भारतीय शोधकर्ताओं ने हडप्पा सभ्यता से जुडे प्रमुख स्थल धोलावीरा में रडार तकनीक से भूमि के नीचे छिपी अनेक पुरातात्विक विशेषताओं का पता लगाया है, जो यह संकेत करती हैं कि हडप्पा के लोगों को हाइड्रोलिक इंजीनियरिंग में महारत प्राप्त थी !
गांधीनगर स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के शोधकर्ता धोलावीरा के १२,२७६ वर्ग मीटर क्षेत्र का ग्राउंड पेनीट्रेटिंग रडार (जीपीआर) तकनीक की सहायता से सर्वेक्षण करने पर इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं । जीपीआर तकनीक की सहायता से किसी भूखंड की स्कैनिंग करके उसके नीचे दबी हुई वस्तुओं का पता लगाया जा सकता है !
अध्ययन दल का नेतृत्व कर रहे डॉ. अमित प्रशांत के अनुसार धोलावीरा में दबे पुरातात्विक ढांचे संभवत: पत्थर और ईंटों से बने हुए हैं, यही कारण है कि वस्तुओं और माध्यम के बीच बेहद अल्प अंतर पता चल पाता है । हमारे द्वारा विकसित विशेष प्रसंस्करण उपकरण का उपयोग करके अध्ययन से मिले अत्यंत क्षीण रडार संकेतों का विश्लेषण किया गया है । यह टूल (उपकरण) रडार संकेतों को मैग्नीफाई करके ऑब्जेक्ट्स का सरलता से पता लगा सकता है ।
सर्वेक्षण से प्राप्त आंकडों से छोटे-छोटे उथले जलाशयों के समूह का पता चला है । माना जा रहा है कि ये जलाशय पहले से ज्ञात पूर्वी जलाशयों से जुडे रहे होंगे । वर्तमान भौमिक स्तर से इन जलाशयों की गहराई लगभग २.५ मीटर नीचे है । इसके अतिरिक्त, कई संरचनाएं कुछ विशेषताओं के साथ मलबे में पाई गई हैं ।
इन निष्कर्षों के आधार पर पूर्व में इस क्षेत्र में चेक डैम के संभावित अस्तित्व का अनुमान लगाया जा रहा है, जो मनहर नदी में बाढ़ के कारण नष्ट हो गए होंगे । अध्ययन में सम्मिलित क्षेत्र पूर्व से पश्चिम की ओर बहनेवाली मनहर नदी से घिरा हुआ है । शोधकर्ताओं के अनुसार यह पूरी साइट (परिधि/पूरा स्थानविशेष) पश्चिम की ओर हल्की ढलान युक्त है, जिससे बाढ के दौरान पानी का अति-प्रवाह इस क्षेत्र की ओर रहा होगा, जिसने वहां उपस्थित संरचनाओं को नुकसान पहुंचाया होगा ।
अध्ययनकर्ताओं का कहना यह भी है कि पूर्व के विशाल जलाशयों और खनन के समय मिले जलाशयों की श्रृंखला से पता चलता है कि हडप्पा के लोगों में जल संचयन प्रणाली की उत्तम समझ रही होगी । इस अध्ययन क्षेत्र में भी इसी प्रकार के जलाशयों, बांध, चेक-डैम, चैनल्स, नाले और वाटर टैंक होने की संभावना है । इसके अतिरिक्त, जीपीआर आंकडों में छोटी आवासीय संरचनाओं के विपरीत बडे आकार के जलाशय जैसी संरचनाओं के होने का अनुमान लगाया गया है !
वर्तमान अध्ययन से स्पष्ट प्रमाण मिले हैं कि हडप्पा के लोगों के पास हाइड्रोलिक इंजीनियरिंग का उत्कृष्ट ज्ञान था । बाढ़ के दौरान पानी के प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए चेक डैम बनाए गए थे, जबकि छोटे जलाशय, पूर्व के जलाशयों को सुरक्षित रखते थे । इस अध्ययन से पता चलता है कि चेक डैम और छोटे जलाशयों में बाढ़ की स्थिति में समय के साथ थोडी-बहुत टूट-फूट हुई होगी, लेकिन चरम स्थितियों के बीच भी अधिकतर जलाशय अभी भी सुरक्षित हैं । इसी से हडप्पा के लोगों में द्रव-चलित अभियांत्रिकी(हाइड्रोलिक इंजीनियरिंग) का उच्च ज्ञान होने का अनुमान लगाया जा रहा है !
धोलावीरा भारत में हडप्पा सभ्यता के सबसे बडे और सबसे प्रमुख पुरातात्विक स्थलों में से एक है, जो गुजरात के कच्छ जिले की भचाऊ तालुका के खदिरबेट में स्थित है । यह स्थल कच्छ के रण में स्थित नमक के विशाल मैदानों से घिरा है और इसमें प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता के खंडहर भी सम्मिलित हैं । यह नगर अनुमानत: ३००० से १७०० बीसीई तक था, जो अनुमानत: १०० हेक्टेयर क्षेत्र में विस्तारित था, जिसमें से ४८ हेक्टेयर क्षेत्र की किलेबंदी की गई थी । नगर के अंदर कई ऐसे क्षेत्र हैं, जिनकी छानबीन नहीं की गई है, माना जा रहा है कि इन क्षेत्रों में इस प्राचीन शहर के खंडहर हो सकते हैं !
रडार से प्राप्त आंकडे पुरातत्वविदों को भविष्य में खनन से पहले श्रेष्ठ कार्ययोजना बनाने में सहायक हो सकते हैं, जिससे भूमि के नीचे दबी संरचनाओं को हानि न पहुंचे । यह अध्ययन शोध पत्रिका करंट साइंस में प्रकाशित किया गया है । अध्ययनकर्ताओं की टीम सिल्की अग्रवाल, मंटू मजूमदार, रविंद्र सिंह बिष्ट और अमित प्रशांत सम्मिलित थे ।