सारिणी
- १. ‘वैश्वदेव’ करना
- २. अज्ञानवश होनेवाली हिंसाका परिमार्जन करनेके लिए ‘वैश्वदेव’ आवश्यक
- ३. ‘वैश्वदेव’द्वारा संस्कारीत/परिष्कृत शुद्ध अन्न, सर्वदृष्टिसे हितकारी
- ४. देवताको अन्नका नैवेद्य चढाना
१. ‘वैश्वदेव’ करना
सर्व भोजन बन जानेपर किए जानेवाले कर्मोंमें सर्वप्रथम कर्म है ‘वैश्वदेव’ । यह एक शास्त्रीय विधि है । वर्तमानमें यह विधि केवल कर्मकांडका पालन करनेवाले ही करते हैं । यदि किसीको भोजनसे संबंधित आचारोंका पालन पूर्णतः शास्त्रीय कर्मकांडके अनुसार करना हो, तो वह ‘वैश्वदेव’ अवश्य करे । ‘वैश्वदेव’ करनेकी शास्त्रीय पद्धति तथा मंत्र पुरोहितोंको ज्ञात होते हैं, उनसे समझ लें । ‘वैश्वदेव’ करना संभव न हो, तो उसे छोड आगेके आचारोंका पालन करें ।
२. अज्ञानवश होनेवाली हिंसाका परिमार्जन करनेके लिए ‘वैश्वदेव’ आवश्यक
झाडू लगाते समय हमारे हाथोंसे अनेक प्रकारके कृमि-कीटक मरते हैं । भोजन बनानेके लिए चूल्हा जलाते समय भी इसी प्रकारकी हिंसा होती है । इस प्रकार अज्ञानवश होनेवाली दैनिक स्थूल एवं सूक्ष्म जीवहत्याओंका प्रायश्चित गृहस्थके लिए प्रतिदिन करना आवश्यक है । मूसल, चक्की तथा सिल-बट्टा, चूल्हा, गागर एवं झाडूके प्रयोगके कारण अज्ञानवश होनेवाली हिंसाका परिमार्जन करनेके लिए ‘वैश्वदेव’ किया जाता है ।
३. ‘वैश्वदेव’द्वारा संस्कारीत/परिष्कृत शुद्ध अन्न, सर्वदृष्टिसे हितकारी
‘वैश्वदेव’द्वारा दोषरहित शुद्ध अन्न शरीर एवं मन विशुद्ध रखनेके लिए अपरिहार्य है; इसलिए अन्न ‘वैश्वदेव’द्वारा संस्कारीत/परिष्कृत कर ही सेवन करें । ‘शास्त्रीय विधिसे बना भोजन विधिपूर्वक ही सेवन करें । उस अन्नसे आरोग्य, बल, शांति, स्वास्थ्य एवं सद्बुद्धि प्राप्त होती है । वही भोजन हितकारी है । ऐसे पवित्र अन्नसे ही मनुष्यको ओज, तेज, बल, संतोष, पुष्टि, प्रतिभा एवं स्वास्थ्य प्राप्त होता है ।’ – गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी
४. देवताको अन्नका नैवेद्य चढाना
‘वैश्वदेव’ हो जानेके उपरांत देवताको नैवेद्य चढाएं । मनुष्य ईश्वरीय शक्ति एवं ज्ञानके आधारपर ही, अर्थात ईश्वरकी कृपासे ही सर्व कर सकता है । ‘कर्ता- करावनहार ईश्वर ही हैं । उनके बिना मैं कुछ नहीं कर सकता । उनकी कृपासे ही यह अन्न मिला है। अतः जो भी मिला है, उसे सर्वप्रथम ईश्वरको प्रथम अर्पित करूंगा’, इस कृतज्ञ भावसे देवताको भोजनपूर्व नैवेद्य चढाया जाता है । देवताको भोग लगानेके उपरांत उस अन्नको देवताका प्रसाद मानकर ग्रहण करनेसे उस अन्नसे देवताके तत्त्व एवं चैतन्यका लाभ होता है । देवताको नैवेद्य चढानेके पश्चात भोगकी वह परोसी थाली पंगतमें बैठे किसी व्यक्तिको भोजन हेतु दें।
४अ. गौ-ग्रास एवं काकबलि
गायके लिए भोजनका अंश निकालकर रखें । तत्पश्चात भोजनका कुछ अंश काकबलिके रूपमें घरके बाहर पितरोंके लिए रखें ।