युद्ध काल में सैनिकों की रक्षा के लिए देवताओं की उपासना से भारित धागे उपलब्ध करनेवाले कंबोडिया के राजा !

कंबोडिया के बॅयान मंदिर में युद्ध के
प्रसंग उत्कीर्ण विविध शिल्प आज भी अस्तित्व में हैं !

१. मंदिर की दीवारों पर युद्ध के प्रसंग उत्कीर्ण हैं । इस छायाचित्र में खमेर सैनिक और चंपा सैनिक में हुए युद्ध के दृश्य कोरे गए हैं ।
२. युद्ध के समय सैनिकों के शरीर पर तंत्र-मंत्र से भारित मोटे धागे छायाचित्र में दिखाई दे रहे हैं ! ये धागे सैनिकों का संरक्षककवच है !
३. मंदिर के प्रवेशद्वार पर वासुकी और तक्षक नागों की मूर्तियां हैं । छायाचित्र में प्रवेशद्वार पर विद्यमान वासुकी नाग की प्रतिमा दिखाई दे रही है !

 

 बॅयान मंदिर के बाहर के प्रांगण की दीवार पर खमेर सैनिक
(कंबोडिया) और चंपा सैनिक (विएतनाम) में हुए युद्ध के दृश्य उत्कीर्ण

मंदिर के बाहर के प्रांगण में विद्यमान दीवार पर अनेक शिल्प हैं । उनमें मुख्य प्रवेशद्वार के बाईं और दाईं ओर युद्ध के दृश्य उत्कीर्ण हैं । इसमें खमेर सैनिक (कंबोडिया) और चंपा सैनिक (विएतनाम) में हुए युद्ध के दृश्य (छायाचित्र क्रमांक १ देखें ।) खमेर सैनिकों की सहायता के लिए आए चीनी सैनिक जैसे अनेक दृश्यों का समावेश है । इसमें सैनिकों की युद्ध के समय की वेशभूषा आश्‍चर्यकारक है । सैनिकों के शरीर पर तंत्र-मंत्र से भारित मोटे धागे बंधे दिखाई दे रहे हैं । ये धागे सैनिकों का संरक्षककवच है । देवताओं की उपासना से भारित धागे बांधने से सैनिकों की रक्षा होती है, ऐसी उनकी दृढ श्रद्धा थी । इससे यह ध्यान में आता है कि उस समय के सैनिकों का प्रत्येक बात की कितना आध्यात्मिक स्तर पर विचार होता होगा । (छायाचित्र क्रमांक २ देखें ।) मंदिर के प्रवेशद्वार पर वासुकी और तक्षक नागों की मूर्तियां हैं । (छायाचित्र क्रमांक ३ देखें ।) और कुछ स्थानों पर विष्णुवाहन गरुड भी दिखाई देता है । कुछ दीवारों पर रामायण और महाभारत में कुछ प्रसंगों का शिल्प भी दिखाई देते हैं ।

– श्री. विनायक शानभाग, कंबोडिया

 

राष्ट्ररक्षा के लिए कंबोडिया की तत्कालीन राजा
सैनिकों को आध्यात्मिक कवच प्रदान करना; परंतु यह बात
भारत के अब तक के शासनकर्ताओं के ध्यान में न आना, यह लज्जास्पद !

राष्ट्ररक्षा के लिए उस समय के राजा देवताओं की उपासना कर अपने सेना को तंत्र-मंत्र द्वारा आध्यात्मिक कवच प्रदान करते थे । वे राजा सेना और राष्ट्र की आध्यात्मिकदृष्टि से ध्यान रखते थे, यही इससे दिखाई देता है । स्वयं राजा द्वारा और उसके कारण प्रजा को धर्माचरण करने से उनके राज्य, राज्य की जनता आनंदी और संपन्नता से सुशोभित दिखाई देती है । सहस्रों वर्षों पूर्व भी उनका विचार कितने आध्यात्मिक थे और उनकी कृति कैसे अध्यात्म से जुडी थी, यह दिखाई देता है । भारत के राजकीय नेताओं को यह बात निश्‍चितरूप से सीखने जैसी है । ईश्‍वरीय अधिष्ठान के बिना प्रजा और राष्ट्र की उन्नति असंभव है, इसका यह एक जगप्रसिद्ध उदाहरण है । अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति जैसी धर्मविरोधी संगठनों को एक करारा तमाचा है ।

– श्री. दिवाकर आगावणे, कंबोडिया

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