गोदावरी नदी भारत की प्रमुख नदियों में एक है । इसका उद्गमस्थान महाराष्ट्र राज्य में नासिक के पास त्र्यंबकेश्वर तीर्थक्षेत्र है । पुण्यनदी गोदावरी, हिन्दू संस्कृति की एक ऐतिहासिक और समृद्ध धरोहर है ! इस पुण्यसलिला के तट पर सनातन धर्म की संस्कृति का विकास हुआ । यहीं, यज्ञवेत्ता ऋषि-मुनियों ने निवास किया था और श्रीरामचंद्र ने सीतासहित १२ वर्ष तक निवास किया था । गोदावरी का इतिहास, उत्तर भारतीय और दक्षिण भारतीय संस्कृतियों के संगम का इतिहास है ।
१. ‘गोदावरी’ शब्द की व्युत्पत्ति और अर्थ
अ. ‘गां स्वर्गं ददाति स्नानेन इति गोदा ।
तासु वरी श्रेष्ठा गोदावरी ।’ (शब्दकल्पद्रुम)
अर्थ : जिसमें स्नान करने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है, उसे ‘गोदा’ कहते हैं । इस प्रकार, स्वर्ग में स्थान दिलानेवाली नदियों में जो श्रेष्ठ है, वह गोदावरी है ।
आ. गौतमस्य गवे जीवनं ददाति इति गोदा ।
अर्थ : गौतमऋषि की गाय (गौतमऋषि के स्पर्श से मरी गाय) को जो जीवन देती है, वह ‘गोदा’ (गोदावरी) है ।
२. गोदावरी का भूलोक में अवतरण
२ अ. गौतमऋषि का घोर तप कर गोदावरी को भूलोक में लाना और शिव के आशीर्वाद से वह महातीर्थ बनना
‘सत्ययुग में एक बार पृथ्वी पर लगातार बारह वर्ष तक वर्षा नहीं हुई । तब, वर्षा होने के लिए गौतमऋषि ने एक वर्ष तप कर, श्रीगणेश को प्रसन्न किया । श्रीगणेश के आशीर्वाद से केवल गौतमऋषि के आश्रम में उचित समय पर वर्षा होने लगी, इससे वहां सूख संकट समाप्त हुआ और पर्याप्त अन्न उत्पन्न होने लगा । इस अन्न से गौतमऋषि ने अनेक देशों के ऋषि-मुनियों का पालन-पोषण किया । कुछ वर्ष पश्चात गौतमऋषि के आश्रम में निवास के लिए आए द्वेषी ब्राह्मणों ने वहां एक मायानिर्मित गाय छोड दी । यह मायावी गाय जब आश्रम की हवन-सामग्री खा रही थी, तब गौतमऋषि ने उसे केवल स्पर्श किया । ऐसा करते ही वह मर गई । यह देखकर सब ब्राह्मण यह कहते हुए आश्रम से निकल गए कि ‘गौतम को गोहत्या का पाप लगा है, इसलिए इनके आश्रम में रहना उचित नहीं ।’ तब, गौतमऋषि ने पापमुक्ति के लिए घोर तप किया और स्वर्ग से गंगा को लोने के लिए भगवान शंकर से बहुत प्रार्थना की । इससे भगवान शिव प्रसन्न हुए और गंगा उनकी जटा में आई (टिप्पणी) । तब गौतमऋषि ने कहा, ‘हे जगदीश्वर, समस्त जनों को पवित्र करनेवाली इस देवी को आप ब्रह्मगिरि पर्वत पर छोड दें । इसमें स्नान कर लोग पापमुक्त होेें । इसके तट से एक योजन दूर तक रहनेवाले लोग उसमें स्नान न कर भी मुक्ति प्राप्त करें ।’ यह प्रार्थना सुनकर भगवान शंकर ने गौतमऋषि को आशीर्वाद दिया तथा गोदावरी को भूलोक भेजा ।’ (ब्रह्मपुराण)
टिप्पणी – भगवान शंकर की जटा में दिखाई देनेवाली दो जल धाराओं में एक ‘गोदावरी’ है, तो दूसरी ‘गंगा’ : ‘भगवान शंकर की जटा में समाई दो जलधाराओं में एक ‘गोदावरी’ है; तो दूसरी, बलवान और महान तपस्वी क्षत्रिय राजा भगीरथ के तप से पृथ्वी पर आई नदी ‘गंगा’ है ।’ (ब्रह्मपुराण)
२ आ. गोदावरी का उद्गमस्थान और उसके प्रकट होने का
समय समुद्रमंथन का और गोदावरी की उत्पत्ति का काल एक है ।
कृते लक्षद्वयातीते मान्धातरि शके सति ।
कूर्मे चैवावतारे च सिंहस्थे च बृहस्पतौ ॥
माघशुक्लदशम्यां च मध्याह्ने सौम्यवासरे ।
गङ्गा समागता भूमौ गौतम सति ॥
महापापादियुक्तानां जनानां पावनाय च ।
औदुम्बरतरोर्मूले ययौ तदा ॥ (संदर्भ : अज्ञात)
अर्थ : कृत (सत्य) युग के दो लाख वर्ष बीतने पर, संपूर्ण पृथ्वी के सम्राट राजा मांधाता के शासनकाल में श्रीविष्णु के कूर्मावतार के समय, (धाता संवत्सर में) सिंह राशि में गुरु का भ्रमण होने पर, माघ मास, शुक्लपक्ष, दशमी तिथि, बुधवार, मध्याह्न (दोपहर १२ बजे), गौतमऋषि के निवास स्थान (त्र्यंबकेश्वर स्थित ब्रह्मगिरि पर्वत पर) के पास स्थित औदुंबर (गूलर) वृक्ष की मूल में गोदावरी प्रकट हुई ।
३. गोदावरी के कुछ अन्य नाम
३ अ. गंगा अथवा दक्षिण गंगा
गोदावरी मूलतः शिव की जटा से पृथ्वी पर आई है; इसलिए उसे ‘गंगा’ भी कहते हैं । इसका उद्गम भारत के दक्षिण भाग में होने के कारण इसे ‘दक्षिण गंगा’ भी कहते हैं ।
३ आ. गौतमी
महर्षि गौतम ने गोदावरी को पृथ्वी पर लाया; इसलिए उसे ‘गौतमी’ भी कहते हैं । ब्रह्मपुराण में कहा गया है कि विंध्य पर्वत के पार (दक्षिण भारत में) गोदावरी को ‘गौतमी’ नाम से जाना जाता है ।’
३ इ. अन्य नाम
‘भगवान शंकर ने गौतमऋषि को गोदावरी के माहेश्वरी, वैष्णवी, नंदा, सुनंदा, कामदायिनी, ब्रह्मतेजससमानिता नाम बताए हैं; इनमें ‘गोदावरी’ नाम ही विशेष प्रचलित हुआ ।
कण्वऋषि ने गोदावरी की स्तुति करते हुए उसे ‘ब्राह्मी’ और ‘त्र्यंबका’ नाम से संबोधित किया है ।’ (ब्रह्मपुराण)
४. गोदावरी की विशेषताएं
४ अ. भौगोलिक विशेषताएं
४ अ १. आदि नदी : गोदावरी, समुद्र से घिरी हुई पृथ्वी की पहली नदी है । ‘आद्या सा गौतमी गङ्गा द्वितीया जाह्नवी स्मृता ।’ अर्थात, ‘गोदावरी आदि गंगा (नदी) है; जाह्नवी (गंगा) इसके पश्चात पृथ्वी पर आई है ।’ यह ‘पुरुषार्थचिंतामणि’ ग्रंथ में लिखा है ।
४ अ २. सप्त : बंगाल में समुद्र से मिलने के पहले गोदावरी नदी सात प्रवाहों में विभक्त हो जाती है । इन्हें – वसिष्ठा, वैश्वामित्री, वामदेवी, गौतमी, भारद्वाजी, आत्रेयी और जामदग्नी इन सात ऋषिनामों से जाना जाता है ।
४ अ ३. भारत की दूसरे क्रमांक की लंबी नदी : महाराष्ट्र के सह्याद्री पर्वतश्रृंखलाओं से निकलनेवाली गोदावरी नदी, पूर्व दिशा से दक्षिण की ओर १४६५ किमी. प्रवाहित होते हुए आंध्रप्रदेश को पार कर बंगाल की खाडी में मिलती है । गोदावरी, देश में गंगा नदी के पश्चात दूसरे क्रमांक की लंबी नदी है ।
४ आ. भौतिक विशेषताएं
४ आ १. जीवनदायिनी : गोदावरी, यह एक जनकल्याणरी जलप्रवाह है । यह लाखों वर्ष से महाराष्ट्र, छत्तीसगढ, तेलंगाना, आंध्र और पांडिचेरी राज्यों के भूभाग को सींचकर समृद्ध बना रही है ।
४ आ २. आरोग्यदायिनी : गोदावरी का जल आरोग्यादायक है ।
पित्तार्तिरक्तार्तिसमीरहारि पथ्यं परं दीपनपापहारि ।
कुष्ठादिदुष्टामयदोषहारि गोदावरीवारि तृषानिवारि ॥
राजनिघंटु, वर्ग १४, श्लोक ३२
अर्थ : गोदावरी नदी का पानी पित्त, रक्त, वात से संबंधित रोग दूर करनेवाला, भूख बढानेवाला, पापहारी, पाप से उत्पन्न होनेवाले त्वचाविकार दूर करनेवाला और प्यास मिटानेवाला है ।
४ इ. आध्यात्मिक विशेषताएं
४ इ १. पवित्रतम
गोदावरी धर्मशास्त्र में बताए अनुसार सात पवित्र नदियों में से एक है । इसलिए स्नान से पूर्व आगे दिए श्लोक से गोदावरी सहित पवित्र नदियों का आवाहन किया जाता है ।
गङ्गे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती ।
नर्मदे सिन्धु कावेरी जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरु ॥
नारदपुराण, पूर्वभाग, पाद १, अध्याय २७, श्लोक ३३
अर्थ : हे गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिंधु और कावेरी, आप सब नदियां मेरे स्नान के जल में पधारें ।
४ इ २. ‘सप्तगंगा’ में से एक
भारत में ८४ गंगातत्त्व की दर्शक नदियां हैं । इनमें गंगा, गोदावरी, कावेरी, ताम्रपर्णी, सिंधु, सरयू और नर्मदा, इन नदियों को ‘सप्तगंगा’ कहा जाता है ।
४ इ ३. पापविनाशिनी
गोदावरी भीमरथी कृष्णवेण्यादिकास्तथा ।
सह्मपादोद्भवा नद्य: स्मृता: पापभयापहा: ॥ – विष्णुपुराण, देवताओं की उपासना : शक्ति खंड ८
अर्थ : गोदावरी, भीमरथी, कृष्णवेणी आदि सह्याद्रि से उत्पन्न होनेवाली पाप और भय को दूर करनेवाली नदियां हैं ।
४ इ ४. पुण्यदायिनी
दक्षिणवाहिनी गोदावरी पुण्यदायी है ।
कालिन्दी पश्चिमा पुण्या गङ्गा चोत्तरवाहिनी ।
विशेषा दुर्लभा ज्ञेया गोदा दक्षिणवाहिनी ॥ (संदर्भ : अज्ञात)
अर्थ : पश्चिम दिशा में बहनेवाली (यमुना), उत्तर दिशा में बहनेवाली गंगा और दक्षिण दिशा में बहनेवाली गोदावरी बहुत दुर्लभ एवं पुण्यदायी है ।
४ इ ५. मोक्षदायिनी
कुरुक्षेत्र में दान से, नर्मदा तट पर तप से और गंगा के किनारे मृत्य आने पर बहुत पुण्य मिलता है । परंतु, गोदावरी के तट पर उपर्युक्त तीनों बातों के अतिरिक्त मोक्ष भी मिलता है ।
या गतिर्योगयुक्तानां मुनीनाम् ऊर्ध्वरेतसाम् ।
सा गतिः सर्वजन्तूनां गौतमीतीरवासिनाम् ॥
शी गुरुचरित्र, अध्याय १३, श्लोक ६८
अर्थ : मृत्यु के पश्चात ऊर्ध्वरेता (ब्रह्मचारी) मुनियों को जो गति मिलती है, वह गोदावरी तट पर वास करनेवाले सब जीवों को भी मिलती है; अर्थात गोदावरी तट पर वास करनेवाले जीवों को मृत्यु के पश्चात मोक्ष की प्राप्ति होती है ।
४ इ ६. सर्वतीर्थमयी
अ. ‘ब्रह्मदेव ने गौतमी माहात्म्य के विषय में बताया है, ‘भगवती गोदावरी सर्वतीर्थमयी है । तीन लोकों में गोदावरीसमान तीर्थ नहीं है ।
५. गोदावरी का महत्त्व
५ अ. तीर्थश्राद्ध के लिए उपयोगी
कूर्मपुराण में भारतवर्ष की विभिन्न नदियों की लंबी सूची दी हुई है । अंत में बताया गया है कि ‘श्राद्ध के लिए गोदावरी विशेष महत्त्वपूर्ण है ।’
मूलमध्यावसानेषु गोदा लभ्या कलौ युगे ।
मुण्डनं तत्र कुर्यात् वै तीर्थश्राद्धं विशेषतः ॥ (संदर्भ : अज्ञात)
अर्थ : कलियुग में गोदावरी के उद्गमस्थान (त्र्यंबकेश्वर), मध्यस्थान (नांदेड) तथा अंतिम स्थान (राजमहेंद्री) में मुंडन और तीर्थश्राद्ध करना चाहिए ।
गोदावरी से संबंधित त्योहार और उत्सव
१. गोदावरी जन्मोत्सव
प्रतिवर्ष माघ शुक्ल प्रतिपदा से दशमी तक, १० दिन गोदावरी नदी के तट पर स्थित तीर्थक्षेत्र में ‘श्री गोदावरी जन्मोत्सव’ मनाया जाता है ।
२. मकरसंक्रांति
‘मकरसंक्रांति पर्व पर सूर्योदय से सूर्यास्त तक पुण्यकाल रहता है । इस काल में गंगा, यमुना, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी नदियों के तट पर स्थित क्षेत्रों में स्नान करने से महापुण्य मिलता है ।’ (संदर्भ : मराठी पत्रिका घनगर्जित, वर्ष दूसरा, अंक १०, गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी समस्त वाड्मय) ******************
३. कार्तिक पूर्णिमा
सब महीनों में तीर्थस्नान करना पुण्यदायक होता है । स्कंद पुराण में गंगा, गोदावरी आदि नदियों की सूची दी हुई है । इन नदियों में कार्तिक मास में स्नान करने को दुर्लभ कहा गया है । कार्तिक शुक्लपक्ष एकादशी से त्रिपुरारी पूर्णिमा तक श्रीक्षेत्र त्र्यंबकेश्वर निवासी महिलाएं कुशावर्त तीर्थ में ‘कार्तिकस्नान’ कर गोदावरी की पंचोपचार अथवा षोडशोपचार पूजा करती हैं । यह परंपरा अनेक वर्षों से जारी है ।
४. अन्य पुण्यकाल
इसके अतिरिक्त वैकुंठ चतुर्दशी, महाशिवरात्रि, वामन द्वादशी एवं वसंत पंचमी को और पर्वकाल, अर्थात एकादशी, अमावस्या तथा चंद्रग्रहण, व्यतिपात, वैधृति आदि योगों को गोदावरी में स्नान के लिए पुण्यकाल समझा जाता है ।