रावण के संहार के उपरांत प्रभु श्रीराम पुष्पक विमान से अयोध्या की ओर जाने लगे, तब उनके ध्यान में आया कि ‘विमान के पीछे एक श्यामवर्ण मेघ आ रहा है । तब शिवजी प्रकट होकर श्रीराम से कहते हैं, ‘यह श्यमावर्ण मेघ ‘ब्रह्महत्या दोष’ का प्रतीक है ।’ रावण ब्राह्मण होने से उसकी हत्या से उत्पन्न दोष निवारण के लिए भगवान शिव प्रभु श्रीराम से श्रीलंका के पंचईश्वर में जाकर शिवपूजन करने को कहते हैं । प्रभु श्रीराम, भगवान शिव की आज्ञा का पालन करते हैं । केतीश्वरम, तोण्डीश्वरम, मुन्नीश्वरम, कोनेश्वरम एवं नगुलेश्वरम; ये पंचईश्वर मंदिर हैं । इनमें से तोण्डीश्वरम मंदिर समुद्र की सतह के नीचे गया है । अब हम इन पंचईश्वर मंदिर मे से ‘केतीश्वरम’ मंदिर की जानकारी लेंगे ।
१. ‘केतीश्वरम’ मंदिर का इतिहास
श्रीलंका के पंचशिव क्षेत्रों में ‘केतीशवरम’ विख्यात है । यह उत्तर श्रीलंका के मन्नार जनपद के मन्नार नगर से १० कि. मी. की दूरी पर है । त्रेतायुग में लंकापुरी नाम से विख्यात श्रीलंका के इस क्षेत्र में ‘मन्दै’ नामक समुद्रतट पर ‘बन्दर शहर’ था । इस नगर में मन्दोदरी के पिता ‘मयन महर्षि’ रहते थे । यहां पर एक शिवलिंग की स्थापना कर वे प्रतिदिन उसकी पूजा करते थे । आगे चलकर महर्षि भृगु ने यहां आकर पूजा की । तत्पश्चात केतू ग्रह ने यहां पूजा की, इसलिए इस स्थान का नाम ‘केतीश्वरम’ हुआ । विश्व के २७५ प्रमुख शिवक्षेत्रों में से ‘केतीश्वरम’ एक है । अब इस क्षेत्र को ‘तिरुकेतीश्वरम’ नाम से जाना जाता है । ‘तिरु’ का अर्थ है ‘श्री’ । स्कन्दपुराण में लंकापुरी के ‘केतीश्वरम’ की जानकारी मिलती है । केतीश्वरम से मन्नार तथा उससे ३० कि.मी. की दूरी पर ‘रामसेतु’ है । केतीश्वरम मंदिर भी समुद्र के निकट है । त्रेतायुग में प्रभु श्रीराम ने रावण हत्या के पातक के पश्चात ब्रह्महत्या का दोष दूर करने के लिए ‘केतीश्वरम’ में शिवलिंग की पूजा की थी । कहा जाता है कि, ‘इस समय मंदिर के सामनेवाले ‘पल्लवी’ नामक पुष्करणी में प्रभु श्रीराम ने स्नान किया था’ ।
२. पुर्तगालियों ने केतीश्वरम मंदिर पर आक्रमण कर वहां का शिवलिंग एवं
परिसर ध्वस्त करना तथा उस मंदिर के पत्थर किले तथा चर्च के निर्माण में प्रयुक्त करना
वर्ष १५०५ में पुर्तगालियों ने मन्नार नगर पर आक्रमण किया । मन्नार नगर के क्षेत्र में स्थित सभी हिन्दू मंदिर उन्होंने ध्वस्त किए । इस समय उन्होंने ‘केतीश्वरम’ का शिवलिंग एवं उसका परिसर ध्वस्त किया । तदुपरांत पुर्तगालियों ने ईसाई पंथ का प्रसार आरंभ किया । वर्ष १५८९ में पुर्तगालियों ने केतीश्वरम मंदिर के पत्थर मन्नार में एक किला एवं चर्च तथा ‘केटस’ नामक गांव में एक किले के निर्माण में प्रयुक्त किए । इससे समझ में आता है कि, ‘उस समय का यह मंदिर कितना विशाल था ।’
३. ब्रिटिशों द्वारा किए उत्खनन में मंदिर का मूल स्थान एवं
प्राचीन शिवलिंग पाया जाना,श्रीलंका के तमिल युद्ध के समय श्रीलंका की
सेना ने इस मंदिर को नियंत्रण में लेकर वहां सेना की छावनी बनाना,युद्ध में मंदिर
नष्ट होना तथा भारत सरकार की सहायता से इस मंदिर के पुनर्निर्माण का कार्य जारी रहना
‘वर्ष १५०५ से १८९४ तक मंदिर का मूल स्थान कहां है’, इसकी जानकारी किसी को नहीं थी । वर्ष १८९४ में ब्रिटिशों द्वारा किए उत्खनन में मंदिर का मूल स्थान, प्राचीन शिवलिंग तथा शिवपरिवार देवताओं की मूर्तियां पाई गईं । वर्ष १९१० में ‘अरुमुग नावल’ नामक स्थानीय हिन्दू नेता के नेतृत्व में वहां एक छोटे मंदिर का निर्माण किया गया । वर्ष १९४८ में उत्तर श्रीलंका के हिन्दुओं ने मंदिर के पुनर्निर्माण के लिए बडा आंदोलन किया, जिससे कि श्रीलंका सरकार को वहां मंदिर बनाना पडा । आगे वर्ष १९९० में श्रीलंका के तमिल युद्ध में श्रीलंका की सेना ने मंदिर नियंत्रण में लेकर वहां सेना की छावनी बनाई । युद्ध के कारण मंदिर नष्ट हुआ । अब पिछले ५ वर्षों से भारत सरकार की सहायता से इस मंदिर के पुनर्निर्माण का कार्य हो रहा है ।
४. हिन्दू धर्मप्रेमी नटेसन्जी ने सद्गुरु (श्रीमती) अंजली
गाडगीळजी के मंदिर दर्शन का नियोजन करना, मंदिर के न्यासियों
द्वारा मंदिर संबंधी सभी जानकारी देना, निर्माण हो रहे मंदिर का भाग दिखाना एवं
सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी से कहना कि, ‘यदि कुछ सुधार आवश्यक हो, तो बताना’
महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की ओर से सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी मन्नार में गई थीं । तब वहां के हिन्दू धर्मप्रेमी श्री. नटेसन्जी ने मंदिर दर्शन का नियोजन किया । जब सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी मंदिर पहुंची, तब मंदिर के मुख्य पुजारी तथा मंदिर के न्यासी उपस्थित थे । मंदिर के न्यासी श्री. रामकृष्णजी ने सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी को मंदिर का इतिहास, मंदिर की वर्तमान स्थिति, मंदिर निर्माण में भारत सरकार की हो रही सहायता आदि विषयों की जानकारी दी । साथ ही वर्तमान में हो रहा मंदिर निर्माण का कार्य दिखाया एवं कहा कि, ‘मंदिर में कोई सुधार करना हो, तो अवश्य बताएं ।’ तत्पश्चात उन्होंने मंदिर निर्माणशास्त्र से संबंधित पुराने दस्तावेज एवं पुस्तिका महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के लिए भेंट दिए ।
५. मंदिर पुनर्निर्माण कार्य करनेवाले चेन्नई के
श्री. सेल्वनाथन ने महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के निर्माण के
लिए आवश्यक निर्माणशास्त्र संबंधी सर्व जानकारी देने की इच्छा व्यक्त करना
इस अवसर पर मंदिर के पुनर्निर्माण का कार्य करनेवाले चेन्नई के श्री. सेल्वनाथन की भेंट हुई । उन्होंने बताया कि मंदिर निर्माण के लिए आवश्यक पत्थर तथा कर्मचारी भारत से लाए गए हैं । उन्होंने महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के लिए निर्माणशास्त्र संबंधी कोई भी जानकारी अथवा उससे संबंधित ग्रंथ देने की इच्छा व्यक्त की । इससे हमारे ध्यान में आया कि, ‘केतीश्वरम जाने का नियोजन ईश्वरीय नियोजन था तथा गुरुकृपाके कारण ही श्री. सेल्वनाथन से परिचय हुआ था ।’