१. मूर्ति
कोल्हापुर शहर में एकमुखी दत्त मंदिर की दत्त मूर्ति १८ वीं शताब्दी में बनी और नृसिंह सरस्वती महाराज, गाणगापुर; श्रीपाद वल्लभ महाराज और तदुपरांत स्वामी समर्थ ने इस मूर्ति की पूजा की है । मूल मूर्ति उत्तर भारत की है और उसकी प्रतिष्ठापना किसने की ?, इसकी जानकारी उपलब्ध नहीं है । पू. मौनी महाराजजी ने (पाटगांव, जि. कोल्हापुर) मंदिर का जीर्णोद्धार किया । शके १८८६ मध्ये श्री. पांडुरंग गोविंदराव भोसले और वर्ष १९९७-९८ में श्री. अमोल जाधव ने मंदिर का जीर्णोद्धार किया ।
२. मूर्ति का वर्णन
पूर्ण मूर्ति महादेव लिंग के आकार में एक ही पाषाण की होने से ५ फुट (पूर्ण पुरुष) की है । मूर्ति पश्चिमाभिमुख है और दाईं ओर के एक हाथ में जपमाला, दूसरे हाथ में कमंडल, तीसरे हाथ में डमरू और बाईं ओर के एक हाथ में त्रिशूल, दूसरे हाथ में शंख और तीसरे हाथ में योगदंड है । मूर्ति के मस्तक पर शिवपिंडी है । मूर्ति पत्थर के चबूतरे पर स्थापित है । मंदिर के सामने नंदी सहित महादेव मंदिर है ।
३. गुरुपीठ और मंदिर पंचायतन
इस परिवार को मंदिर पंचायतन संबोधित किया जाता है । श्रीविष्णु मंदिर, नरसिंह मंदिर, ओंकारेश्वर मंदिर, विठ्ठल मंदिर और श्रीराम मंदिर । ऐसी मान्यता है कि (एकमुखी) श्री दत्त मंदिर पूर्ण गुरुपीठ और अवधूतस्वरूप है । मंदिर के समीप ही दक्षिण ओर १ सहस्र वर्ष पहले का पीपल वृक्ष है । इस पीपल वृक्ष में बरगद, गूलर और अन्य दो वृक्ष एक ही जड से आए हैं । वटवृक्ष, दत्तमंदिर की ओर झुका है, जबकि पीपल दक्षिण की ओर हनुमान मंदिर पर झुका है और उसमें जटाएं नहीं हैं । पीपल के वृक्ष में औदुंबर (गूलर ) समान फल आते हैं ।
४. शिलालेख
दत्तमंदिर की दत्तमूर्ति के पीछे के खंबे पर एक शिलालेख है । वर्तमान में उस पर लिखा मिटा दिया गया है । ओंकारेश्वर मंदिर में एक, श्रीराम मंदिर की सीढी पर एक, नरसिंह मंदिर की फर्श पर एक साथ जुडे २ और विष्णु मंदिर की छत पर एक, ऐसे कुल ६ शिलालेख इस मंदिर पंचायतन परिसर में हैं ।
५. दत्तयाग का स्थान खुदाई कार्य के समय मिले ७०० वर्ष प्राचीन यज्ञकुंड
५.१२.२०१४ को प्रात: ४ बजे के आसपास मुझे दत्त महाराज ने स्वप्न में आदेश दिया, मेरी धूनी शाश्वत करो ! उस समय मुझे इसका अर्थ समझ में नहीं आया । अभ्यास कर जिस स्थान पर १६.११.२०१४ से ६.१२.२०१४ तक दत्तयाग यज्ञ किया था, उस स्थान पर १७.१२.२०१४ को सवेरे खुदाई प्रारंभ की । खुदाई करते समय उसी दिन लगभग ११.४५ बजे यज्ञकुंड दिखाई दिया । ढाई फुट खुदाई करनी पडी । खुदाई करते समय जैसे-जैसे नीचे जा रे थे, वैसे-वैसे उष्णता बढती जा रही थी । इससे यहा ध्यान में आया कि वहां वास्तव में धूनी होगी । ऐसा प्रतीत होता है कि यह यज्ञकुंड ७०० वर्ष प्राचीन होगा । इस स्थान पर दुर्वासाऋषि ने साधना की होगी । तब से ही वहां धूनी है ।