आजकल हमारे विद्यालयों में पढाया जाता है कि प्राचीन मिस्त्र (इजिप्त) देश में ‘पपायरस’ नामक पेड से कागद बनाया जाता है । परंतु, कागदनिर्माण का सत्य इतिहास कुछ और ही है । प्राचीन भारत के मालवा प्रांत की राजधानी धार अथवा धारानगरी थी । ई.स. १०१० में वहां राजा भोज का शासन था । वे बहुत विद्वान थे और उन्होंने ८४ ग्रंथ लिखे थे । उनमें से कुछ ही ग्रंथ आज उपलब्ध हैं । राजा भोज ने कमलककडी (कमल की डंडी) से कागद बनाने का उद्योग (कारखाने) आरंभ किया था । परंतु, यह बात हमसे जानबूझकर छिपाई जाती है । धार से मांडू के बीच ‘नालचा’ नामक गांव है । इसका मूल नाम ‘नालकक्षफर’ है । राजा भोज ने यहां बहुत बडा सरोवर बनवाकर, उसमें कमल की खेती करवाई थी ।
नालचा गांव के पास ही ‘कागजीपुर’ नामक एक और गांव है । यहां, नालकक्षफर गांव के सरोवर से लाए गए कमलककडी की लुगदी बनाई जाती थी और उसके लिए वहां विशाल कुंड बनवाए गए थे । आजकल उन १५२ कुंडों में ३ ही बचे हैं । इसके पश्चात, इस लुगदी से उत्तम प्रकार का कागद बनाया जाता था ।
राजा भोज के बनवाए उत्तम प्रकार के इन्हीं कागदों पर लिखे ‘मिस्त-उल फजल’ और ‘नियामतनामा’, ये दो फारसी ग्रंथ आज भी उपलब्ध हैं; परंतु भारत में नहीं, लंदन के एक संग्रहालय में सरस्वतीदेवी की मूर्ति के पास ! वृक्ष न तोडकर कागद बनानेवाले ऐसे पर्यावरणप्रेमी राजा भोज का हमारा शतश: नमन !