रामकृष्ण परमहंस 

बचपन

रामकृष्ण परमहंस भारत के एक महान संत थे। संत रामकृष्ण परमहंस का जन्म १८ फ़रवरी १८३६ को बंगाल प्रांत स्थित कामारपुकुर ग्राम में हुआ था। इनके बचपन का नाम गदाधर था। पिताजी के नाम खुदीराम और माताजी के नाम चन्द्रा देवी था। गदाधर का मन अध्ययन-अध्यापन में नहीं लग पाया। १८५५ में गदाधर के बड़े भाई रामकुमार चट्टोपाध्याय को दक्षिणेश्वर काली मंदिर के मुख्य पुजारी के रूप में नियुक्त किया गया था। गदाधर को देवी प्रतिमा को सजाने का दायित्व दिया गया था। १८५६ में रामकुमार के मृत्यु के पश्चात गदाधर को काली मंदिर में पुरोहित के तौर पर नियुक्त किया गया।

 

विवाह

कामारपुकुर से ३ मिल दूर उत्तर पूर्व की दिशा में जयरामबाटी हैं, शारदामणि मुखोपाध्याय इनसे उनका विवाह निश्चित हुवा । १८५९ में ५ वर्ष की शारदामणि मुखोपाध्याय और २३ वर्ष के रामकृष्ण का विवाह संपन्न हुआ। विवाह के बाद शारदा जयरामबाटी में रहती थी और १८ वर्ष के होने पर वे रामकृष्ण के पास दक्षिणेश्वर में रहने लगी। रामकृष्ण तब संन्यासी का जीवन जीते थे। शारदामणि इन्होंने रामकृष्ण परमहंस का शिष्यत्त्व स्विकार किया । तदुपरांत वह शारदादेवी के नाम से प्रचलित हो गयी ।

 

साधना

दक्षिणेश्वर स्थित पंचवटी में रामकृष्णजी ध्यानमग्न रहने लगे। ईश्वर दर्शन के लिए वे व्याकुल हो गये। इनका विवाह शारदामणि से हुआ था, लेकिन इनके मन में स्त्री को लेकर केवल एक माता भक्ति का ही भाव था, इनके मन में सांसारिक जीवन के प्रति कोई उत्साह नहीं था, इसलिए ही सत्रह वर्ष की उम्र में इन्होने घर छोड़कर स्वयं को माँ काली के चरणों में सौंप दिया। यह दिन रात साधना में लीन रहते थे. इनकी भक्ति को देख सभी अचरज में रहते थे। इनका कहना था कि माँ काली इनसे मिलने आती हैं. वे उन्हें अपने हाथों से भोजन कराते हैं। जब भी माँ काली उनके पास से जाती वे तड़पने लगते और एक बच्चे की भांति अपनी माँ की याद में रुदन करते। रामकृष्ण एक प्रचंड काली भक्त थे।

रामकृष्ण परमहंस जीवन के अंतिम दिनों में समाधि की स्थिति में रहने लगे। सन् १८८६ में श्रावणी प्रतिपदा १६ अगस्त को प्रातःकाल रामकृष्ण परमहंस जी ने देह त्याग दिया।

 

रामकृष्ण परमहंस के प्रेरक प्रसंग

अहंकार की जड़

एक बार रामकृष्ण परमहंस के दो शिष्य इस बात पर झगड़ रहे थे कि “ हम दोनों में से कौन अधिक श्रेष्ठ है ?” लड़ते – झगड़ते बात गुरुदेव तक जा पहुँची । उन्होंने परमहंसजी से जाकर पूछा – “ गुरुदेव ! आप ही बताइए, हम दोनों में से कौन अधिक श्रेष्ठ है ?”

जब परमहंसदेव ने यह बात सुनी तो बोले – “ तुम इतनी सी बात पर झगड़ रहे थे । तुम्हारे प्रश्न का उत्तर तो बहुत ही सरल है । जो दुसरे को अपने से बड़ा और श्रेष्ठ समझता है, वही श्रेष्ठ है ।”

यह सुनकर दोनों शिष्य बोलने लगे – “ तू श्रेष्ठ, नहीं तू श्रेष्ठ ।” परमहंस जी मुस्कुराने लगे ।

मुक्त आत्माओं की स्थिति

एक बार रामकृष्ण परमहंस अपने कुछ शिष्यों के साथ टहलते हुए नदी किनारे पहुंचे । वहाँ उन्होंने देखा कि कुछ मछुआरे मछलियाँ पकड़ रहे थे । अपने शिष्यों को नदी के निकट ले जाकर परमहंस जी बोले – “ देख रहे हो, जाल में फंसी इन मछलियों को !”

वहाँ जाल में कई मछलियाँ फंसी हुई थी । जिनमें से कुछ तो निश्चेष्ट पड़ी थी । निकलने का कोई प्रयास नहीं कर रही थी । उन्हीं में से कुछ मछलियाँ निकलने का प्रयास तो कर रही थी लेकिन निकल नहीं पा रही थी । उन्हीं में से कुछ ऐसी थी, जो अपने प्रयास में कामयाब हो गई और वापस जल में तैरने लगी ।

परमहंसदेव अपने शिष्यों से बोले – “ जिस तरह इस जाल में तीन प्रकार की मछलियाँ है, उसी तरह मनुष्य भी तीन प्रकार के होते है । पहले वो जिन्होंने संसारिकता के बंधन को स्वीकार कर लिया है और इसी में मरने को तैयार है । ऐसे लोग इस मायाजाल से निकलने की कोशिश तक नहीं करते है । दुसरे वो जो कोशिश तो करते है, लेकिन मुक्तिबोध तक तक नहीं पहुँच पाते । तीसरे वो जो कोशिश भी करते है और अपने चरम लक्ष्य को प्राप्त करने में कामयाब हो जाते है ।”

तभी एक शिष्य बोला – “ गुरुदेव ! एक और प्रकार के लोग होते है जिनके बारे में आपने नहीं बताया ?”
परमहंस जी बोले – “ हाँ, चोथे प्रकार के लोग वे महान आत्माएं होती है जो इस मायाजाल के निटक ही नहीं आते है । फिर उनके फसने का तो प्रश्न ही नहीं उठता ।”

 

रामकृष्ण परमहंस इनके सूविचार

  • जब तक हमारे मन में इच्छा है तब तक हमे ईश्वर की प्राप्ति नही हो सकती है।
  • ईश्वर के अनेको रूप और अनेको नाम है और अनेक तरीको से ईश्वर की कृपा दृष्टि प्राप्त किया जा सकता है और हम ईश्वर को किस नाम या किस तरह से पूजा करते है यह उतना महत्वपूर्ण नही है जितना की हम अपने अंदर उस ईश्वर को कितना महसूस करते है।
  • यदि आप पागल ही बनना चाहते हैं तो सांसारिक वस्तुओं के लिए मत बनो, बल्कि भगवान के प्यार में पागल बनों।
  • भगवान से प्रार्थना करो कि धन, नाम, आराम जैसी अस्थायी चीजो के प्रति लगाव दिन-दिन अपने आप कम होता चला जाएँ।

Leave a Comment