अनुक्रमणिका
निरोगी जीवन के लिए हम क्या और कितना खाते हैं इसकी अपेक्षा भोजन ठीक से पचता है अथवा नहीं, यह अधिक महत्त्वपूर्ण है । बीच-बीच में खाते रहना उचित नहीं । एक आहार पचने के बाद ही दूसरा आहार करना चाहिए, यह भोजन का सबसे सरल सिद्धांत है । आयुर्वेद के अनुसार निश्चित समय पर भोजन करने से पाचनक्रिया ठीक रहती है । इस लेख में, आयुर्वेद के अनुसार भोजन करने का उचित समय बताया गया है ।
१. भोजन का उचित समय
१ अ. प्राचीन आयुर्वेद ग्रंथ के अनुसार
आयुर्वेद में प्रातराश (सवेरे का भोजन ) और सायमाश (सायंकालीन भोजन) शब्दों का उल्लेख है; माध्याह्नाश (दोपहर का भोजन) और रात्र्याश (रात का भोजन) शब्दों का उल्लेख नहीं हैं ।
१ आ. रात में भोजन विलंब से होने का मुख्य कारण
घर-घर बिजली आने से रात्रि में भोजन करने की परंपरा प्रारंभ हुई । दूरदर्शनवाहिनी के कार्यक्रम देखने के लिए रात देर तक जागना और विलंब से भोजन करना प्रारंभ हुआ । इससे, धीरे-धीरे पचन संबंधी समस्याएं बढने लगीं ।
१ इ. आयुर्वेद के अनुसार भोजन का आदर्श समय
आयुर्वेद के अनुसार भोजन का आदर्श समय सवेरे ९ सेे १० और सायंकाल ५ सेे ६ (सूर्यास्त के पहले) है । उपर्युक्त समय भोजन करने के कारण प्राचीन काल के लोग निरोगी रहते थे । आज भी अधिक परिश्रम करनेवाले श्रमिक इसी समय भोजन करते हैं । जो इस समय भोजन कर सकते हैं; उन्हें अवश्य इस नियम का पालन करना चाहिए; किंतु हमारा जीवन समाज से जुडा होने के कारण, उचित समय का पालन करना कठिन है । अत:, वैकल्पिक समय आगे दिया गया है :
१ ई. आदर्श समय (विकल्प)
भोजन का समय सवेरे ११.३० और सायंकाल ७ होना चाहिए । यह समय वर्तमान जीवनशैली के लिए अधिक अनुकूल और सर्वोत्तम है ।
२. भोजन का समय निश्चित करने के मूलभूत सिद्धांत
२ अ. पाचनशक्ति सूर्य की स्थिति पर निर्भर रहती है ।
हमारे शरीर की जठराग्नि खाया हुआ अन्न पचाने का कार्य करती है । यह, सूर्य की स्थिति पर निर्भर है । जब आकाश में सूर्य रहता है, तब भोजन का पाचन अच्छा होता है । आयुर्वेद के मतानुसार, वर्षाऋतु में जिस दिन आकाश में बादल हों और बहुत समय तक सूर्यदर्शन न हो, उस दिन भोजन थोडा करना चाहिए अथवा उपवास करना चाहिए ।
२ आ. सूर्यास्त के पश्चात, डेढ दो घंटे तक पाचनशक्ति अच्छी रहती है ।
सवेरे का भोजन सूर्योदय के बाद ३ / ३.३० घंटे के भीतर तथा सायंकाल का भोजन सूर्यास्त के आधा घंटा पहले करना उत्तम है । भोजन के ये समय सूर्य पर आधारित हैं । यदि इस समय भोजन न कर पाएं, तब भोजन का समय दो से ढाई घंटा बढाया जा सकता है; क्योंकि उस समय तक पाचनशक्ति अच्छी रहती है ।
२ इ. दिन की अपेक्षा रात का भोजन पचने में अधिक समय लगता है ।
क्योंकि इस समय शरीर विश्राम करता है और इसलिए पाचनक्रिया मंद रहती है । अतः, रात में खाए हुए भोजन को ठीक से पचन में १२ से १४ घंटे लग जाते हैं । सवेरे खाया हुआ भोजन (आकाश में सूर्य होने के कारण) ८ घंटे में ही पूरा पच जाता है । इसलिए, सवेरे भोजन करने पर, ८ घंटे पश्चात सायंकाल का भोजन और इसके लगभग १२ से १४ घंटे पश्चात सवेरे का भोजन करना चाहिए ।
२ ई. सोने के पहले अधिकतम भोजन पचना आवश्यक
रात्रि में सोने के पहले, खाया हुआ अधिकतम भोजन पच जाना चाहिए । इसीलिए, सूर्यास्त के पश्चात डेढ-दो घंटे में भोजन कर लेना चाहिए ।
३. अल्पाहार (जलपान) का समय
धर्मशास्त्र तथा आयुर्वेद के अनुसार, ‘दिन में दो बार भरपेट भोजन करना चाहिए, बीच में कुछ खाने की आवश्यकता नहीं है ।’ परंतु, आजकल प्रत्येक के लिए ऐसा करना संभव नहीं है । भूख लगी हो, तो उसे बलपूर्वक रोकना नहीं चाहिए । ऐसा करने से शरीर में वेदना, भोजन का स्वाद न समझ पाना, ग्लानि आना, शरीर दुबला होना, पेट दुखना, चक्कर आना आदि कष्ट होते हैं । इसलिए भोजन के तीन-साढे तीन घंटे पहले अल्पाहार लेना चाहिए । सवेरे ९ बजे भोजन करना हो, तब (सवेरे) अल्पाहार न करना उत्तम । दोपहर २ बजे अल्पाहार करना चाहिए । अन्य समय (वैकल्पिक) भोजन करने पर, सवेरे ८ अथवा ८.३० बजे और दोपहर लगभग ४ बजे अल्पाहार करना चाहिए ।
४. अल्पाहार की मात्रा कितनी होनी चाहिए
इस प्रश्न का उत्तर, ‘अल्पाहार’ शब्द में ही है । अल्पाहार, अल्प ही होना चाहिए । अल्पाहार इतना ही करना चाहिए कि ३ घंटे पश्चात भोजन के समय अच्छी भूख लगे । प्रत्येक को अपनी पाचनशक्ति के अनुसार अल्पाहार करना उचित होगा । अधिक मात्रा में अल्पाहार करने पर, मुख्य भोजन के समय भूख नहीं लगती । भूख न होने पर भी भोजन करने से उसका पाचन ठीक से नहीं होता । इससे शरीर को कष्ट होता है और विविध प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं।
५. भोजन की समय सारणी
उपर्युक्त नियमों पर विचार कर, दोनों समय के भोजन की समय सारणी नीचे दी गई है ।
आदर्श समय | वैकल्पिक समय | |
अल्पाहार (सवेरे) | – | ८ अथवा ८.३० |
भोजन (सवेरे) | ९ | ११.३० |
अल्पाहार (दोपहर) | २ | ४ |
भोजन (सायंकाल) | ५ | ७ |
६. स्वास्थ्य की उपेक्षा न करें
शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम् ।
अर्थात, शरीर धर्माचरण का प्रथम साधन है । साधना करने के लिए ईश्वर ने हमें मानव शरीर दिया है । साधना अधिकाधिक हो, इसके लिए शरीर स्वस्थ रहना आवश्यक है और इसके लिए निश्चित समय पर भोजन करना आवश्यक है । शिक्षा, नौकरी, सेवा आदि के कारण भोजन का समय निश्चित न हो पाए, तब भोजन साथ में ले जाएं अथवा उपर्युक्त सिद्धांत के अनुसार व्यवस्था करें ।