प्राचीन काल में जिसे ‘श्याम देश’ कहते थे, वह भूभाग आज का थायलैंड देेश है । इस भूभाग पर अब तक अनेक हिन्दू और बौद्ध राजाओं ने राज्य किया । यहां की संस्कृति हिन्दू धर्म पर आधारित थी । यहां के राजा को प्रभु श्रीराम का रूप माना जाता है और उनकी राजधानी को अयोध्या का दर्जा दिया गया । यहां रामायण को राष्ट्रीय साहित्य माना जाता है । कालांतर में बौद्धों की सांस्कृतिक आक्रमण से यहां बौद्ध धर्म प्रचलित हुआ । वर्ष १७८२ में चक्री साम्राज्य के ‘राजा राम १’ ने रत्नकोसी (बँकॉक) शहर की स्थापना की । वर्ष १७८२ में राजा राम १ ने रत्नकोसी (बँकॉक) शहर के मध्यभागी ६० एकड परिसर में बडा राजमहल बनवाया ।
राम १ राजा द्वारा बनवाए राजमहल की विशेषताएं
राजमहल की दीवारों पर रामायण के प्रसंग हैं
राजा राम १ के बैंकॉक शहर में राजमहल बनवाने के पश्चात इसकी दीवारों पर रामायण के विविध प्रसंगाेंं के सुंदर चित्र रंगवाए हैं । इन चित्रों में प्राकृतिक रंगों का उपयोग किया है । साथ ही आवश्यकतानुसार सोने और चांदी का भी उपयोग किया है । चित्रों में राम, लक्ष्मण इत्यादि व्यक्तिरेखाओं के मुख और सभी के वस्त्र थायलैंड की पद्धतिनुसार हैं ।
– श्री. विनायक शानभाग, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.
मुख्य राजवाडा चक्री महाप्रसात
चक्री साम्राज्य के मुख्य राजमहल का नाम ‘चक्री महाप्रसात’ है । चक्री साम्राज्य के ‘राजा राम ९’ भूमि अतुल्यतेज और उसके उपरांत अब उनके पुत्र ‘राजा राम १०’ का यह निवासस्थान है । ब्रिटन की रानी एलिजाबेथ के महल की स्थापत्य शैली के अनुसार यह राजमहल बना है, परंतु छप्पर और शिखर थायलैंड शैली के हैं ।’
१. चक्री साम्राज्य के ‘राजा राम १’ अर्थात चाओ फ्राय की नदी
के दोनों किनारों पर बसा रत्नकोसी शहर, अर्थात आज का बैंकॉक शहर !
अयुद्धया थायलैंड की पहले की राजधानी थी । वर्ष १७८२ में चक्री साम्राज्य के ‘राजा राम १’ ने बैंकॉक शहर की स्थापना की । आज भी बैंकॉक शहर ही थायलैंड की राजधानी है । बैंकॉक, थायलैंड में चाओ फ्राय नामक नदी के दोनों तटों पर बसा बडा शहर है । इस शहर का खरा नाम ‘रत्नकोसी’ था ।
२. राजा का रत्नकोसी शहर के मध्यभाग में बडा राजमहल बनवाना
वर्ष १७८२ मे राजा राम १ ने रत्नकोसी (बैंकॉक) शहर के मध्यभाग में ६० एकड परिसर में बडा राजमहल बनवाया । इस राजमहल की बाहर की दिशा में ऊंची दीवार बनवाई और अंदर ३ महल बनवाए । उनमें से बाहर का राजमहल, दूसरा बीच का राजमहल और दक्षिण में तीसरा भीतरी राजमहल है । उनमें से कुछ वास्तु आगे ‘राजा राम ५’ ने वर्ष १८६८ से १९१० में बनवाईं थीं ।
३. राजमहल की विशेषताएं
३ अ. राजमहल की रक्षा के लिए असुरों के पुतले होना
राजमहल के बाहर असुरों के छ: बडे पुतले खडे किए हैं । इन्हें ‘रूप याक’ कहते हैं । ये असुर राजमहाल की रक्षा के लिए हैं ।
३ आ. कुछ स्थानों पर ऋषि, किन्नर, गरुड और अप्सराओं की मूर्तियां होना
कुछ स्थान पर ऋषियों के पुतले हैं । राजमहल के मुख्य मंदिर के बाहर और किन्नरी की मूर्ति हैं । कुछ स्थान पर गरुड, तो कुछ स्थानों पर अप्सराओं की मूर्तियां हैं ।
३ इ. राजमहल में ३ बौद्ध मंदिर
राजमहल के अंदर ३ मुख्य बौद्ध मंदिर हैं । इनमें से योगमुद्रा में बैठे ‘पाचूचा बुद्ध’ प्रसिद्ध है । इसे स्थानीय भाषा में ‘वाट फ्रा कैव’ कहते हैं । गर्मियों में, वर्षा और सर्दियों में, इन ऋतुओं के अनुसार पाचू के बुद्ध मूर्ति को पहनाए कपडे बदले जाते हैं । कपडे बदलने के उपचार को उत्सव का रूप दिया गया है ।
श्री. विनायक शानभाग, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.
मूल भारतीय रामायण में किया परिवर्तन थाय रामायण ‘रामाकियान’!
थायलैंड में रामायण को राष्ट्रीय संपत्ति माना है । सहस्रों वर्षों पूर्व भारत से व्यापार के लिए थायलैंड गए हिन्दुओं के कारण वहां रामायण पहुंची । उस समय गांव-गांव में लोग रामायण पर आधारित कठपुतलियों का खेल प्रस्तुत करते थे । १८ वीं शताब्दी में मूल रामायण की अनेक बातों मेंं परिवर्तन कर ‘थाय रामायण’ लिखी गई । इसलिए थायलैंड की रामायण भारत की वाल्मीकि रामायण से कुछ अलग है । इस रामायण को ‘रामाकियान’ कहते हैं । इस रामायण में हनुमान के विषय में अधिक वर्णन है । इसमें हनुमान की सहायता से युद्ध जीतने का उल्लेख है और वर्णन है कि हनुमानजी रावण के हृदय से प्राण चुराकर श्रीरामजी के पास लाते हैं और विजय प्राप्त करवाते हैं । इस रामायण में रावण का ‘तोसोकंट’ (दशकंठ) उल्लेख है ।