‘शिवखोरी’ गुफा का इतिहास !
१. शिवभक्त भस्मासुर का शिव से अमरत्व पाने के लिए कठोर तपश्चर्या करना,
शिवजी द्वारा अन्य ‘वर’ मांगने के लिए कहने पर भस्मासुर का ‘मैं जिस किसी के भी
सिर पर तर्जनी रख दूं, वह भस्मसात हो जाए’, ऐसा वर मांगना और शिवजी का ‘तथास्तु’ कहना
शिवभक्त भस्मासुर द्वारा शिव से अमरत्व पाने के लिए कठोर तपश्चर्या की । उसकी तपश्चर्या पर प्रसन्न होकर शिव ने उससे ‘वर’ मांगने के लिए कहा । तब भस्मासुर शिवजी से ‘अमरत्व’ मांगता है । उस समय शिवजी कहते हैं, ‘‘अमरत्व देना संभव नहीं । कोई अन्य वर मांग लो ।’’ तब भस्मासुर ने वर मांगा ‘मैं जिस किसी के सिर पर अपनी तर्जनी रख दूं, वह भस्मसात हो जाए ।’ शिवजी उसे ‘तथास्तु’ कहते हैं ।
१ अ. शिवजी से मिले वरदान के कारण उन्मत्त भस्मासुर शिवजी को ही भस्मसात करने की ठान लेना, श्रीमहाविष्णु द्वारा अपने सुदर्शनचक्र की सहायता से गुफा निर्माण करना, शिव, पार्वती और नंदी सहित सभी देवी-देवता एवं सप्तर्षि का गुफा में आना एवं कामधेनु का उस गुफा की रक्षा करना
शिवजी से मिले वरदान से उन्मत्त भस्मासुर शिवजी को ही भस्म करने आता है । तब शिवजी महाविष्णु के पास जाते हैं । तब महाविष्णु शिव से कहते हैं, ‘‘आप पार्वती और नंदी को लेकर कैलास छोड दो ।’ हिमालय के एक सुरक्षित पर्वत पर श्रीविष्णु की आज्ञा से कामधेनु गाय रास्ता बनाती है और वहां श्री महाविष्णु का सुदर्शनचक्र गुफा की निर्मिति करते हैं । इस गुफा में शिव, पार्वती और नंदी सहित सर्व देवी-देवता और सप्तषि जाते हैं । तत्पश्चात कामधेनु उस गुफा का प्रवेशद्वार बंद कर देती है और अपने परिवार सहित गुफा की रक्षा करती है । यही हैं वह ‘शिवखोरी’ गुफा !
१ आ. भस्मासुर को नष्ट करनेवाला श्रीमहाविष्णु का मोहिनी रूप !
यहां श्रीमहाविष्णु समुद्रमंथन के समय धारण किया गया मोहिनी रूप लेकर भस्मासुर के सामने आते हैं । भस्मासुर मोहिनी को देखते ही सब कुछ भूल जाता है और उसके सौंदर्य की ओर आकर्षित होता है । भस्मासुर मोहिनी के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखता है । तब मोहिनी कहती है, ‘‘मुझे तुम नृत्य सीख सके, तब भी मैं तुमसे विवाह करूंगी ।’’ भस्मासुर तुरंत ‘हां’ कहता है । मोहिनी भस्मासुर को नृत्य सिखाने लगती है । मोहिनी जो कुछ सिखाती, वह सर्व भस्मासुर बिल्कुल वैसे का वैसा करके दिखाने लगता है । ऐसे कुछ दिन बीत जाते हैं । भस्मासुर मोहिनी की मोहमाया में संपूर्णरूप से फंस गया था । मोहिनी ने इसका लाभ उठाते हुए नृत्य करते-करते अपने सिर पर तर्जनी रखने की मुद्रा सिखाती है । भस्मासुर के वैसा करते ही वह उसी क्षण भस्म हो जाता है !
तदुपरांत शिव-पार्वती और नंदी पुन: कैलास पर्वत पर जाते हैं । शिव जिस दिन कैलास छोडकर ‘शिवखोरी’की गुफा में आते हैं, वह दिन था ‘वैशाख पूर्णिमा’ । अनेक भक्त वैशाख पूर्णिमा पर ‘शिवखोरी’ की यात्रा करते हैं ।
२. महर्षि मयन द्वारा बताया गया ‘शिवखोरी’ गुफा का रहस्य !
हम सद्गुरु गाडगीळकाकू के साथ ‘शिवखोरी’ गुफा के बाहर पहुंचे तो महर्षि मयन ने पू. डॉ. ॐ उलगनाथन्जी के माध्यम से कहा, ‘‘पृथ्वीपर ऐसे ५ स्थान हैं जहां भगवान शिव अवतरित हुए १. कैलास पर्वत (तिबेट, चीन), २. पशुपतिनाथ (नेपाल), ३. केदारनाथ (उत्तराखंड), ४. अमरनाथ (कश्मीर) और ५. शिवखोरी (जम्मू).’’
भगवान शिव के पृथ्वी पर ५ स्थानों में से यह एक स्थान है । भगवान शिव कैलास छोडकर कभी कहीं नहीं जाते हैं । इस अवसर पर कैलास छोडकर शिवजी को पार्वती और नंदी के साथ एक गुफा में रहने जाना पडा । वह गुफा है शिवखोरी की गुफा । यह सहस्रों वर्षों पूर्व हुआ होगा । जिसप्रकार श्रीमहाविष्णु के ‘सत्यनारायण’ रूप में ३३ करोड देवी-देवता और सर्व ऋषि-मुनि समाहित हैं, उसीप्रकार ‘शिवखोरी’ गुफा में भी शिव-पार्वती, लक्ष्मी-नारायण, ब्रह्मा-सरस्वती, ३३ करोड देवी-देवता और सर्व ऋषि-मुनि समाहित हैं ।
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