धनुषकोडी

श्री. चेतन राजहंस

भारत के दक्षिण-पूर्वी छोर पर हिन्दुओं का एक पवित्र तीर्थक्षेत्र है धनुषकोडी ! यह स्थान पवित्र रामसेतु का उगमस्थान है । गत ५० वषों से हिन्दुओं केे इस पवित्र तीर्थस्थान की स्थिति एक उद्ध्वस्त नगर के समान हो गई है । २२ दिसंबर १९६४ को यह नगर एक चक्रवात में उद्ध्वस्त हुआ था । तदुपरांत गत ५० वर्षों से इस तीर्थक्षेत्र का पुनरूज्जीवन करना दो दूर रहा, अपितु सरकार ने इस नगर को भूतों का नगर (Ghost Town) के रूप में घोषित कर उसकी दुर्गति कर दी । अब इस घटना को ५० वर्ष पूर्ण हो रहे हैं । इस निमित्त से बंगाल, असम, महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु, इन राज्यों में हिन्दुत्ववादी संगठनों के नेताओं के अभ्यासगुट ने धनुषकोडी को भेट दी । तब धनुषकोडी की उजागर हुई भीषण वास्तविकता को इस लेख द्वारा प्रस्तुत कर रहे हैं ।

 

धनुषकोडी का मीठा पानी, यह प्राकृतिक आश्‍चर्य !

धनुषकोडी के दक्षिण में हिंदी महासागर नीला-सा दिखाई देता है, जबकि उत्तर में बंगाल की खाडी फीके काले रंग का दिखाई देती है । इन दोनों सागरों में १ कि.मी का अंतर भी नहीं है । दोनों सागरों का पानी खारा है । ऐसा होते हुए भी धनुषकोडी में ३ फुट का गड्डा खोदने पर भी मीठा पानी मिलता है । क्या यह प्राकृतिक चमत्कार नहीं ?

आकाश से दिखाई देनेवाला रामसेतु (नासा ने उपग्रह द्वारा खींचे छायाचित्र)

 

धनुषकोडी का भूगोल

तमिलनाडु राज्य के पूर्वकिनारे पर रामेश्‍वरम् तीर्थक्षेत्र है । रामेश्‍वरम् की दक्षिण में ११ कि.मी. के अंतराल पर धनुषकोडी नगर (शहर) है । यहां से श्रीलंका केवल १८ मील (अनुमान से ३० कि.मी.) की दूरी पर है ! बंगाल का उपसागर (महोदधि) और हिंदी महासागर (रत्नाकर) के पवित्र संगम पर बसे और केवल ५० गज (अनुमान ने १५० फुट) चौडा धनुषकोडी रेतीला स्थान है ।

 

रामेश्‍वरम् और धनुषकोडी का धार्मिक माहात्म्य !

संपूर्ण धनुषकोडी नगर में रेत (बालू) का साम्राज्य होते हुए भी वहां जगह-जगह पर वास्तुओं के भग्नावशेष दिखाई देते हैं ।

उत्तरभारत में जो काशी का धार्मिक महत्त्व है, वही महत्त्व दक्षिण भारत में रामेश्‍वरम् का है । रामेश्‍वरम्, यह हिन्दुओं के पवित्र चारधाम यात्राओं में से एक धाम है । पुराण आदि धर्मग्रंथों के अनुसार काशी के श्री विश्‍वेश्‍वर की यात्रा रामेश्‍वरम के दर्शन के बिना पूर्ण नहीं होती । काशी की तीर्थयात्रा बंगाल के उपसागर (महोदधि) और हिंदी महासागर (रत्नाकर) के संगम पर स्थित धनुषकोडी में स्नान करने के उपरांत और तदुपरांत काशी के गंगाजल से रामेश्‍वर का अभिषेक करने के उपरांत ही पूर्ण होती है ।

१९६४ के चक्रीवात (साइकलोन) में उद्ध्वस्त हुए रेल्वेस्थानक की वास्तु के भग्नावशेष

 

धनुषकोडी का इतिहास और रामसेतु की प्राचीनता !

रामसेतु के इस ओर के भाग को धनुषकोडी (कोडी अर्थात धनुष्य का सिरा) कहते हैं; कारण साढे सत्रह लाख वर्षों पूर्व रावण की लंका में (श्रीलंका में) प्रवेश करने के लिए श्रीराम ने अपने कोदंड धनुष्य के सिरे से सेतु बनाने के लिए यह स्थान निश्‍चित किया । एक पंक्ति में बडे पत्थरों के टापुओं की शृंखला रामसेतु के भग्नावशेषों के रूप में आज भी हमें देखने मिलती है ।

रामसेतु नल और नील के वास्तुशास्त्र का एक अद्भुत नमूना है । इस रामसेतु की चौडाई और लंबाई १:१० अनुपात में हैं, ऐसा विस्तृत वर्णन वाल्मीकि रामायण में है । जब प्रत्यक्ष में नापी गई तब भी उसकी चौडाई ३.५ कि.मी और लंबाई ३५ कि.मी है । इस सेतु के निर्माणकार्य के समय गिलहरी की भूमिका और पानी में तैरते हुए पत्थर की कथाएं हम पीढियों से सुनते आ रहे हैं ।

 

धनुषकोडी और रामभक्त बिभीषण

श्रीराम-रावण महायुद्ध से पहले धनुषकोडी नगर में ही रावणबंधु बिभीषण प्रभु रामचंद्रजी की शरण आया था । श्रीलंका में युद्धसमाप्ति के पश्‍चात प्रभु रामचंद्र ने इसी नगर में बिभीषण को श्रीलंका के सम्राट के रूप में राज्याभिषेक किया । तब लंकाधिपति बिभीषण ने प्रभु रामचंद्रजी से कहा, भारत के शूर और पराक्रमी राजा रामसेतु का उपयोग कर बार-बार श्रीलंका पर आक्रमण करेंगे और श्रीलंका की स्वतंत्रता नष्ट करेंगे । इसके लिए प्रभु आप यह सेतु नष्ट कर दीजिए । अपने भक्त की प्रार्थना सुनकर कोदंडधारी प्रभु रामचंद्रजी ने रामसेतु पर बाण छोडकर उसे पानी में डुबा दिया । इससे यह सेतु पानी के २-३ फुट नीचे चला गया । आज भी रामसेतु पर कोई भी खडा होता है तो उसकी कमर तक पानी आता है ।

 

रामसेतु का विध्वंस करनेवाला सेतूसमुद्रम् प्रकल्प !

केंद्र की हिन्दूद्वेषी काँग्रेस सरकार ने व्यावसायिक लाभ के लिए ‘सेतुसमुद्रम शिपिंग कैनाल’ इस प्रकल्प द्वारा इस पुराणकालीन सेतु उद्ध्वस्त करने का षड्यंत्र रचा था । यह प्रकल्प हिन्दुओं की श्रद्धा पर आघात ही था । अनुमान से २४ प्रतिशत रामसेतु उद्ध्वस्त होने के उपरांत सर्वोच्च न्यायालय ने इस प्रकल्प को स्थगित किया । तब तक मजबूत रामसेतु का एक चतुर्थांश भाग ड्रील किया जा चुका था । इससे इस सेतु के बडे-बडे पत्थर चकानाचूर हो गए थे । आज भी इन पत्थरों के अवशेष हिंदी महासागर और बंगाल के उपसागर की पानी पर तैरते दिखाई देते हैं । मछुआरों के जाल में अनेकर बार ये तैरते पत्थर आते हैं । कुछ लोग धनुषकोडी अथवा रामेश्‍वरम में ये पत्थर बेचते हुए दिखाई देते हैं । इसप्रकार ऐतिहासिक और धार्मिक आस्थाओं से संबंधित वास्तुओं का विध्वंस करनेवाले काँग्रेसी अखिल मानवजाति के ही नहीं, अपितु इतिहास के भी अपराधी हैं । उनका अपराध अक्षम्य है !

 

धनुषकोडी वर्ष १९६४ से पूर्व बडा नगर था !

ब्रिटिशकाल में धनुषकोडी एक बडा नगर था, जबकि रामेश्‍वरम् छोटा-सा गांव था । यहां से श्रीलंका को आने-जानेके लिए नौकाओं की सुविधा थी । उस समय श्रीलंका जाने के लिए पारपत्र (पासपोर्ट) नहीं लगती थी । धनुषकोडी से थलाईमन्नार (श्रीलंका) इस नौका प्रवास का टिकट केवल १८ रुपये था । इन नौकाओं द्वारा व्यापारी वस्तुओं का लेन-देन करते थे । वर्ष १८९३ में अमेरिका की धर्मसंसद के लिए गए स्वामी विवेकानंद वर्ष १८९७ में श्रीलंका मार्ग से भारत में लौटे थे । तब वे धनुषकोडी की भूमि पर उतरे थे । वर्ष १९६४ में धनुषकोडी प्रचलित पर्यटनस्थल और तीर्थक्षेत्र था । भाविकों के लिए यहां होटल, कपडों की दुकानें और धर्मशालाएं थीं । उस समय धनुषकोडी में जहाज बनाने का केंद्र, रेल्वेस्थानक, रेल्वे का छोटा अस्पताल, डाक घर और मत्स्यपालन जैसे कुछ शासकीय कार्यालय थे ।

वर्ष १९६४ के चक्रीवात के पूर्व चेन्नई और धनुषकोडी में मद्रास एग्मोर से बोट मेल नाम से जानेवाली रेलवेसेवा थी । आगे श्रीलंका में फेरीबोट से जानेवाले यात्रियों के लिए वह उपयुक्त थी ।

 

धनुषकोडी का विध्वंस करनेवाला वर्ष १९६४ का चक्रीवात !

१९६४ में आए चक्रीवात ने धनुषकोडी का विध्वंस किया । १७ दिसंबर १९६४ को दक्षिणी अंदमान समुद्र में ५ डिग्री पूर्व में उसका केंद्र था । १९ दिसंबर को उसने एक प्रचंड चक्रीवात के रूप में वेग धारण किया । २२ दिसंबर की रात से २७० कि.मी. प्रतिघंटा के वायुवेग से श्रीलंका को पार कर वह धनुषकोडी के किनारे पर आकर टकराया । चक्रीवात के समय आईं २० फुट ऊंची-ऊंची लहरों ने धनुषकोडी शहर के पूर्व में स्थित पवित्र संगम पर से नगर पर आक्रमण किया और पूर्ण धनुषकोडी शहर नष्ट हो गया ।

धनुषकोडी के बसस्थानक के निकट चक्रीवात की बलि चढे नागरिकों का एक स्मारक बनाया गया है । उस पर लिखा है कि अत्यधिक वेग से टकरानेवाली वायु के साथ आए उच्च गति के चक्रीवात में २२ दिसंबर १९६४ की रात प्रचंड हानि हुई और धनुषकोडी उद्ध्वस्त हो गया !

 

चक्रीवात में रेलवे का पुल और रेलगाडी नष्ट !

२२ दिसंबर को अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण रात को ११.५५ बजे धनुषकोडी रेलवेस्थानक में प्रवेश की हुई ६५३ क्रमांक की पंबन-धनुषकोडी पैसेंजर (वह अपनी नियमित सेवा के लिए पंबन से ११० प्रवासी और ५ रेलवे कर्मचारियों सहित निकली थी) इन प्रचंड लहरों के आक्रमणों की बलि चढ गई ! उस समय वह धनुषकोडी रेलवेस्थानक से कुछ मीटर की दूरी पर थी । पूर्ण गाडी ही ११५ लोगों सहित बह गई । पंबन से आरंभ हुआ धनुषकोडी का रेलवेमार्ग १९६४ के चक्रीवात में नष्ट हो गया ! चक्रीवात के उपरांत रेलवेमार्ग की दुर्दशा हो गई और कुछ समय पश्‍चात वह पूर्णतः रेत से ढक गया !

 

प्रचंड वेग से आनेवाला पानी रामेश्‍वरम् के मंदिर के समीप रुक जाना !

यह चक्रीवात आगे-आगे सरकते हुए रामेश्‍वरम् तक आ गया, तब भी ८ फुट ऊंची लहरें उठ रही थीं । इस परिसर के कुल १ सहस्र ८०० हून अधिक लोक इस चक्रीवात की बलि चढ गए थे । स्थानीय लोगों का मत है कि यह आकडा ५ सहस्र तक था । सर्व निवासियों के घर और अन्य वास्तुओं की दुर्दशा हो गई । अब तो उनके केवल भग्नावशेष रह गए हैं । इस टापू पर १० कि.मी. के वेग से हवाएं आईं और पूर्ण शहर उद्ध्वस्त हो गया; परंतु प्रत्यक्षदर्शी कहते हैं कि समुद्र की लहरों के प्रचंड वेग से आनेवाला पानी रामेश्‍वरम् के मुख्य मंदिर के निकट रुका था ! विशेष बात यह है कि सैकडों लोगों ने रामेश्‍वरम् मंदिर में चक्रीवात से बचने के लिए आश्रय लिया था !

 

केवल एक व्यक्ति जीवित शेष रहा !

वर्ष १९६४ के चक्रीवात में धनुषकोडी नगर के सभी लोगों की मृत्यु हो गई । केवल एक ही व्यक्ति बच गया । उसका नाम था कालियामन ! इस व्यक्ति ने समुद्र के चक्रीवात में तैर कर अपने प्राण बचाए; इसलिए सरकार ने उनके नाम पर धनुषकोडी के समीप के गांव का नाम रखकर उसका सम्मान किया । यह गांव ‘निचल कालियामन’ के नाम से जाना जाता है । ‘निचल’ का अर्थ है तैरनेवाला !

 

सरकार द्वारा धनुषकोडी को भूतों का शहर घोषित !

इस संकट के उपरांत तत्कालीन मद्रास सरकार ने आकाशवाणी से धनुषकोडी नगर को भूतों का शहर (Ghost Town) घोषित किया, इसके साथ ही वहां के नागरिकों को वहां रहने से प्रतिबंधित किया । निर्मनुष्य नगर को भूतों का शहर (Ghost Town), नाम से संबोधित किया जाता है । अब केवल कुछ मछुआरे और दुकानदार व्यवसाय के लिए दिनभर जा सकते हैं, परंतु शाम ७ बजने से पहले वहां से लौटना होता है ।

 

रेत और वास्तुओं के भग्नावशेष का नगर !

अब धनुषकोडी नगर पर पूर्णतः (बीच-बीच में समुद्र का पानी और कुछ वनस्पतियां) रेत का साम्राज्य है । आकाश से इस नगर की ओर देखने पर केवल रेत ही रेत दिखाई देती है और इस रेत में जगह-जगह पर वास्तुओं के भग्नावशेष ! जहाजनिर्माण केंद्र, रेलवेस्थानक, डाक घर, अस्पताल, पुलिस और रेलवे बस्ती निवासस्थान, विद्यालय, मंदिर, चर्च आदि के अवशेष स्पष्ठरूप से दिखाई देते हैं ।

 

धनुषकोडी के विकास की उपेक्षा !

धनुष्यकोडी नगर में जाने से पूर्व भाविकों को एकत्रित रूप से दिन में जानेके लिए और सूर्यास्त से पूर्व पुन: लौटने के लिए कहते हैं; इसका कारण यह है कि पूर्ण १५ कि.मी. का रस्ता, निर्मनुष्य और भयावह है । वर्तमान में लगभग ५०० से भी अधिक यात्री प्रतिदिन धनुषकोडी आते हैं । त्यौहार और पूर्णिमा पर यहां सहस्रों की संख्या में यात्री आते हैं । धनुषकोडी की पूजा-अर्चा करने के इच्छुक श्रद्धालुओं को व्यक्तिगत वाहनों के अतिरिक्त अन्य पर्याय नहीं । व्यक्तिगत वाहनों के चालक यात्रियों से ५० रुपयों से लेकर १०० रुपयों तक का किराया लिया जाता है । संपूर्ण देश में रामेश्‍वरम् जानेवाले यात्रियों की मांग पर वर्ष २००३ को दक्षिण रेलवे मंत्रालय द्वारा रामेश्‍वरम् से धनुषकोडी तक १६ कि.मी. रेलवेमार्ग निर्माण करने के लिए एक ब्यौरा भेजा था; परंतु अब तक इस प्रकल्प पर ध्यान नहीं दिया गया ।

 

अयोग्य शासकीय नीतियों के कारण रामसेतु के दर्शन दुर्लभ !

भारतभर से श्रद्धालु धनुषकोडी में केवल पवित्र रामसेतु के दर्शन के लिए आते हैं । धनुषकोडी में आने के उपरांत उन्हें पता चलता है कि रामसेतु के दर्शन लेने के लिए कस्टम की अनुमति लगती है । यह कस्टम कार्यालय रामेश्‍वरम् में है । रामेश्‍वरम् से धनुषकोडी डांबर का मार्ग नहीं था, अत: रेतीला अथवा अनेक बार सागर का कठिन प्रवास करते हुए श्रद्धालु यहां पहुंचते थे । यहां आने के उपरांत उन्हें पुन: अनुमति लेने के लिए १८ कि.मी. का कठिन प्रवास कर पुन: रामेश्‍वरम् जाना, यह श्रद्धालुमार्ग के साथ अन्याय नहीं क्या ? शासन धनुषकोडी में कस्टम का कार्यालय क्यों नहीं खोलती ? इसलिए ९० प्रतिशत श्रद्धालु धनुषकोडी में पहुंचने पर भी पवित्र रामसेतु के दर्शन से वंचित रह जाते हैं ।

 

श्रीलंका से टूटा संपर्क !

भारत-श्रीलंका में सागरी सीमावाद निर्माण होने से धनुषकोडी से थलाईमन्नार में आने-जाने के लिए सागरी यातायात बंद हो गया है । इसलिए इस भाग के हिन्दुमार्ग का श्रीलंका के हिन्दुमार्ग से संपर्क टूट गया । इससे पहले प्रतिदिन सायं ६ बजे श्रीलंका से भारत में दूध आता था और इसी दूध से अगले दिन तडके सवेरे रामेश्‍वर के शिवलिंग पर अभिषेक किया जाता था । यह अनेक वर्षों की परंपरा थी, जो भारत-श्रीलंका में सागरी सीमावाद के कारण लुप्त होने के मार्ग पर है । पहले थलाईमन्नार से धनुषकोडी, ३५ कि.मी का अंतर प्रवास नौका द्वारा करने में २ घंटे लगते थे । अब थलाईमन्नार से कोलंबो तक, ५०० कि.मी. १० घंटों का प्रवास है । कोलंबो से मदुराई विमानसेवा है । यह प्रवास विमान से करने के लिए १ घंटा लगता है । मदुराई से रामेश्‍वरम्, यह प्रवास २०० कि.मी की दूरी तय करने में रेलवे अथवा बस से साढे चार घंटे लगते हैं ।

 

श्रद्धालुओं की परीक्षा लेनेवाला प्रवास !

रामेश्‍वरम् से धनुषकोडी का मार्ग नहीं बना है । इसलिए श्रद्धालुओं को १८ कि.मी. का प्रवास रेत अथवा सागरी जल से करना होता है ।

वर्तमान में रामेश्‍वरम् से धनुषकोडी जाना हो, तो रेतीले अथवा समुद्र से मार्ग बनाते हुए पैदल जाना होता है अथवा व्यक्तिगत वाहन से ! रामेश्‍वरम् में आने के उपरांत रामसेतु के दर्शन लेने की श्रद्धालुओं की इच्छा होती है । इस १८ कि.मी. के अंतर के प्रवास में हेमरपुरम् तक डांबरी रस्ता है । यहां से अगला प्रवास संपूर्ण सागरी किनारे पर रेत अथवा कई बार सागरी किनारे के समीप पानी से वाहन चलाकर ले जाना पडता है । इस ७ कि.मी. के अंतर पर रास्ता ही नहीं बनाया गया है । भारत का प्रमुख तीर्थक्षेत्र होते हुए भी यहां मार्ग न बनाया जाना, यह आश्‍चर्यकारक है । भाविकों को यहां आने की इच्छा होती है । इसलिए वे अत्यंत कठिनाईयों का सामना करते हुए धनुषकोडी तक आते हैं । अधिकांश श्रद्धालु हेमरपुरम् तक ही आते हैं । वहां से अगला मार्ग न होने से वे आगे आने का साहस नहीं करते । जो साहसी होते हैं, वही श्रद्धालु धनुषकोडी तक जाने का प्रयत्न करते हैं । अब तक रामेश्‍वरम् से धनुषकोडी मार्ग क्यों नहीं बनाया गया है, यह प्रश्‍न यहां आनेवाले प्रत्येक श्रद्धालु के मन में आता है । ऐसा प्रतीत होता है कि हिन्दुओं की धर्मभावनाओं को कोई महत्त्व नहीं देना है, यह भारतीय राज्यकर्ताओं के निधर्मीवाद का सिद्धांत ही बन गया है ।

केवल धर्मभावना की दृष्टि से ही नहीं, अपितु राष्ट्रीय एकता की दृष्टि से भी यह मार्ग बनना आवश्यक है । काशी जानेवाले करोडों हिन्दू जाति, भाषा, प्रांत आदि का भेद त्याग कर रामेश्‍वर के दर्शन के लिए आने की आशा रखते हैं । केवल दक्षिण भारत के श्रद्धालु ही नहीं, अपितु कश्मीर सहित उत्तर भारत, असम सहित ईशान्य भारत, बंगाल सहित पूर्व भारत, मुंबई, गुजरात आदि पश्‍चिम भारत के नागरिक यहां दर्शन के लिए आते हैं अथवा आने की इच्छा रखते हैं । धनुषकोडी राष्ट्रीय एकता साधनेवाला नगर है । तमिलनाडु सरकार और केेंंद्रसरकार यह छोटा सा मार्ग बनाकर इस राष्ट्रीय एकता के आधार को क्यों सुदृढ नहीं करती ?

महानगर में मेट्रो ट्रेन आरंभ करने के लिए सहस्रों करोड रुपये खर्च किए जाते हैं; फिर केवल ५०-६० करोड खर्च कर यह मार्ग क्यों नहीं बनाया जा रहा ? कश्मीर में पूंछ से श्रीनगर, इन नगरों में मुगलकालीन मार्ग था । इस मार्ग को इस्लामी संस्कृति की धरोहर संबोधित कर उसका पुनरुज्जीवन करने हेतु सरकार ने करोडों रुपए खर्च किए; फिर १९६४ में उद्ध्वस्त हुए हिन्दुओं के आस्थाकेंद्र से संबंधित इस मार्ग को पुन: बनाने में क्या अडचन है ?

 

तीर्थक्षेत्रों का वास्तविक विकास हिन्दू राष्ट्र में ही होगा !

धनुषकोडी की भीषण वास्तविकता को प्रत्यक्ष देखने पर ध्यान में आता है कि सर्वपक्षीय राज्यकर्ताओं ने भारतीय तीर्थक्षेत्रों की किसप्रकार उपेक्षा की है । काशी को स्मार्ट सिटी बनाने की घोषणा करनेवाले भारत के विकासपुरुष काशी की यात्रा को पूर्णत्व प्रदान करनेवाले धनुषकोडी नगर के साथ भी न्याय करेंगे ? यह प्रश्‍न ही है । हिन्दुओं की असंवेदनशीलता ही इस दुर्गति का एक कारण है । हम हिन्दू यदि ऐसे ही असंवेदनशील रहे, तो आज जो तीर्थक्षेत्र संपन्न हैं, भविष्य में ऐसे अनेक तीर्थक्षेत्रों की अवस्था धनुषकोडी जैसे होगी, यह सभी को ज्ञात होना चाहिए । हिन्दुओं को सरकार से अपने तीर्थक्षेत्रों का विकास करने के लिए, धर्मशाला, रास्ते आदि सुविधाओं के लिए आग्रही मांग करनी चाहिए । हिन्दूहित साधनेवाले धर्माधिष्ठित हिंन्दू राष्ट्र स्थापना, यही खरा तीर्थक्षेत्रों के विकास करने हेतु उपाय है ।

– श्री. चेतन राजहंस
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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