इसी कडुनिंब के पेड के नीचे प.पू. टेंबे स्वामी की कुटी थी । उसी पेड के पत्ते उस समय मिठे लगते थे ।
दत्तावतारी प.प. वासुदेवानंद टेंबे स्वामी ने वर्ष १९१४ में गुजरात जनपद के गरुडेश्वर (जनपद नर्मदा) में समाधी ली थी । नर्मदा नदी के किनारे पर इस तीर्थक्षेत्र के निकट ही नर्मदेश्वर महादेव का मंदिर है । नर्मदा परिक्रमा करते समय इन दोंनो तीर्थस्थलों का दर्शन किया जाता है ।
प.पू. श्री. टेंबे स्वामी महाराज संन्यासधर्म के आदर्श आचार्य थे । प्रत्यक्ष भगवान दत्तात्रेय प्रभु ही उनके रूप में अवतारित हुए हैं तथा उन्होंने श्रीदत्त संप्रदाय को ठीक प्रकार से जतन किया है । उन्होंने ही नृसिंहवाडी, औदुंबर, गाणगापुर इन दत्तस्थानों पर आचारसहिंंता का आयोजन किया है तथा स्वयं की आरंभ उपासना को उचित दिशा एवं अधिष्ठान प्राप्त कर दिया है । उन्होंने श्री श्रीपाद श्रीवल्लभ स्वामी का जन्मस्थान पिठापुर तथा श्रीनृसिंह सरस्वती स्वामी का जन्मस्थान-कारंजा, इन दोनों स्थानों को ढूंढकर वहां भी उपासना की । उनकी ‘शांत हो श्रीगुरु दत्ता, मम चित्ता शमवी आता ।’ इस करुणात्रिपदी का गायन अनेक दत्तभक्त प्रतिदिन करते हैं । उनकी प्रकांड विद्वत्ता एवं विलक्षण बुाद्धिमत्ता का विलोभनीय दर्शन उनके पृथक ग्रंथों में हमें स्पष्ट होता है । प.पू. स्वामीजी उत्तम ज्योतिषी तथा आयुर्वेदिक औषधों के ज्ञानी इस रूप में विख्यात थे । संस्कृत एवं मराठी इन दोनों भाषाओं में अत्यंत सहजता से संचार करनेवाली उनकी अद्भुत प्रतिभा महान पंडितों को भी आश्चर्यचकित करनेवाली है । उनके द्वारा रचाएं गएं ‘श्रीदत्तमाहात्म्य’, ‘सप्तशती गुरुचरित्रसार’, ‘दत्तलीलामृताब्धिसार’, ‘त्रिशती गुरुचरित्र’, ‘द्विसाहस्री गुरुचरित्र’, ‘श्रीदत्तपुराण’, के समान ग्रंथ, साथ ही भावपूर्ण सेकडों स्तोत्रं श्रीदत्तसंप्रदाय का अलौकिक वैभव ही है ! उनके द्वारा लिखे गए पदं, अभंगों द्वारा उनके परम रसिक अंतःकरण का प्रत्यय करते हैं । वे अतुलनीय भाषाप्रभु थे ही । साथ ही उनकी स्मरणशक्ति भी प्रचंड थी । मन से वे अत्यंत भावुक एवं अनन्यशरणागतवाले महान भक्तश्रेष्ठ थे; वास्तव में यही उनके अत्यंत विलोभनीय, भावपूर्ण रचनाओं का रहस्य है !
ऐसी प्रार्थना उनके चरणों में करेंगे कि, ‘दत्तावतारी संतपरंपरा का आशीर्वाद हिन्दु राष्ट्र स्थापना के कार्य में प्राप्त हो !’