वर्ष २००४ तक संग्रहालय में रखे वर्ष १९८४ में लुटेरों द्वारा
तोडे गए श्रीविष्णु की मूर्ति का सिर पूर्ववत बनाने से पर्यटकों की संख्या में वृद्धि होना
आध्यात्मिक अधिकारी व्यक्ति द्वारा बताई उपाययोजना कंबोडिया सरकार तात्काल अमल में लाती है, परंतु भारत में निधर्मीवाद के नाम पर संत-महंतों द्वारा बताई उपाययोजना की उपेक्षा की जाती है; यह भारत सरकार के लिए लज्जास्पद है !
प्रत्येक बात के पीछे अध्यात्मशास्त्र जान लेना, इसके साथ ही ‘राष्ट्रहित के लिए क्या करना आवश्यक है ?’, इसका विचार केवल सरकार को ही नहीं, अपितु सभी को करना चाहिए । तभी खरे अर्थ में हिन्दू राष्ट्र की स्थापना होगी ।’
‘अंकोर वाट’ मंदिर के पश्चिम द्वार के मुख्य प्रवेशद्वार के ३ गोपुरों में से दाईं ओर के गोपुर में आज भी श्रीविष्णु की विशाल अष्टभुजा मूर्ति है । (छायाचित्र देखें) इस मूर्ति के विषय में यहां के स्थानीय जानकार लोगों द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, यह मूर्ति वर्ष १८८० में वहां उत्खनन करनेवाले फ्रान्स के पुरातत्व विभाग को मिली थी । वर्ष १९८४ में कंबोडिया में हुए नागरी युद्ध के (‘सिविल वॉर’के) समय कुछ लुटेरों ने इस मूर्ति का सिर तोडकर उसे उठा कर ले जाने का प्रयत्न किया । इस आक्रमण में यह सिर मूमि पर गिर गया; परंतु आश्चर्य की बात यह थी कि लुटेरे मूर्ति का सिर भूमि पर से उठा ही नहीं पा रहे थे । इसलिए वहीं पर सिर छोडकर उन्हें जाना पडा । आगे यह सिर वर्ष २००४ तक यहां के संग्रहालय में रखा गया था ।
‘अंकोर वाट’ मंदिर में वार्षिक धार्मिक उत्सव होता है । उस समय वहां दैवी संचार होनेवाले एक व्यक्ति ने कहा, ‘‘यहां श्रीविष्णु की मूर्ति का सिर पूर्ववत बिठाना चाहिए । बिना सिर की मूर्ति को ऐसे ही रखने से राष्ट्र पर भगवान की अवकृपा हुई है ।’’ इसलिए स्थानीय नागरिकों की मांग के अनुसार कंबोडिया सरकार द्वारा श्रीविष्णु का सिर पुन: मूर्ति पर लगा दिया गया और उसके अगले वर्ष ही अर्थात २००५ में कंबोडिया में २० लाख पर्यटक आए । पहले पर्यटकों को संख्या बहुत कम थी । मूर्ति का सिर पुन: बिठाने से कंबोडिया को बहुत लाभ हुआ । स्थानीय नागरिकों की श्रद्धा है कि ‘श्रीविष्णु की मूर्ति पर पुन: सिर स्थापित कर देने से सब अच्छा होना प्रारंभ हो गया है ।’