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सांगली (महाराष्ट्र) : सुख-दुख में साथ करनेवाली संस्कृति एकत्रित परिवारपद्धति से ही उत्पन्न होती है । त्योहार, व्रत एवं उत्सवों का एकत्रित परिवारपद्धति में ही सुसूत्रीकरण होता है, साथ ही धार्मिक एवं सामाजिक दायित्व उत्पन्न होता है । अतः सुसंस्कृत समाज बनाने हेतु एकत्रित परिवारपद्धति आवश्यक है । सनातन संस्था की साधिका तथा संस्कृत शिक्षिका श्रीमती संपदा अमित पाटणकर ने यह उद्बोधन किया । श्री विश्वकर्मा स्वर्णकार समुदाय की ओर से सांगली के श्री गणपति मंदिर के पीछे स्थित कृष्णा लॉन (माई घाट) में आयोजित परिवारिक स्नेहसम्मेलन के कार्यक्रम में वे ऐसा बोल रही थी । इस अवसरपर १५० नागरिक उपस्थित थे ।