देवी की महिमा, शक्तिपीठ दर्शन एवं अध्यात्मशास्त्र
उज्जैन, मध्यप्रदेश में स्थित गढकालिका देवी का मंदिर, एक शक्तिपीठ है । इसी मंदिर में कवि कालिदासजी को कालिकादेवी के दर्शन हुए थे । यह देवी के ५२ शक्तिपीठोंमें से एक है । यहां देवी के हाथ की कोहनी पडी थी । देवी की मूर्ति पर सिंदूरलेपन किया है । देवी के मस्तक पर चंद्र है तथा बाईं ओर महालक्ष्मी और दाईं ओर महासरस्वती की मूर्तियां हैं । त्रिपुरा महिमानुसार भारत के १२ शक्तिपीठोंमें से गढकालिका देवी का मंदिर छठा शक्तिपीठ है । मंदिर परिसर में ही सिंह की मूर्ति है । इसी प्रकार सभामंडप में अनेक देवी-देवताओं के चित्र हैं ।
लोककथानुसार शाकुंतलम, मेघदूत आदि ग्रंथों के रचयिता तथा सम्राट विक्रमादित्य की सभामंडल के नवरत्नों में से एक प्रमुख रत्न (प्रमुख व्यक्ति) महाकवि कालिदास की श्री गढकालिकादेवी, इष्ट देवी (उपासनादेवी) मानी जाती है । यहां पर कवि कालिदासजी को दिव्य ज्ञान प्राप्त हुआ था । राजा विक्रमादित्य एवं कवि कालिदास इस मंदिर में साधना करने आते थे ।
सम्राट हर्षवर्धन ने ७ वीं शताब्दी में इस मंदिर का पुनर्निर्माण किया था । १० वीं शताब्दी के परमार राजाओं के राज्यकाल में इस पुनर्निर्माण के अवशेष भी मिले थे । २० वीं शताब्दी के परंपरागत पुजारी श्री सिद्धनाथ महाराज ने संवत्सर २००१ (वर्ष १९४४) में मंदिर का पुनर्निर्माण किया था । मंदिर के स्थान पर पहले अवंतिका नगरी बसी थी । कालांतर से यह नगरी भूमि में दब गई । देवी का मंदिर गढ पर होने से देवी का नाम गढकालिका हुआ । नवरात्रि की कालवधि में तथा अन्य दिनों पर भी यहां तांत्रिक विधियां की जाती हैं । तांत्रिक सिद्धि का यह प्रमुख स्थान माना जाता है ।