कोल्हापुर (महाराष्ट्र) में ‘आनंदमय जीवन हेतु साधना’ प्रवचन का ५०० जिज्ञासुओं द्वारा प्रचुर प्रत्युत्तर !
कोल्हापुर : अन्य किसी भी मार्ग से साधना करने की अपेक्षा गुरुकृपायोगानुसार साधना करने से तीव्रगति से आध्यात्मिक उन्नति होती है । इस मार्ग के अनुसार साधना के व्यष्टि और समष्टि साधना, ये २ अंग हैं । व्यष्टि साधना के अंतर्गत नामजप, सत्संग, सत्सेवा, सत् हेतु त्याग, प्रेमभाव, स्वभावदोष-निर्मूलन, भावजागृति हेतु प्रयास; तो धर्मप्रसार करना समष्टि साधना में अंतर्भूत है । इसे जोडकर स्वभावदोष एवं अहं निर्मूलन के लिए प्रयास करने आवश्यक हैं । सनातन संस्था की सद्गुरु (कु.) स्वाती खाडयेजी ने यह मार्गदर्शन किया । यहां के खरे मंगल कार्यालय में ५ फरवरी को सनातन संस्था की ओर से आयोजित ‘आनंदमय जीवन हेतु साधना’ प्रवचन में वे ऐसा बोल रही थीं ।
इस अवसरपर आधुनिक वैद्या (श्रीमती) शिल्पा कोठावळे ने सुख एवं आनंद में अंतर, मनुष्यजन्म मिलने के कारण आदि विषयोंपर मार्गदर्शन किया । इस मार्गदर्शन में सनातन प्रभात के पाठक, हितचिंतक, जिज्ञासु, डॉक्टरगण, पुरोहित, व्यावसायिक, उद्योगपति एवं हिन्दुत्वनिष्ठोंसहित ५०० जिज्ञासु उपस्थित थे ।
श्री. विलास वेसणेकर द्वारा किए गए शंखनाद के पश्चात सद्गुरु (कु.) स्वाती खाडयेजी के करकमलों से दीपप्रज्वलन किया गया । श्रीमती दीपा अशोक भट (सनातन संस्था की संत श्रीमती शैलजा परांजपेजी की भांजी) ने इन दोनों को भी सम्मानित किया । अत्यंत अल्प अवधि में आयोजन किए जानेपर भी प्रवचन का प्रचुर मात्रा में प्रत्युत्तर प्राप्त हुआ । इस अवसरपर सनातन संस्था के संत पू. सदाशिव (भाऊ) परबजी की वंदनीय उपस्थिति थी ।
कुछ चुनिंदा प्रतिक्रियाएं
१. अधिवक्ता (श्रीमती) प्रियांका संकपाळ : यह कार्यक्रम बहुत ही अनुशासित था । भीड होते हुए भी बैठकव्यवस्था बहुत अच्छी थी । अन्य वक्ता वे क्या करते हैं, इस विषयपर बताते हैं; परंतु आपके वक्ताओं ने साधना की आवश्यकता विशद की । इस मार्गदर्शन को सुनकर आपने हमारी संस्कृति और परंपराको संस्कारों के माध्यमों से संजोया है, यह ध्यान में आया । साधना बिखरे हुए जीवन को सुरेल बनाती है और भटके हुए मन को स्थिर बनाती है । साधना से सुखी जीवन का मार्ग स्वर्णिम बन जाता है ! (इस अवसरपर श्रीमती प्रियांका ने सनातन संस्था के आश्रम का अवलोकन करने की, साथ ही उनके पति ने सहायता करने की सिद्धता दर्शाई ।)
२. श्री. धनाजी टिपुगडे : वक्ताओं ने बहुत अच्छा मार्गदर्शन किया ।
३. श्रीमती दीपा तेलंग : मार्गदर्शन एक लय में हुआ । मार्गदर्शन के समय ‘दैवीय शक्ति कार्यरत होने से, उसे सुनते ही रहें’, ऐसा लग रहा था । साधना का विषय अंतर्मनतक पहुंचा ।
४. श्रीमती कीर्ति मंगेशकर : यहां मंदिर की भांति सात्त्विकता प्रतीत हो रही थी । सद्गुरु स्वातीदीदीजी में दैवीय शक्ति होने का प्रतीत हो रहा था ।