भारत के दक्षिण-पूर्व किनारे पर महत्त्वपूर्ण तीर्थक्षेत्र है रामेश्वरम् ! रामेश्वर के दर्शन के लिए हिन्दू धर्मपरंपरा में विशेष महत्त्व है ।
१. इतिहास
दशग्रंथी ब्राह्मण रावण के वध के उपरांत अगस्ती ऋषि ने प्रभु श्रीराम को ब्रह्महत्यानिरसनार्थ सागर तीर पर ज्येष्ठ शुद्ध दशमी के मुहूर्त पर शिवलिंग की स्थापना करने का आदेश दिया । इस कार्य के लिए भगवान शिव का दिव्य लिंग लाने के लिए हनुमानजी कैलाश गए; परंतु भगवान शिव के दर्शन न होने से उन्होंने तप आरंभ किया । कुछ काल के पश्चात भगवान शिव ने प्रगट होकर हनुमानजी को अपना दिव्य लिंग दिया । इस प्रक्रिया में विलंब होने से हनुमानजी मुहूर्त के समय नहीं पहुंच सके । इसलिए माता सीता ने एक वालुकामय लिंग (बालु से निर्मित) बनाकर दिया । ऋषियों के आदेशानुसार राम ने फिर उसकी ही स्थापना की । यही है वह रामेश्वरलिंग ! स्थानीय लोग उसे रामनाथस्वामी कहते हैं ।
हनुमानजी ने पहुंचने पर जब श्रीरामजी द्वारा स्थापित हुआ लिंग देखा, तो उन्हें बहुत दुःख हुआ । फिर राम ने हनुमानजी से स्थापित लिंग के समीप ही उनके द्वारा लाए लिंग की स्थापना करने के लिए कहा । इसके साथ ही उन्होंने कहा, उनके द्वारा स्थापित इस लिंग के दर्शन लिए बिना श्रद्धालुओं को रामेश्वरदर्शन का फल नहीं मिलेगा । इस लिंग को काशीविश्वनाथ अथवा हनुमदीश्वर भी कहते हैं ।
२. क्षेत्रमाहात्म्य
२ अ. काशीयात्रा को पूर्णत्व प्रदान करनेवाला तीर्थस्थान !
उत्तर भारत में जो काशी का धार्मिक महत्त्व है, वही महत्त्व दक्षिण भारत में रामेश्वर को है । धर्मग्रंथ के अनुसार काशी की तीर्थयात्रा बंगाल का उपसागर (महोदधि) और हिंदी महासागर (रत्नाकर) के संगम पर स्थित धनुषकोडी में स्नान करने पश्चात काशी के गंगाजल से रामेश्वर को अभिषेक करने के उपरांत ही पूर्ण होता है ।
२ आ. चारधाम यात्रा का एक धाम !
रामेश्वरम् हिन्दुओं के पवित्र चारधाम यात्रा में से दक्षिणधाम है । हिन्दुओं की जीवनयात्रा की पूर्णता बद्रीनाथ, द्वारका, पुरी और रामेश्वरम्, ऐसे चार धामों की यात्रा के उपरांत ही होती है ।
२ इ. बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक ज्योतिर्लिंग !
रामेश्वर, भारतवर्ष के १२ प्रमुख ज्योतिर्लिंगों में से एक है ।
३. मंदिर के विशेष स्थान
३ अ. रामेश्वर (रामनाथस्वामी)
सीता द्वारा बालू से बनाए गए शिवलिंग मुख्य दर्शनस्थान है ।
३ आ. विश्वनाथ (हनुमदीश्वर)
यह हनुमानजी द्वारा लाए गए शिव का आत्मलिंग है ।
३ इ. आत्मलिंगेश्वर
प्रभु श्रीराम की पूजा के लिए आत्मलिंग मंगाते समय हनुमान ने शिव से अपने लिए भी एक आत्मलिंग मांगा । यह शिवलिंग आत्मलिंगेश्वर के रूप में पहचाना जाता है ।
३ ई. नंदीदेव
रामेश्वरलिंग के सामने ही मृण्मय (मिट्टी से बनाई गई) और श्वेतवर्णीय नंदी भगवान की विशाल मूर्ति है । इस मूर्ति की ऊंचाई २२ फुट और लंबाई १७ फुट है । उसके लिए मंदिर के अंदर ही एक मंडप भी है । इस नंदी की ऊंचाई, लंबाई और चौडाई में दिनोंदिन वृद्धि होने से अब उनका मस्तक मंडप की छत को टेक रहा है । १९७४ में इस नंदी की ऊंचाई १३ फुट और लंबाई ८ फुट थी ।
३ उ. गरुडस्तंभ
नंदीदेव के समीप ही सुवर्ण-पात्र से मढा हुआ गरुडस्तंभ है ।
३ ऊ. आंजनेय (आंजन) मंदिर
यहां १६ फुट की हनुमान की स्वयंभू मूर्ति है । उसका नीचे का ८ फुट भाग हिंदी महासागर में है और ऊपर का ८ फुट भाग मंदिर में दर्शन के लिए दिखाई देता है । (मंदिर सागरी किनार पर होने से मंदिर के नीचे के भाग में समुद्रजल है ।)
३ ए. २२ तीर्थ
रामेश्वर मंदिर में कुल २२ तीर्थ हैं, जिनमें से ६ तीर्थ सबसे बाहर के तीसरे दालान में हैं । इन सभी तीर्थों में स्नान करने के उपरांत ही रामेश्वर का पूजन, अर्चन और दर्शन करना होता है ।
३ ऐ. रामकुंड, सीताकुंड और लक्ष्मणकुंड
ये कुंड देवालय के बाहर हैं । इन्हीं कुंडों पर यात्री स्नान, श्राद्धविधि इत्यादि धार्मिक कृत्य करते हैं ।
४. यात्राविधि
भाविक यात्री यहां के सभी पवित्र तीर्थों में क्रम से स्नान करते हैं और तदुपरांत रामेश्वर को काशी से लाए गंगाजल से अभिषेक करते हैं । इसके साथ ही रामेश्वर से बारह मील दूर स्थित सेतुबंध से सेतु (बालू) लाकर, उसे सेतु रामेश्वर के मंदिर में सेतुमाधव के निकट रखकर उसकी पूजा करते हैं । यह सेतु प्रयाग के त्रिवेणीसंगम में विधिपूर्वक विसर्जित करने के उपरांत ही यह यात्रा वास्तविकरूप में संपन्न होती है ।
५. हिन्दूएकता साधनेवाले पुण्यस्थल !
५ अ. सांप्रदायिक एकता का प्रतीक !
भारत के सर्व धर्मस्थल शैव और वैष्णव संप्रदायों में विभाजित हैं । परंतु रामेश्वरम् अपवाद है । यह शैव और वैष्णव, इन दोनों संप्रदायों के लिए वंदनीय है । विष्णु के सातवें अवतार प्रभु श्रीराम ने साक्षात् रामेश्वर की स्थापना की थी, इसलिए यह स्थान शैवक्षेत्र होने पर भी वैष्णवों के लिए वंदनीय है । प्रभु श्रीराम के स्थापना करने के कारण यहां के शिवलिंग को रामेश्वर कहते हैं ।
५ आ. राष्ट्रीय एकता का प्रतीक !
रामायण के काल से लेकर आज तक रामेश्वरम्, भारत की एकात्मता का प्रतीक पुण्यस्थल है; इसलिए कि काशी विश्वेश्वर की यात्रा रामेश्वर के दर्शन के बिना पूर्ण नहीं होती है । इसी से यह ध्यान में आता है कि हिन्दू धर्म में भारत को एक सूत्र में बांधने की अद्भुत परंपरा है । इन परंपराओं के कारण ही यहां बारह महीने यात्रियों की भीड रहती है और सहस्रों वर्षों से अनंत आघात होकर भी आसेतुहिमाचल भारतवर्ष की एकता टिकी है ।
६. रामेश्वर मंदिर
६ अ. इतिहास
इस मंदिर का निर्माण प्रमुखरूप से रामनाड के (वर्तमान के रामनाथपुर के) सेतुपती राजघराने ने की है । सांप्रत का मंदिर वर्ष १४१४ में उदयन सेतुपती राजा ने लंका के राजाधिपति परराजशेखर की सहायता से बनाया था और अगले साढ तीन सौ वर्षों तक सेतुपती घराने के राजपुरुषों ने ही इसका विस्तार किया । भगवान की पहली पूजा इसी राजघराने की होती है । यहां के उपाध्ये महाराष्ट्रीय ब्राह्मण हैं ।
६ आ. मंदिर के वास्तु की भव्यदिव्यता !
यह मंदिर इतना बडा और भव्य है कि इसके विस्तार और भव्यता के संदर्भ में उसकी बराबरी करनेवाले अन्य कोई दूसरा मंदिर भारत में नहीं है । मंदिर द्राविड शिल्पपद्धति से निर्माण किया गया है । मंदिर का क्षेत्रफल १५ एकड भूमि पर है । मंदिर का प्रांगण उत्तुंग दीवार से घिरा है । इस आवार की पूर्व-पश्चिम लंबाई ८२५ फुट और दक्षिणोत्तर चौडाई ६५७ फुट है । मंदिर के चारों ओर चार गोपुर हैं । उनमें से पूर्वद्वार पर जो गोपुर है, वह दस माले का और पश्चिम द्वार पर गोपुर सात माले का है । चारों गोपुरों पर असंख्य मूर्तियां कोरी गई हैं । अंदर के मंदिर में तीन विस्तीर्ण दालान हैं जो भव्य स्तंभों की पंक्तियों से विभाजित हैं । इन दालानों की ऊंचाई इतनी है कि भगवान की उत्सवमूर्ति हाथी के अंबारी सहित चलने पर भी छत के झूमरों और दीपकों का अंबारी का धक्का नहीं लगता । प्रत्येक दालान की लंबाई ४०० फुट और चौडाई १७ से २१ फुट है । इन दालानों के बनाने में उपयोग की गई अनेक शिलाएं चालीस-चालीस फुट लंबी हैं ।
अत्यंत सुंदर लेख है| आपने सभी विषय जैसे स्थल, काल, वास्तु, एवं आध्यात्मिक महत्त्व सरल शब्दों में समझाया है|