१. मुन्नीश्वर मंदिर का इतिहास
१ अ. ‘मुन्नीश्वरम मंदिर’ श्रीलंका का सबसे बडा हिन्दू मंदिर
श्रीराम तोण्डीश्वरम, कोनेश्वरम, नगुलेश्वरम, केतीश्वरम आदि स्थानों पर जाकर मुन्नीश्वरम में आते हैं । मुन्नीश्वरम ग्राम श्रीलंका के पुत्तलम जनपद में है । तमिल में ‘मुन्न’ अर्थात ‘आदि’, तथा ‘ईश्वर’ अर्थात ‘शिव’ । ऐसा कहा जाता है कि जो श्रीराम आने से पहले ही यहां था, वह है ‘मुन्नीश्वरम’। इस गांव में तमिल हिन्दू तथा सिंहला भाषी बौद्धों की संख्या समान है । इस गांव के सभी लोगों का मुन्नीश्वरम देवता पर विश्वास है । श्रीलंका का यह सबसे बडा हिन्दू मंदिर है । यहां के शिव का नाम ‘मुन्नैनाथ स्वामी’ तथा देवी पार्वती का नाम ‘वडिवांबिगा देवी’ है ।
१ आ. पुर्तगालियों ने मंदिर पर आक्रमण कर मंदिर
का परिसर नष्ट करना । तदुपरांत सिंहल राजा कीर्तीश्री राजसिंघे ने
मंदिर का पुनर्निर्माण करना । आज का मंदिर एक भक्त श्री. कुमारस्वामी गुरुजी द्वारा
निर्माण किया जाना तथा मंदिर में होनेवाले उत्सवों के दिन श्रीलंका के कोने-कोने से भक्त दर्शन के लिए आना
वर्ष १५७८ में पुर्तगालियों ने मुन्नीश्वरम मंदिर पर आक्रमण किया । उन्होंने मंदिर का परिसर नष्ट किया; परंतु मंदिर की आधारशिला वैसी ही रखी । पुर्तगालियों ने मंदिर की आधारशिला पर चर्च बनाया । तदुपरांत उन्होंने ईसाई धर्म का प्रसार आरंभ किया । वर्ष १६४० तक मुन्नीश्वरम ग्राम के ५०० लोगों को ईसाई बनाया गया । पुर्तगालियों ने मंदिर पर आक्रमण करने से पहले ही ईश्वर की कृपा से मंदिर के पुजारियों ने मंदिर का शिवलिंग एवं अन्य देवताओं की मूर्तियां वहां से हटा दी थीं । वर्ष १७५३ में कॅण्डी के सिंहल राजा कीर्तीश्री राजसिंघे ने मंदिर का पुनर्निर्माण एवं कुम्भाभिषेक भी किया । ऐसा उल्लेख है कि उस राजा ने मंदिर के नाम से भूमि दान कर प्रतिदिन मंदिर के देवताओं के पूजन-अर्चन की व्यवस्था भी की थी । आज का मंदिर कोलम्बो के एक भक्त श्री. कुमारस्वामी गुरुजी ने निर्माण किया है । इस मंदिर में होनेवाले उत्सवों में श्रीलंका के कोने-कोने से भक्त श्री मुन्नीश्वरम के दर्शन करने आते हैं ।
१ इ. पुजारियों द्वारा मंदिर दिखाया जाना एवं रामराज्य के लिए विशेष प्रार्थना एवं पूजा करना
सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी मंदिर आईं, तब मंदिर के मुख्य पुजारी के कहने पर अन्य एक पुजारी ने हमें मंदिर दिखाया । पुजारियों ने रामराज्य के लिए विशेष प्रार्थना की । इस अवसर पर सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ने पुजारियों को तमिल सनातन पंचांग उपहार में दिए ।
२. मानावरी में प्रभु श्रीराम द्वारा स्थापित बालु का शिवलिंग
२ अ. रावण से युद्ध करने से पहले प्रभु श्रीराम द्वारा यहां बालु का शिवलिंग स्थापित कर उसकी पूजा करना
मुन्नीश्वरम गांव से १० कि. मी. की दूरी पर ‘मानावरी’ गांव है । रावण के साथ युद्ध करने के लिए जाते समय प्रभु श्रीराम ने रामेश्वरम में बालु के शिवलिंग की स्थापना कर उसकी पूजा की । आगे श्रीराम रामेश्वरम से ‘रामसेतु’ के मार्ग से श्रीलंका के मन्नार में जाते हैं । युद्ध के पहले श्रीराम मुन्नीश्वरम के निकट समुद्रतट पर आते हैं । यही है, वह मानावरी गांव । श्रीराम यहांपर बालु का शिवलिंग स्थापित कर उसकी पूजा करते हैं । संपूर्ण पृथ्वी पर श्रीराम द्वारा स्थापित केवल दो ही शिवलिंग हैं । उनमें से एक भारत के रामेश्वरम में तथा दूसरा श्रीलंका के मानावरी में है । रामेश्वरम के मंदिर का प्रवेशद्वार समुद्र की दिशा में है तथा मानावरी स्थित मंदिर के पीछे समुद्र है ।
२ आ. मंदिर के पुजारी द्वारा भावपूर्ण पूजा कर रामराज्य के लिए प्रार्थना करना, ‘पृथ्वी पर
रामराज्य निश्चित ही आएगा’, ऐसा उन्होंने कहना एवं इस मंदिर में चैतन्य तथा शांति की अनुभूति होना
हम सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी के साथ इस मंदिर में गए । वहां के पुजारी ने हमारा परिचय मांगा और वहां आने का कारण पूछा । तब सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ने बताया कि, ‘‘ हम भारत से आए हैं । हम साधना करते हैं । आप हमारी ओर से भगवान से प्रार्थना करें कि, ‘पृथ्वी पर शीघ्रातिशीघ्र रामराज्य आएं’ ।’’ पुजारी ने तुरंत भावपूर्ण प्रार्थना की । उन्होंने सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी को प्रसाद दिया एवं कहा, ‘‘माताजी आपकी इच्छा अवश्य पूरी होगी । पृथ्वी पर रामराज्य निश्चित ही आएगा ।’’ यह सुनकर हम सभी का भाव जागृत हुआ । जैसे कि मानो प्रभु श्रीराम ही उस व्यक्ति के माध्यम से बोल रहे थे । हमें इस मंदिर में अत्यधिक चैतन्य तथा शांति की अनुभूति हुई ।
३. परात्पर गुरु डॉ. आठवले तथा सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी की
कृपा से ही ‘प्रभु श्रीराम की लीलाओं का प्रत्येक स्थान तीर्थस्थल है’, इसकी अनुभूति होना
‘प्रभु श्रीराम ने पृथ्वी पर जहां भी लीलाएं की, ऐसा प्रत्येक स्थान एक तीर्थस्थल है’, यह हम परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की कृपा से अनुभव कर पाएं । सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी की कृपा से हम समझ पाएं कि, ‘प्रत्येक मंदिर में कौन-सा भाव रखना है ? कौन-सी प्रार्थना करनी है तथा वहां क्या सीखना है ?’ इसलिए इस यात्रा में सम्मिलित सभी साधक, परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी एवं सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी के श्रीचरणों में हम कोटि-कोटि कृतज्ञता व्यक्त करते हैं ।’