‘वर्तमान में कोरोना विषाणुओं के कारण संपूर्ण जगत में उथल-पुथल मच गई है । इस विषाणु ने सभी को दहला दिया है । ‘इस प्रकार की आपदाओं से ईश्वर को क्या सिखाना है ? हिन्दू धर्म और धर्माचरण का क्या महत्त्व है ? साधना करने के लिए प्रयत्नों की पराकाष्ठा क्यों करनी चाहिए ?’ इस विषय में कुछ सूत्र आगे दिए हैं ।
१. कोरोना विषाणुओं के संकट का सामना
करने के लिए ईश्वर की ही शरण में जाना आवश्यक होना
वर्तमान में स्थिति ऐसी है कि ‘कोरोना विषाणुओं के इस भयंकर संकट का सामना करने के लिए ईश्वर की ही शरण में जाना आवश्यक है ।’, इस संकट के माध्यम से मनुष्य अपने प्रारब्धभोग काट रहा है । प्रारब्ध भोगने की इस प्रक्रिया में यदि मानव सर्वशक्तिमान ईश्वर की शरण में जाए, तो कृपालु, दया के सागर और प्रीतिमय ईश्वर उसे प्रारब्ध भोगने की शक्ति देकर उसके भोग सुसह्य कर देते हैं ।
२. इस आपदा के माध्यम से भगवान ने की अपार कृपा !
अ. सार्वजनिक स्थानों पर, विद्यालय-महाविद्यालय, रेलगाडी, बस और बसस्थानक, महामार्ग इत्यादि स्थानों पर अच्छे ढंग से स्वच्छता करना प्रारंभ कर दिया है । उसका सभी को लाभ होगा ।
आ. सार्वजनिक स्थानों पर आने-जानेवालों पर बंदी होने से प्रत्येक जन काफी समय तक अपने कुटुंबियों के साथ ही रहनेवाले हैं । इससे उनकी आपस में निकटता बढेगी ।
इ. जागतिक महासत्तावाले राष्ट्रों का इस आपदा के कारण अहंकार कम होना आरंभ हुआ । भगवान ने एक प्रकार से सबक ही सिखाया है, जो अपने अहंकारवश सोचते थे कि बुद्धि और संपत्ति के बलबूते मैं कुछ भी कर सकता हूं ।
३. कोरोना की आपदा के कारण काल की कसौटी पर
सिद्ध हुआ हिन्दू धर्माचरण का महत्त्व, श्रेष्ठत्व और अलौकिकत्व !
३ अ. शाकाहार करना
अनेक लोगों ने मांसाहारी भोजन बंद कर शाकाहारी भोजन आरंभ किया है । इससे उनका तमोगुणी आहार बंद होकर, सत्त्वगुणी आहार आरंभ हो गया है ।
३ आ. घर का सात्त्विक अन्न खाना
सार्वजनिक उपाहारगृह और मद्यालय बंद रहने से लोगों को बाहर का खाना-पीना बंद हो गया है । इसके परिणामस्वरूप मनुष्य घर का सात्त्विक अन्न ग्रहण करेगा और उसकी सात्त्विकता बढेगी ।
३ इ. ध्यानधारणा और योग करना
ऐसी आपातकालीन परिस्थिति का सामना करने के लिए जग के अनेक सुविख्यात विद्यापीठों ने सूचना दी है कि हिन्दू धर्म में बताए अनुसार ‘ध्यानधारणा और योगासन करें ।’
३ ई. एकदूसरे से मिलने पर नमस्कार करना
एकदूसरे को मिलने पर हस्तांदोलन करना, चुंबन देना और लेना इसप्रकार के अपप्रकार बंद कर मनुष्य अपनेआप ही हिन्दू धर्मानुसार ‘नमस्कार’ करने लगा है । इससे कोरोना जैसे संसर्गजन्य रोगों से रक्षा तो होती ही है, इसके साथ ही अनिष्ट शक्तियों के कष्टवाले लोगों से भी रक्षा होती है और योग्य धर्माचरण करने से उसका लाभ भी होता है ।
४. भगवान ने ही हिन्दू धर्म का अभ्यास करने के लिए मनुष्य को
बाध्य करना और अत्यंत अल्प समय में जगभर में हिन्दू धर्म का प्रसार होना
भगवान ने ही इस आपदा के माध्यम से जग में सभी को अप्रत्यक्षरूप से हिन्दू धर्माचरण सिखाना आरंभ किया है । यह भगवान की मानव पर की हुई कृपा ही है । ‘संपूर्ण जगभर में हिन्दू धर्म द्वारा बताई गईं सभी बातें कितनी योग्य हैं ?’, इसका नए सिरे से अभ्यास आरंभ भी हो गया है । अब तक सभी पश्चिमी लोग और भारत के बद्धिजीवी कहते थे कि ‘ये सभी बातें पिछडेपन की हैं । इन्हें तिलांजली दे देनी चाहिए ।’ अब केवल इस एक प्रसंग से भगवान ने उन्हें हिन्दू धर्म के इन संस्कारों और परंपराओं का महत्त्व ध्यान में लाकर दिया है । भगवान ने ही अल्प समय में महान हिन्दू धर्म का जगभर में प्रसार किया ।
इससे आगे कुछ जिज्ञासु हिन्दू संस्कृति का अभ्यास कर उसे स्वीकारना आरंभ करेंगे । इसप्रकार ‘बुराई में भी कुछ तो अच्छाई छिपी होती है ।’ यह हम अब अनुभव कर पाएंगे । गीता के वचनानुसार ‘जो होता है, वह सदैव हमारे भले के लिए ही होता है’, इसका सभी को अनुभव होगा ।
५. कोरोना की आपदा के कारण आजकल सर्व व्यवहार बंद हो जाने से
अब मनुष्य को गांव में प्रचलित भारतीय पद्धति का महत्त्व ध्यान में आएगा
कोरोना की आपदा से आज सर्व व्यवहार बंद होते जा रहे हैं । मनुष्य विचलित हो रहा है कि ‘अब हमारा क्या होगा ?’, ‘कल गाडियां बंद होने पर खाद्यपदार्थ कहां से लाएंगे ? उदरनिर्वाह कैसे करेंगे ?’ इत्यादि । तब सभी को भारतीय संस्कृति का महत्त्व ध्यान में आएगा । पहले प्रत्येक गांव में बढई, कुम्हार, चरवाहे, नाई, धोबी, कुम्हार, चमार, तेली, केवट (मल्लाह), लोहार इत्यादि होते थे । प्रत्येक गांव पहले स्वावलंबी था । यथासंभव गांव की सर्व आवश्यकताओं की आपूर्ति गांव में ही हो जाती थी । गांव में अन्यों पर बहुत निर्भर नहीं रहना पडता था । परंतु, आज मानव पराकोटि परावलंबी हो गया है, कुछ काल व्यवहार ठप्प होने पर अब उसके लिए जीना कठिन हो रहा है ।
इस संकटकाल में पुन: एक बार भारतीय पारंपरिक जीवनपद्धति का अभ्यास होगा और उसका महत्त्व संपूर्ण विश्व को ध्यान में आएगा ।
६. भीषण आपातकाल में ईश्वर की भक्ति और साधना ही उद्धार कर सकती है ।
इस भीषण आपातकाल से बाहर निकलने के लिए ‘भगवान की भक्ति करना और साधना करना’ इसके अतिरिक्त दूसरा मार्ग ही नहीं है । काल वेग से आगे बढ रहा है । अब बिना समय गंवाए अपने जीवन का परम कल्याण करने के लिए ईश्वर द्वारा बताए गए नियमों अनुसार आचरण करेंगे, अर्थात हिन्दू धर्मानुसार आचरण कर भगवान की शरण जाएंगे और साधना करने के लिए प्रयत्नों की पराकाष्ठा करेंगे । इसी में मेरा, समाज का, राष्ट्र का और विश्व का कल्याण है !’
– (सद्गुरु) श्री. राजेंद्र शिंदे, सनातन आश्रम, देवद, पनवेल. (१७.३.२०२०)
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