रज-तम के वातावरण में (विदेश) रहकर आपने की साधना ।
भाव और भक्ति के बल पर गुरुमंत्र की अखंडित आराधना ॥
निरपेक्षता और त्यागी वृत्ति, यह आपकी पहचान दैवी ।
इसीलिए तो श्रीहरि ने विराजित किया संतपदी ॥
सनातन आश्रम, रामनाथी (गोवा) – ‘यदि हममें ईश्वर के प्रति भाव, साधना करने की लगन और वर्तमान में रहना आदि दैवीय गुण हैं, फिर भले ही इस जगत में हम कहीं भी हों, हम आध्यात्मिक उन्नति कर सकते हैं । इसका आदर्श उदाहरण हैं मूलत: दीव की (गोवा, दमन एवं दीव समूह) ६७ वर्षीय श्रीमती कैलाशकुमारी महेशचंद्र सोलंकी जो गत १८ वर्षों से इंग्लैंड में निवास कर रही हैं ! मडगांव (गोवा) के ६९ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर के सनातन संस्था के साधक डॉ. मनोज सोलंकी की मौसी, श्रीमती कैलाशकुमारी सोलंकी ने संतपद प्राप्त करने की घोषणा रामनाथी, गोवा के सनातन के आश्रम में १५ मार्च को हुए एक कार्यक्रम में हुई । उनके भानजे डॉ. मनोज सोलंकी ने ही यह घोषणा अत्यंत भावपूर्ण की । यह आनंदवार्ता सुनते ही उपस्थित साधकों का भावजागृत हुआ । सनातन संस्था की सद्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळ ने उन्हें सम्मानित किया । इस मंगल बेला पर पू.(श्रीमती) सोलंकी के पति श्री. महेशचंद्र रायचंदी सोलंकी, पू.(श्रीमती) सोलंकी की चचेरी बहन अर्थात डॉ. मनोज सोलंकी की मां श्रीमती इंदिरा सोलंकी और उनके पति श्री. वसंतलाल सोलंकी भी उपस्थित थे ।
इस अवसर पर पू.(श्रीमती) सोलंकी बोलीं, ‘‘मैं स्वयं को भाग्यशाली समझती हूं । मैं कुछ भी सेवा नहीं करती । एक सर्वसामान्य गृहिणी हूं । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के रूप में मुझे पुन: अपने गुरु मिल गए । उन्हें देखकर ऐसा लगा ही नहीं कि मैं उनसे पहली बार मिल रही हूं । ऐसे लगा जैसे मैं उनसे पहले से ही जुडी हूं । उनसे मिलकर, यहां आकर मेरा जीवन धन्य हो गया ।’’
पू. (श्रीमती) सोलंकी अपने पति के साथ उनके भांजे और सनातन संस्था के ६९ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त साधक डॉ. मनोज सोलंकी के घर आईं थीं । डॉ. सोलंकी उन्हें रामनाथी स्थित सनातन का आश्रम देखने के लिए लाए थे । इस अवसर पर उन्हें आश्रम में चल रहे कार्य के विषय में जानकारी दी गई ।’