पुणे के डॉ. प्रमोद मोघे पुणे के नैशनल केमिकल लेबॉरेटरी संस्था के निवृत्त ज्येष्ठ वैज्ञानिक हैं। उन्होंने अग्निहोत्र पर पुणे में प्रयोग किए । उन प्रयोगों के निष्कर्ष और परिणाम उन्हीं के शब्दों में यहां दे रहे हैं ।
१. अग्निहोत्र के परिणाम
अग्निहोत्र के परिणाम देखने के लिए हमने जानबूझकर पर्यावरणहानिग्रस्त क्षेत्र चुना। जहां वायु का प्रदूषण बडी मात्रा में पाया गया, वह भाग है रमणबाग हायस्कूल, शनिवार पेठ ! अग्निहोत्र का परिणाम जानने के लिए निम्नलिखित बातों का पूर्वमापन किया गया। वह है परिसर के वायु का विश्लेषण । अग्निहोत्र-प्रयोगों के निम्न उद्देश्य रखे थे । वे हैं –
अ. अग्निहोत्र से प्रकाश और उष्णता ऊर्जा में होनेवाला परिवर्तन
आ. अग्निहोत्र के धुएं का आसपास के सूक्ष्म जंतुओं पर परिणाम
इ. अग्निहोत्र के धुएं का पर्यावरण के वायु-प्रदूषण पर होनेवाले परिणाम
ई. बीज की वृद्धि पर अग्निहोत्र के धुएं और राख का परिणाम
उ. अग्निहोत्र की राख के औषधीय गुणधर्म
ऊ. अग्निहोत्र की राख में पानी को शुद्ध रखने की क्षमता होना
ये प्रयोग विद्यालय की कक्षा में किए गए । उसमें विद्यालय के विद्यार्थी, शिक्षक और विद्यालय के मुख्याध्यापक ने मन से सहभाग लेकर उत्तम सहयोग किया । वहां के प्रयोग में फर्ग्युसन महाविद्यालय के जैवतंत्रज्ञान विभाग के प्राचार्य की सहायता, तथा सावित्रीबाई फुले पुणे विद्यापीठ की प्रयोगशाला और प्राध्यापकों का सहयोग लिया गया । प्रज्ञा विकास मंच की FROST संस्था ने अगुवाई कर आर्थिक सहायता की । सभी आधुनिक विज्ञानयंत्रों द्वारा अग्निहोत्र के निम्नलिखित लाभ विश्व के सामने प्रस्तुत करने में सफल हुए ।
१ अ. ९० प्रतिशत सूक्ष्मजंतुओं की वृद्धि रूकी !
अग्निहोत्र के कारण प्रकाश-ऊर्जा में हुआ परिवर्तन लक्ष मीटर की सहायता से नापा गया । अग्निहोत्र के धुएं का आसपास के सूक्ष्मजंतुओं पर होनेवाले परिणाम के अध्ययन के लिए यज्ञ के पूर्व के और पश्चात् के जंतुओं की संख्या गिनी गई । इससे प्रमाणित हुआ कि अग्निहोत्र से लगभग ९० प्रतिशत सूक्ष्मजंतुओं की वृद्धि रूक गई ।
प्रयोग के लिये चुना गया स्थान बहुत यातायातवाला था । इससे वहां वायु का प्रदूषण प्रचंड मात्रा में था; किंतु अग्निहोत्र करने के पश्चात् वायु में घातक सल्फर डायऑक्साईड की मात्रा का दस गुना घट गई । इससे यह प्रमाणित हुआ कि प्रदूषण रोकने में अग्निहोत्र सहायता करता है।
१ आ. पौधों की वृद्धि में सहायक !
पौधों की वृद्धि में अग्निहोत्र के परिणाम जांचने के लिए अंकुरित बीज अग्निहोत्र के कक्ष में और विद्यालय के बाहर के परिसर में रखे गए ।
अग्निहोत्र के वातावरण में राख लगाकर रखे बीजों के पौधों की वृद्धि बडी मात्रा में हुई । अग्निहोत्र परिसर में न रखे बीजों की तुलना में वह वृद्धि अधिक मात्रा में थी, ऐसा पाया गया । इसलिए खेती में अग्निहोत्र-विधि बहुत उपयुक्त है, यह भी प्रमाणित हुआ।
१ इ. पानी में जंतु और क्षारों की मात्रा ८० से ९० प्रतिशत न्यून
अग्निहोत्र की राख जंतुनाशक होना पाई जाने से व्रण (चोट), त्वचारोग पर वह बहुत उपयुक्त होती है, यह भी प्रयोग से सिद्ध हुआ । अग्निहोत्र की राख से पीने के पानी में जंतु और क्षारों की मात्रा ८० से ९० प्रतिशत घट जाती है । अग्निहोत्र का पानीशुद्धिकरण में भी उपयोग होता है, यह सिद्ध हुआ।
उपयुक्त सभी लाभ केवल १० मिनटों में मिल सकते हैं । इस विधि के लिए हम ३ सेे ५ रुपये के व्यय पर पीने के पानी के साथ प्रत्येक घर प्रदूषणरहित, जंतुरहित कर सकते हैं । खेती में भी उस राख का उपयोग कर सकते हैं, यह हम विश्व के सामने सप्रमाण, निष्कर्षसहित वैश्विक वैज्ञानिक मासिक में प्रसिद्ध कर सके । हमारे पूर्वपारंपरिक विज्ञान को सम्मान का स्थान विश्व में दे पाए, इसका हमें गर्व है ।
२. ७० देशों द्वारा ‘अग्निहोत्र’की भारतीय संकल्पना स्वीकार होना
इससे पहले मैंने पानीशुद्धिकरण के लिए वेदों में वर्णित १५ वनस्पतियों का उपयोग कर पानी Mineral Water जितना शुद्ध कर, उसके वैश्विक पेटंट्स प्राप्त किए ही हैं; किंतु इसके लिए सभी को बौध्दिक दासता न करते हुए अपने ही ज्ञान पर विश्वास रखना अत्यावश्यक है ।
इस अध्ययन के चलते जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस, पोलंड, चीकोस्लोवाकिया, जापान, सिंगापुर, पेरू, इक्वाडोर, स्विर्त्झलैंड, स्पेन, कैनडा आदि ७० देशों ने अग्निहोत्र की भारतीय संकल्पना का स्वीकार किया है । वे विविध विज्ञान विषयक मासिकों में उसके निष्कर्ष प्रकाशित करने लगे हैं । उन्होंने इस पर आधारित खेती का नाम Homa Farming Technique रखा है।
३. स्वर्ण के महत्त्व से अनभिज्ञ भारतीय !
दुर्भाग्य से भारतीय प्राचीन विज्ञान के अणुशास्त्र, रसायनशास्त्र, भौतिकशास्त्र, गणित, आरोग्यशास्त्र, वैमानिकशास्त्र, धातुशास्त्र, निर्माणशास्त्र, शिल्पशास्त्र का पूरा-पूरा लाभ उपर्युक्त देशों के वैज्ञानिकों ने उठाया और उसके जागतिक पेटंटस् लिए । हमारे देश के सोए वैज्ञानिकों के ध्यान में अब यह बात ध्यान में आ रही है । खेद की बात यह है कि इन वैज्ञानिकों को प्राचीन विज्ञान पर विश्वास नहीं था; किंतु वही ज्ञान श्वेत लेखनी से आने पर धन्य, धन्य कहकर उसे स्वीकार रहे हैं ।’
(संदर्भ : hindi.indiawaterportal.org)
अग्निहोत्र कैसे करना, यह जानने के लिए यह लेख पढें – अग्निहोत्र का स्वरूप और प्रक्रिया