आंधी-तूफान, भूस्खलन, भूकंप, महाप्रलय, तीसरा महायुद्ध ऐसी आपातकालीन परिस्थिति किसी भी क्षण आ सकती है । ऐसी स्थिति में ‘योग्य कृति क्या करनी चाहिए ?’ इसका ज्ञान न होने से सर्वसामान्य व्यक्ति घबरा सकता है और उसका मनोबल भी कम हो जाता है । कुछ प्रसंगों में वह अयोग्य कृति करने की अथवा निर्णय लेने की संभावना होती है । ऐसी स्थिति में धैर्य से सामने जाने के लिए दैनंदिन जीवन में नामजपादि साधना के प्रयत्न करने से आत्मबल निर्माण करना आवश्यक होता है ।
‘आपातकालीन स्थिति में भी यह साधना की दृष्टि से कैसे प्रयत्न कर सकेंगे ?’, इस विषय के सूत्र नीचे दिए हैं ।
१. भगवान से प्रार्थना करना
भगवान श्रीकृष्ण, ग्रामदेवता, स्थानदेवता और वास्तुदेवता को प्रत्येक १५ मिनटों में अथवा आधे घंटे में मनोभाव से प्रार्थना करनी चाहिए, ‘हे देवता, हम आपकी शरण आए हैं । आप ही हमारा उद्धार करें । मुझसे आपका नामजप निरंतर होने दें । मेरे साथ-साथ मेरे परिवार और मेरे घर के आसपास आपके नामजप का संरक्षक-कवच निर्माण होने दें ।’
२. अधिकाधिक नामजप करना
दिन भर में अधिकाधिक समय भगवान श्रीकृष्ण एवं कुलदेवता अथवा इष्टदेवता का नामजप करें । कलियुग में ‘देवता का नाम ही आधार’ होने से मन ही मन नामजप करते रहें । नामजप लगाने की सुविधा हो, तो भ्रमणभाष पर अथवा स्पीकर पर नामजप लगाएं । इससे नामजप करने का स्मरण रहेगा ।
३. अन्यों को सहयोग करते समय कैसा भाव रखें ?
इस आपदा में सभी एकदूसरे का सहयोग करें; इसके साथ ही मानसिक आधार देकर भगवान पर श्रद्धा बढाने के लिए प्रयत्न करें । ‘सामाजिक बंधुभावना का पालन’, यह प्रत्येक का धर्मकर्तव्य है; परंतु अन्यों की सहायता करते समय ‘मैं सहायता करता हूं, ऐसा न होकर भगवान ही मुझसे यह करवा ले रहे हैं’ इस भाव से नामजप करते हुए सहायता करें । इससे अपने मन में कर्तेपन का विचार नहीं आएगा, इसके साथ ही उस व्यक्ति से लेन-देन हिसाब भी नहीं निर्माण होगा ।
४. स्वभावदोष और अहं के पहलुओं की तीव्रता घटाने का प्रयत्न करना
ऐसी परिस्थिति में भी छोटे-बडे कारणों से मन विचलित होना, चिंता होना, इसके साथ ही भय लगकर अस्वस्थता लगना, इसप्रकार स्वभावदोषों के प्रकटीकरण होने की संभावना होती है । ऐसे प्रसंगों में योग्य स्वयंसूचना देने पर परिस्थिति से बाहर आने में सहायता होती है ।
४ अ. चिंता हो रही हो, तो आगे दिए अनुसार स्वयंसूचना ले सकते हैं ! (‘अ २’ स्वयंसूचना पद्धति)
प्रसंग : अतिवृष्टि के कारण शहर में सर्वत्र पानी ही पानी हो गया है ।
स्वयंसूचना : जब शहर में बाढ जैसी स्थिति देखकर मुझे चिंता होगी कि ‘अब अपना और अपने घर का क्या होगा ?’, तब भान होगा कि मैं इसका सामना वर्तमानकाल में रहकर दे सकता हूं और यही भगवान को अच्छा लगेगा । घर का साहित्य पानी से सुरक्षित स्थान पर रखना, कुटुंबियों की सहायता करना और उन्हें आधार देना ही वर्तमानकाल में मेरा कर्तव्य / साधना है’, अत: मैं इस कठिन परिस्थिति का सामना करने के लिए समय-समय पर सीखने मिले सूत्रों के अनुसार नामजप सहित आवश्यक कृति करूंगा ।
४ आ. डर लगता हो तो आगे दिए अनुसार प्रसंग का अभ्यास करना आवश्यक है ! (‘अ ३’ स्वयंसूचना पद्धति)
जिस प्रसंग का डर लगता हो, उस प्रसंग का सामना करने से पूर्व ‘अ ३’ इस स्वयंसूचना पद्धति के अनुसार प्रसंग का अभ्यास करें । इस स्वयंसूचना का उदाहरण नीचे दिया है ।
प्रसंग : ‘अनेक शहरों में बाढग्रस्त स्थिति है’, इस विषय का समाचार मैंने दूरदर्शन पर देखा । तदुपरांत भय लगा कि ‘हमारे घर के पास भी नदी है, कहीं उस नदी में भी बाढ तो नहीं आएगी । बाढ आने पर हमें सुरक्षित स्थान पर जाने के लिए कहेंगे । तब मुझसे ऐसा हो पाएगा ।’
१. हमारे घर के निकट की नदी में बाढ आने से नगरपालिका के कर्मचारी हमें दूसरी ओर स्थलांतरित होने के लिए कह रहे हैं ।
२. ‘इस स्थिति से मुझे सुखरूप बाहर निकालिए भगवन’, ऐसी मैं भगवान से आर्तता से प्रार्थना कर रहा हूं ।
३. मैं केवल आवश्यक साहित्य और परिवारजनों को लेकर घर से बाहर निकल रहा हूं ।
४. ‘आपातकालीन परिस्थिति से बाहर कैसे निकलना है ?’, इसका जिन्हें ज्ञान है ऐसे सहकारी मेरे साथ हैं । उनकी सहायता से मैं बाढ के पानी से मार्ग बनाकर आगे-आगे जा रहा हूं । जहां पानी अधिक है, वहां सतर्क हूं । मैं मन ही मन प्रार्थना और नामजप कर रहा हूं ।
५. जिस समय मुझे कोई समस्या होगी, तब सहयोगियों की सहायता मिलने से मैं भगवान की कृपा अनुभव कर रहा हूं । इससे मैं आश्वस्त होकर मेरी भगवान पर श्रद्धा बढ रही है ।
६. भगवान की कृपा से मैं सुरक्षित स्थान पर ठीक से पहुंच गया हूं ।
७. भगवान के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए मैं सर्व सामान भली-भांति लगा रहा हूं ।
स्वयंसूचनाओं के संदर्भ में अधिक जानकारी सनातन के ‘स्वभावदोष-निर्मूलन प्रक्रिया’ (भाग २) ग्रंथ में दी है ।’
भगवान पर भक्त प्रल्हाद समान अटूट निष्ठा निर्माण होने के लिए प्रयत्न करें !
भगवान पर श्रद्धा होगी, तो किसी भी संकट से तर जाने का बल मिलता है । भक्त प्रल्हाद का उदाहरण सर्वज्ञात है । बडे से बडे संकट आने पर भी प्रल्हाद की भगवान पर से श्रद्धा रत्तीभर भी नहीं कम हुई । प्रत्येक समय वह अत्यंत श्रद्धा से ‘नारायण, नारायण’ आर्तभाव से पुकारता रहता था । उसकी आर्त पुकार सुनकर प्रत्यक्ष भगवान उसके लिए नृसिंह का रूप लेकर दौडे आए ।
‘मनुष्य की भगवान पर कितनी अटूट श्रद्धा होनी चाहिए’, यह इस उदाहरण से ध्यान में आता है । भक्ति की ऐसी उच्च स्थिति प्राप्त करने के लिए साधना के अतिरिक्त अन्य पर्याय नहीं । प्रतिदिन नियमितरूप से साधना के प्रयत्न करना, यह भगवान पर अटूट श्रद्धा निर्माण होने का पहला चरण है । प्रल्हाद समान अटूट निष्ठा निर्माण होने हेतु प्रयत्न कर सभी भगवान की अपार कृपा की अनुभूति लें ।