एक रात में दिशा बदलनेवाला बिहार स्थित सूर्यमंदिर !

भारत में सूर्य के अनेक मंदिर हैं । उनमें से कोणार्क का जगप्रसिद्ध सूर्यमंदिर सुपरिचित है । ऐसा ही एक कलात्मक मंदिर बिहार के औरंगाबाद के देव में भी है । उसकी विशेषता यह है कि देश के अन्य सभी सूर्यमंदिर पूर्वाभिमुख हैं; केवल यही एकमेव सूर्यमंदिर पश्‍चिमाभिमुख है । कहा जाता है कि १०० फुट ऊंचा यह सूर्यमंदिर सहस्रों वर्ष पुरातन है । कोणार्क मंदिर के समान ही यहां भी सूर्यरथ है । इस मंदिर में ७ रथों के पत्थरों पर सुंदर शिल्पकला की गई है । काले पत्थरों में उगते हुए, दोपहर और डूबते सूरज की अप्रतिम प्रतिमाएं कोरी गई हैं । इस मंदिर के शिल्प ओडिशा के जगन्नाथ मंदिर से साधर्म्य दर्शाते हैं ।

इस मंदिर का उल्लेख सूर्यपुराण में है । उसमें दी कथा के अनुसार इस मंदिर में लूट-पाट मचाने लुटेरों की एक टोली आई थी । तब मंदिर के पुजारी ने उनसे विनती करते हुए कहा कि वह मंदिर को न लूटें । इसपर लुटेरे बोले, ‘‘इस मंदिर में वास्तव में भगवान हैं, तो वे अपनी शक्ति की प्रचीती दें । यदि एक ही रात में इस मंदिर का मुख पूर्व से पश्‍चिम की ओर हो जाए, तो मंदिर नहीं लूटा जाएगा ।’’ तदुपरांत पुजारियों ने रातभर भगवान की आराधना अत्यंत आर्तता से की और घोर आश्‍चर्यकारक घटना हुई । सवेरे मंदिर पश्‍चिमाभिमुख हो गया था । अत: लुटेरों ने मंदिर नहीं लूटा ।

संदर्भ : दैनिक सनातन प्रभात

 

देवों के शिल्पकार विश्‍वकर्मा के हाथों डेढ लाख वर्ष
पहले औरंगाबाद (बिहार) में निर्मित ‘देव सूर्य मंदिर’ !

उत्तर भारत में छठ पूजा अथवा छठ पर्व बडे उत्साह और धूम-धाम से मनाया जाता है । इस पर्व में कई लक्ष हिन्दू बहुत मनोभाव से सूर्यदेव की पूजा / आराधना करते हैं । यह एक ऐसी पूजा है, जिसमें हम डूबते सूर्य की भी पूजा करते हैं । पूरे विश्‍व में ऐसी यह एकमेव पूजा है, जहां डूबते सूर्य की पूजा होती है ।

बिहार राज्य में औरंगाबाद का देव सूर्य मंदिर वैशिष्ट्यपूर्ण है । साक्षात विश्‍वकर्मा ने एक रात में ही यह मंदिर बनाया, ऐसा माना जाता है । इस मंदिर का प्रवेशद्वार पश्‍चिम दिशा में है । पश्‍चिम दिशा में प्रवेशद्वारवाला यह मंदिर भारत का एकमेव सूर्यदेव मंदिर है । मंदिर निर्माण के कालखंड का स्पष्ट उल्लेख कहीं भी नहीं पाया जाता; किंतु मंदिर का निर्माण डेढ लाख वर्ष पूर्व हुआ है, ऐसी मान्यता है । छठ पर्व के अवसर पर कई लक्ष श्रद्धालु यहां सूर्यदेव की पूजा करने आते हैं ।

 

१. मंदिर की अद्वितीय विशेषताएं

त्रेतायुग का यह ऐतिहासिक पश्‍चिमाभिमुख मंदिर उसकी कलात्मक भव्यता के साथ इतिहास के लिए भी प्रसिद्ध है । औरंगाबाद से १८ किलोमीटर दूर देव नामक स्थान पर १०० फीट ऊंचा यह मंदिर है । काले और लाल रंग के पत्थरों से मंदिर बनाने से इस मंदिर की रचना ओडिशा के जगन्नाथ मंदिर जैसी है । मंदिर के बाहर मंदिर के निर्माणकाल से संबंधित एक शिलालेख है । उस पर ब्राह्मी लिपि में लिखे और संस्कृत भाषा में अनुवादित श्‍लोक के अनुसार त्रेतायुग की समाप्ति के उपरांत इलापुत्र पुरुरवा ऐल ने मंदिर का निर्माण आरंभ किया । शिलालेख से ध्यान में आता है कि इस प्राचीन मंदिर का निर्माण १ लाख ५० सहस्र १७ वर्ष पूर्व हुआ है ।

 

२. मंदिर का इतिहास

मंदिर की स्थापना पर कथा है कि ऐल नामक राजा आखेट के लिए एक बार वन में गया था । उस समय उसे प्यास लगी । उसने सेवक को लोटा भरकर पानी लाने को कहा । सेवक नेे एक गड्ढे का पानी लाकर राजा को दिया । राजा के हाथ में जहां जहां उस पानी का स्पर्श हुआ, वहां का उसका कुष्ठरोग ठीक हो गया । यह बात राजा के ध्यान में आने पर उसने उस गड्ढे के पानी से स्नान किया, तब उसके शरीर का सारा कुष्ठरोग ठीक हो गया । उस रात राजा को नींद में एक स्वप्न आया । उसमें जिस गड्ढे के पानी से राजा ने स्नान किया था, उस पानी में उसे ३ मूर्तियां दिखाई दीं । दूसरे दिन राजा ने उन मूर्तियों को बाहर निकाल कर मंदिर में उनकी स्थापना की ।

 

३. भारत की अद्वितीय धरोहर, देव सूर्य मंदिर !

देव मंदिर में सात रथों मेें भगवान सूर्यदेव की उदयाचल (उगते सूर्य), मध्याचल (मध्याह्न के समय के सूर्य) और अस्ताचल (अस्त होनेवाले सूर्य), ऐसे ३ रूपों में पत्थर की मूर्ति है । १०० फीट ऊंचा यह मंदिर स्थापत्य और वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण है।

मंदिर की रचना में दो पत्थरों को जोडने के लिए किसी भी प्रकार का चूना अथवा अन्य रसायन का प्रयोग नहीं हुआ है । तो भी आयत, चौरस, षट्कोण, वर्तुल तथा त्रिकोण, ऐसे अनेक आकारों के पत्थर एक दूसरे से जुडे हुए हैं । इस कारण यह मंदिर आकर्षक और विस्मयकारी है । यह मंदिर भारत की अद्वितीय धरोहर है ।

 

४. कई लक्ष श्रद्धालु प्रतिवर्ष सूर्यदेव की इस मूर्ति का दर्शन करते हैं !

प्रतिवर्ष छठ पर्व में झारखंड, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश और अन्य राज्यों से अनेकानेक श्रद्धालु छठ पूजा करने यहां आते हैं । जो भक्त मंदिर में भगवान सूर्यदेव की पूजा करता है, उसकी इच्छा पूरी होती है, ऐसी हिन्दुओं की श्रद्धा है । मनोकामना पूरी होने के लिए सूर्यदेव को अर्घ्य दिया जाता है ।

 

५. मंदिर की परंपराएं

मंदिर के पास के सूर्यकुंड तालाब का विशेष महत्त्व है । इस सूर्यकुंड में स्नान के उपरांत व्रती श्रद्धालु सूर्य की पूजा करते हैं । मंदिर के मुख्य पुजारी सच्चिदानंद पाठकजी ने बताया कि प्रतिदिन भोर में ४ बजे घंटी बजाकर सूर्यदेव को जगाया जाता है । तदनंतर मूर्तियों को स्नान कराकर उनके भाल पर चंदन लगाकर नया वस्त्र पहनाया जाता है । तत्पश्‍चात सूर्यदेव को आदित्यहृदय स्तोत्र का पाठ सुनाया जाता है । यह परंपरा अनेक वर्षों से चली आ रही है ।

संदर्भ : ‘आइएनएस’ संकेतस्थल

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