वैदिक मंत्रों के जप का सामर्थ्य आधुनिक विज्ञान द्वारा प्रमाणित !
नई देहली : कठोर परिश्रम कर कंठस्थ किया गया विषय मस्तिष्क की किसप्रकार सहायता करता है, यह तंत्रिकाशास्त्र (न्यूरोसाईन्स) प्रमाणित करता है । तंत्रिकाशास्त्र के अभ्यासी डॉ. जेम्स हार्टजेल ने इसके लिए संस्कृत भाषा का होनेवाला परिणाम पहली बार प्रस्थापित किया । उसके लिए उन्होंने २१ संस्कृत पंडितों का अध्ययन किया । उन्होंने शोध कर यह दिखा दिया कि वैदिक मंत्रों को कंठस्थ करने की बात मस्तिष्क के संज्ञानात्मक कार्य (Cognitive function) से संबंधित क्षेत्र का आकार बढाता है । इसमें अल्प और दीर्घकालीन स्मृतियां अंतर्भूत हैं । उनके द्वारा किए गए इस शोध से वैदिक मंत्रों का परायण करने से स्मरणक्षमता और विचारक्षमता बढती है, इस भारतीय परंपरा की आस्था की पुष्टि होती है ।
शोधकर्ता डॉ. हार्टजेल के अथक प्रयास !
डॉ. हार्टजेल संस्कृत भाषा के लिए समर्पित स्पेन देश के बास्क स्थित सेंटर ऑन कॉग्निशन, ब्रेन एंड लैंग्वेज विभाग के स्नातकोत्तर शोधकर्ता हैं । उन्होंने संस्कृत भाषा का अध्ययन और उसे कंठस्थ करने में अनेक वर्ष बिताएं हैं और संस्कृत भाषा के मस्तिष्क पर होनेवाले परिणाम के कारण वे आश्चर्यचकित हैं ।
शोध करते समय डॉ. हार्टजेल की स्मरणक्षमता में ही वृद्धि !
डॉ. हार्टजेल कहते हैं, ‘‘मुझे प्रतीत हुआ है कि मैंने संस्कृत भाषा का अध्ययन और कंठस्थ जितना अधिक किया, उतनी ही मेरी स्मरणक्षमता अधिक अच्छी हो गई है । मैं एक वर्ग में जो व्याख्यान देता था, उसकी दूसरे वर्ग में पुनरुक्ति होती थी । इसके लिए अन्य शिक्षक और छात्र आश्चर्य व्यक्त करते हैं । संस्कृत भाषा का भाषांतर करनेवाले अन्य कुछ लोगों ने भी मुझे बताया है कि उन्हें भी ऐसा लग रहा है कि उनकी भी आकलनक्षमता में वृद्धि हुई ।
भारत के वैदिक संस्कृत पंडित दूसरों को ३ सहस्र वर्ष प्राचीन ग्रंथों में व्याप्त ४० सहस्र से १०० सहस्र शब्दों से युक्त अवधरणों को कंठस्थ कर, जैसे का वैसा बोलने का प्रशिक्षण अनेक वर्षों से दे रहे हैं । संस्कृत के इस शाब्दिक कंठस्थता के प्रशिक्षण के कारण उनके मस्तिष्क की शारीरिक संरचना पर कैसे परिणाम होता है, इसका हमें अध्ययन करना था ।’’
२१ संस्कृत पंडित और २१ सामान्य लोगों पर शोध
डॉ. हार्टजेल का शोध संस्कृत अभ्यासियों के मस्तिष्कों के परीक्षण का पहला प्रयास था । भारत के नैशनल ब्रेन रिसर्च सेंटर में (राष्ट्रीय मस्तिष्क शोध केंद्र) डॉ. हार्टजेल ने स्ट्रक्चरल मैग्नेटिक रेजोनन्स इमेजिंग (एम्.आई.आर्.) का उपयोग कर २१ संस्कृत पंडित और २१ सामान्य लोगों के मस्तिष्क का निरीक्षण (स्कैन) किया । डॉ. हार्टजेल कहते हैं, ‘‘स्ट्रक्चरल एम्.आर्.आई. स्कैनिंग में हमें जो दिखाई दिया, वह विलक्षण था । पंडितों के मस्तिष्क का अधिक भाग सामान्य लोगों के मस्तिष्क की अपेक्षा अधिक विकसित हुआ था । पंडितों के दोनों मस्तिष्कों से (मस्तिष्क के दाहिने और बाएं भाग ) संबंधित (सेरैब्रल) वृत्तार्धों में (हेमिस्फियर) ‘ग्रे मैटर’ का विकास और कॉर्टिकल (cortical) की मोटाई में बहुत विकास होना दिखाई दिया । संस्कृत पंडितों के मस्तिष्क में विद्यमान ग्रे मैटर और कॉर्टिकल मोटाई के कारणों की अचूकता से गणना करने का शोध भले ही अभी भी चल रहा हो; परंतु उनमें बढी हुई आकलनक्षमता से वह मेल खाता है ।’’
डॉ. हार्टजेल के ब्यौरे के अनुसार अल्प और दीर्घकालीन स्मरणक्षमता में महत्त्वपूर्ण योगदान देनेवाले, साथ ही ध्वनि और समय से संबंधित स्मृतियों के संदर्भ में विशेषतापूर्ण कार्य करनेवाले सामान्य व्यक्ति की तुलना में संस्कृत पंडितों में अधिक था । बोलने से संबंधित छंदशास्त्र (स्पीच प्रौसौडी) और ध्वनि के परिचय से संबंधित उचित दाहिने मस्तिष्क में विद्यमान टेम्पोरल कॉर्टेक्स का भाग भी संस्कृत पंडितों में सामान्य लोगों की तुलना में लक्षणीय मोटा था ।
अधिक शोध की आवश्यकता !
मस्तिष्क में दिखाई दिए उक्त बदलाव संस्कृत भाषा का परिणाम है, इसके प्रति डॉ. हार्टजेल आश्वस्त नहीं है; इसलिए इस पर और शोध करने की उनकी योजना है । उनके द्वारा ‘ध्वनि एवं मंत्रजप का सामर्थ्य’ विषयपर व्यापक अध्ययन और लेखन किया जा रहा है ।
डॉ. हार्टजेल के हाल ही के अध्ययन के अनुसार यह प्रश्न उपस्थित होता है कि प्राचीन धर्मग्रंथों में विद्यमान श्लोकों की कंठस्थता क्या अल्जाईमर और स्मरणक्षमता से जुडे अन्य विकारों को न्यून करने में उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं ? भारत के आयुर्वेदीय वैद्य इसकी पुष्टि कर कहते हैं, ‘इस संदर्भ में भविष्य में अध्ययन किया जाएगा, साथ ही संस्कृत के संबंध में अधिक शोध किया जाएगा ।’
पहले का शोधकार्य
वर्ष १९६७ में फ्रेंच वैद्य, मनोरोग विशेषज्ञ और कान के विशेषज्ञ अल्फ्रेड टोमैटिस ने प्रतिदिन ८ घंटे तक मंत्रजप की कठोर समयसारणी बनानेवाले बेनेडिक्टिन भिक्खुओं पर होनेवाले जाप के परिणामों का अध्ययन किया । जब नए आए धर्मगुरुओं ने इन भिक्खुओं की समयसारणी में बदलाव कर उनके जाप का समय कम किया, तब भिक्खुओं को अधिक नींद मिलकर भी उनके आलसी होने की बात दिखाई दी । उन्हें जितनी अधिक नींद मिली, उतनी उनके आलस में वृद्धि हुई । अल्फ्रेड टोमैटिस को यह विश्वास था कि जाप उनके मस्तिष्क को उत्तेजना दे रहा है । उन्होंने जब जाप की समयसारणी पहले जैसी पूर्ववत की, तब ये भिक्खू पुनः शीघ्र ही ऊर्जा से भारित हुए । विशेष बात यह कि ५० वर्ष पूर्व एक फ्रेंच वैज्ञानिक ने यह उल्लेख किया था कि ग्रेगोरियन मंत्र का उच्चारण करनेवाले ईसाई भिक्खुओं की स्मरणक्षमता असामान्य थी ।
‘वैदिक मंत्र अथवा श्लोक का जाप करनेवालों में उत्साह उत्पन्न होकर आध्यात्मिक उपाय किए जा सकते हैं, यह भी बात ध्यान में आई थी ।