’ के नाम से ही संबोधित किया है । रामेश्‍वरम् में जब समुद्र श्रीराम को रास्ता नहीं देता, तब श्रीराम क्रोधित होते हैं । वरुणदेव स्वयं प्रकट होते हैं और श्रीराम को शांत करते हैं । ‘हे श्रीराम, आपकी वानरसेना में विश्‍वकर्मा के नल और नील नामक वानर हैं । वे आपको समुद्र पर सेतु निर्माण करने में सहायता करेंगे ।’ नल के नेतृत्व में और नील की सहायता से १० लाख वानरों ने केवल २५ दिनों में ही यह सेतु बना दिया । पहले पांच दिनों में यह बडे वृक्ष और पर्वतों के पत्थरों का उपयोग कर सेतु की नींव बनाई । यह सेतु भारत के पंबन् द्वीप के धनुषकोडी के छोरसे श्रीलंका के मन्नार द्वीप पर तलैमन्नार के छोर तक है । सेतु अनुमान से ३२ कि.मी.की लंबाई का होगा । रामसेतु के रक्षक हनुमाजी हैं और वे चिरंजीवी होने से सेतु की रक्षा के लिए सतत खडे हैं ।

२. तलैमन्नार में सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळ और श्री. विनायक शानभाग ने रामसेतु के विषय में जानकारी देते हुए स्थानीय नागरिक

१ आ. मन्नार द्वीप पर तलैमन्नार के अंतिम
छोर से २ कि.मी. चलते हुए जाने पर रामसेतु के दर्शन होना

उत्तर श्रीलंका के पश्‍चिमी समुद्रतट पर मन्नार जिला है । मन्नार शहर मन्नार द्वीप पर है । मन्नार शहर से ३५ कि.मी. दूर तलैमन्नार नामक छोर है । यहां श्रीलंका नौकादल का बडा केंद्र है । तलैमन्नार के अंतिम छोर से २ कि.मी. चलते हुए जाने पर रामसेतु के दर्शन होते हैं । रामसेतु से देखने पर १६ छोटे द्वीप एकत्र होने समान ((द्वीपसमूह समान) दिखाई देते हैं । इनमें ८ द्वीप भारत की सीमा में हैं और ८ द्वीप श्रीलंका की सीमा में हैं । दोनों राष्ट्रों से रामसेतु पर जाने की अनुमति नहीं है । सेतु के आसपास के परिसर में केवल मछुआरों को ही जाने की अनुमति है ।

भारत और श्रीलंका राष्ट्रों को जोडनेवाला और लाखों वर्ष प्राचीन रामायण काल का ‘रामसेतु’ ! (गोलाकार में दिखाया है ।) (उपग्रह चित्र)
रामसेतु पर बालू की भावपूर्ण पूजा करती हुईं सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळ

 

२. रामसेतु की विशेष बालू (रेत)

यहां की बालू स्वच्छ और शुभ्र है । बालू हाथ में लेने पर भावजागृत होता है और उसे शरीर पर लगाने का मन करता है । अन्य स्थानों की बालू और रामसेतु की बालू में भेद है । यहां की बालू में अणुबम बनानेवाली अणुभट्टी के लिए (‘न्यूक्लीयर रिएक्टर’ के लिए) लगनेवाली ‘थोरियम’का समावेश है ।

 

३. रामसेतु के निकट जाते समय साधकों का भावजागृत होना

रामसेतु के निकट जाते समय सर्व साधकों की भावजागृति हो रही थी और ऐसा प्रतीत हो रहा था कि ‘यह केवल सेतु न होकर श्रीराम से जोडनेवाला भावसेतु है ।’ रामसेतु के भाग में एक अनोखा चैतन्य अनुभव हुआ । उसका शब्दों में वर्णन नहीं कर सकते हैं ।

 

४. सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळ द्वारा रामसेतु की भावपूर्ण पूजा

४ अ. बालू पर पुष्प अर्पण कर नमस्कार करना और वहां की बालू को मस्तक पर लगाना

श्रीलंका के तलैमन्नार के समुद्रीतट से रामसेतु जहां आरंभ होता है, वहां हम स्थानीय लोगों की सहायता से पहुंचे । सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळ की सहायता से हम २ कि.मी. पैदल चले सद्गुरु काकू ने रामसेतु की भावपूर्ण पूजा की । उन्होंने वहां की बालू पर पुष्प अर्पण कर नमस्कार किया और वहां की बालू मस्तक पर लगाई ।

४ आ. सद्गुरु काकू बोलीं, ‘‘रामावतार हुए लाखों वर्ष बीत गए, तब भी रामसेतु अब भी ‘राम, राम’, जप कर रहा है । इस बालू से भी जप सुनाई दे रहा है ।’’

 

५. कृतज्ञता

श्रीराम से अनुसंधान रखनेवाले इस भावबंध की (‘रामसेतु’की) अनुभूति हमें केवल परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के कारण मिली है । इसके लिए उनके श्रीचरणों में कोटि कोटि कृतज्ञता ।

– श्री. विनायक शानभाग, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (२९.६.२०१८)

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