आपातकालीन परिस्थिति का सामना करने के लिए की जानेवाली तैयारी

भारत में आनेवाले आपातकाल का सामना करने के लिए प्रशासन पर निर्भर न रहते हुए नागरिकों को अपने स्तर पर तैयारी करनी चाहिए । इसका कारण यह है कि यहां प्रशासन का कार्यभार कितनी मंद गति और गैरजिम्मेदारी से होता है, यह हमने संपत्काल में भी अनुभव किया ही है ।

आनेवाले काल में प्राकृतिक आपदाओं का सामना करने के साथ-साथ युद्धजन्य परिस्थिति का सामना करना पडेगा तथा दंगे, आगजनी जैसी मानवी आपदाएं आएंगी । भारत के हिन्दुओं को इन सभी का भारी मात्रा में सामना करना होगा । इसके लिए सामान्य व्यक्तियों के साथ-साथ साधकों को भी अगली तैयारी करनी होगी ।

 

१. विस्थापित जीवन जीने की तैयारी करना

‘विस्थापित हिन्दू छावनियों में किसप्रकार का जीवन व्यतीत कर रहे हैं ? वहां उन्हें कौन-सी समस्याओं का सामना करना पड रहा है ?, क्या-क्या असुविधाएं हो रही हैं ? इत्यादि, का अनुभव लेने के लिए साधकों के गुटों को विस्थापित हिन्दुओं की छावनियों में जाकर उनकी परिस्थिति का अभ्यास करना चाहिए । इससे हिन्दुओं के साथ-साथ साधकों को भी विस्थापित जीवन जीने की प्रथम मानसिक तैयारी और फिर स्थूल स्तर पर शारीरिक तैयारी होगी, जैसे तंबू कैसे बनाना है ? वहां रहने के लिए किन-किन साहित्य की आवश्यकता होती है ? वहां रहते हुए और किन बातों का ध्यान रखना होगा ? वहां व्यक्ति और साहित्य का कैसे ध्यान रखना चाहिए ? खाने-पीने के संदर्भ में कौन-सी बातें टाली जानी चाहिए और कौन-सी की जानी चाहिए ? इत्यादि ।

 

२. विविध आपदाओं में सरकार से सहायता मिलने तक अपने स्तर पर प्रयत्न करना

किसी भी प्रकार की आपदा में सरकार से सहायता मिलने में ढिलाई हो, तो हमें भी तैयार रहना चाहिए । इसलिए सरकारी सहायता मिलने तक औषधोपचार, प्रथमोपचार, सुरक्षितता के लिए उपाययोजना, सुरक्षा, पानी और खाद्यपदार्थ भंडार (स्टॉक) उपलब्ध करवाना, जैसी अनेक बातों के लिए हिन्दुओं को परिश्रम करना होगा । इसके लिए हिन्दुत्वनिष्ठ और साधकों को ‘आपातकालीन विभाग’ स्थापित कर इस विभाग में अधिकाधिक युवा और सक्रिय व्यक्तियों को नियुक्त किया जाए । इसके साथ ही राष्ट्र में विविध स्थानों पर आनेवाली इन नैसर्गिक और मानवी आपदाओं में पीडितों की सहायता करने के लिए आपातकालीन विभाग के अधिकाधिक युवाओं को सहायता के लिए भेजना चाहिए ।  इससे आपदाजन्य परिस्थिति का सामना करने के लिए प्रत्यक्ष अभ्यास इस गुट का होगा । इस गुट का अपने अनुभवों का अभ्यास कर अन्यत्र रहनेवाले साधक और हिन्दुत्वनिष्ठों के लिए  प्रशिक्षण के शिविरों का आयोजन कर प्रायोगिक स्तर पर प्रशिक्षण देकर तैयार करना चाहिए ।

 

३. आपातकाल में संरक्षण दल तैयार करना

आपातकालीन साहित्य की चोरी होना, आपदा आने के उपरांत संभाव्य परिस्थिति का अपलाभ उठाने के लिए गुंडों का पीडितों पर आक्रमण कर लूटपाट करना, साहित्य लेकर भाग जाना, इसके साथ ही मारपीट करना, जैसी घटनाएं भारत में होने की संभावना अधिक हैं । दरिद्रता और प्रशासन की असफलता जैसे कारणों से स्थानीय लोगों का गलत मार्ग से अपना उदरनिर्वाह करने की संभावना अधिक हो जाती है । इससे इस प्रकार के आक्रमणों की संभावना हो सकती है । परिणामस्वरूप आई आपदाओं में यह नई समस्या बढ जाने से परिस्थिति अधिक जटिल हो जाती है । इसका सक्षमरूप से सामना करने के लिए ही आपातकाल में गुंडों से सुरक्षा करने के लिए विशेष ‘संरक्षक दल’की तैयारी भी पहले से ही करनी चाहिए । संरक्षण दल आपातकालीन विभाग का ही एक अविभाज्य अंग होगा । संरक्षक दल को स्वसुरक्षा के साथ ही आपातकालीन सहायता, ऐसे दोनों प्रकार की सहायता करनी होंगी ।

 

४. आपातकाल में विशेष सहायता करना आवश्यक

महिलाओं को पीडित हिन्दुओं में से किसी गर्भवती स्त्री की प्रसूति करने की तैयारी बिना किसी वैद्यकीय सहायता उपलब्ध होते हुए रखनी चाहिए ।

 

५. निरीक्षण दल तैयार करना

पीडितों का देश के अन्य भागों से शीघ्र संपर्क स्थापित कर सहायता प्राप्त करना, इसके साथ ही किस दिशा से आपदाओं का नया संकट आ सकता है, इस ओर ध्यन रखना, इसके लिए निरीक्षण दल तैयार करना भी आपातकालीन विभाग के अंतर्गत होना चाहिए ।’

– कु. मधुरा भोसले, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.

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