अनुक्रमणिका
- १. त्रैलोक्य के योगीराज अवतरित हुए धरतीपर ।
- २. संत भक्तराज महाराज द्वारा शिष्यावस्था में तडप के साथ की गई गुरुसेवा
- ३. संत भक्तराज महाराज के जीवन की त्रिसूत्री : भजन, भ्रमण एवं भंडारा !
- ४. भक्तों से समरस संत भक्तराज महाराज !
- ५. माया में होते हुए भी वैराग्यभाव में रहनेवाले आदर्श गुरु प.पू. भक्तराज महाराजजी !
- ६. भक्तों को विविध पद्धतियों से सिखानेवाले संत भक्तराज महाराज !
- ७. संत भक्तराज महाराज के आशीर्वाद के कारण सनातन संस्था का कार्य ऐसे बढता गया
- ८. संत भक्तराज महाराज की कृपा का प्रत्यक्ष प्रमाण देनेवाली विशेषतापूर्ण घटनाएं
- ९. श्री गुरुचरणों में प्रार्थना !
१. त्रैलोक्य के योगीराज अवतरित हुए धरतीपर ।
प.पू. भक्तराज महाराजजी का मूल नाम श्री. दिनकर सखाराम कसरेकर था । गुरुप्राप्ति के उपरांत श्रीगुरु ने अर्थात प.पू. श्री अनंतानंद साईशजी ने उनकी भक्ति देखकर उनका नामकरण ‘भक्तराज’ किया । ९ फरवरी १९५६ को रात दस बजे दिनकर को (प.पू. भक्तराज महाराजजी को) श्रीगुरु के प्रथम दर्शन हुए और १२ दिसंबर १९५७ को गुरु ने देहत्याग किया; अर्थात दिनकर को एक वर्ष दस मास, केवल इतना ही गुरु का संग प्राप्त हुआ । इतनी अल्प कालावधि में भी गुरु ने दिनकर की शिष्य से गुरुपद तक प्रगति करवा ली । इतनी अल्प कालावधि में प.पू. भक्तराज महाराजजी ने अत्यंत लगन से गुरुसेवा कर तीव्र प्रगति की, यह देखने में आता है ।
संत भक्तराज महाराज ने अपने एक भजन में अपने गुरुदेवजी को संबोधित करते हुए उक्त रचना की है । यह भजन बाबाजी को भी लागू पडता है । संत भक्तराज महाराज (बाबा) गृहस्थाश्रमी होते हुए भी वे अंदर से योगीराज ही थे ! साधक एवं भक्तों का उद्धार करने हेतु बाबा अवतरित हुए वह दिन था ७ जुलाई १९२० !
२. संत भक्तराज महाराज द्वारा शिष्यावस्था में तडप के साथ की गई गुरुसेवा
शिष्यावस्था के समय ‘गुरु’ और गुरुपदपर होते समय ‘भक्त’; इन २ शब्दों में ही मानो बाबाजी का जीवन समाया हुआ था । शिष्य होने के समय जब गुरुदेव बिना चप्पल डाले बाहर निकलने लगे, तो तुरंत ही गोद में उनकी चप्पल लेकर उनके पीछे भागना, भजन के कार्यक्रम में गुरुदेवजी ने उठने के लिए नहीं कहा; इसलिए निरंतर ८-१० घंटोंतक भजन गाना, गुरुदेवजी के सामने घंटोंतक एक पैरपर खडे रहकर भजन गाना, रात में गुरुदेवजी के सोने के समय उनके द्वारा रोके जानेतक उनके पैर दबाना आदि बाबाजी की गुरुसेवा का कोई तोड नहीं था । बाबाजी ने अपनी इस गुरुसेवा से शिष्यत्व का आदर्श ही सबके सामने रखा है ।
३. संत भक्तराज महाराज के जीवन की त्रिसूत्री : भजन, भ्रमण एवं भंडारा !
३ अ. भजन
प.पू. बाबा कहते थे, ‘भजन ही मेरा जीवन है ।’ ‘भजन’ बाबा का सर्वाधिक प्रिय विश्राम का माध्यम है ! बाबा अर्थात भजन और भजन अर्थात बाबा ।शिष्यावस्था में भजन ही बाबा की साधना एवं सेवा थी । गुरु के समक्ष खडे रहकर बाबा ने घंटों भजन गाए । गुरुपद पर आरूढ होने पर शिष्यों को उपदेश देने और चैतन्य से एकरूप होकर मार्गदर्शन करने के माध्यम बन गए ‘भजन’ । प.पू. बाबा उच्च स्तर के संत होने के कारण भजनों के रचनाकार, संगीतकार एवं गायक संत ही हैं । संतमुख से उद़्धृृत भजन चैतन्य प्रक्षेपित करते हैं । इसलिए भजन सुननेवालों को अनुभूतियां होती हैं । ऐसे भजनों की निर्मिति करनेवाले प.पू. बाबा के चरणों में साष्टांग नमन !
बाबा के भजनों की विशेषता यह कि आज इतने वर्ष पश्चात भी प्रत्येक साधक को प्रत्येक प्रसंग में उनके भजनों से साधना के लिए आवश्यक अर्थ समझ में आता है ! इसलिए बाबाजी के भजन एक अनमोल धरोहर ही है । बाबाजी ने भजनों के माध्यम से केवल भक्तियोग की ही नहीं, अपितु नामसंकीर्तनयोग, कर्मयोग, ज्ञानयोग आदि साधनामार्गों की भी सिख दी ।
कई साधकों ने इसका अनुभव किया है कि बाबाजी के भजनों को केवल सुनने से ही उनमें विद्यमान चैतन्य के कारण अनिष्ट शक्तियों का कष्ट न्यून होकर आगे जाकर नष्ट होता है ।
३ आ. भ्रमण
भक्तों को सत्संग और आनंद मिले तथा उन्हें मार्गदर्शन मिले; इसके लिए धूप-वर्षा, तुफान-हवा आदि किसी की भी चिंता न करते हुए और आवश्यकता पडनेपर बीमारी में भी प.पू. बाबा अनेक कि.मी. की यात्रा कर भक्तों के पास जाते थे । प.पू. बाबाजी की इन चैतन्यदायक सान्निध्य की स्मृतियां आज भी भक्तों को रोमांचित किए बिना नहीं रहतीं ।
३ इ. भंडारा
एक बार बाबाजी के गुरुदेवजी ने सभी को बताया, ‘‘कल दिनू के यहां भंडारा है ।’’ (बाबाजी का पहले का नाम दिनकर था । तब अनेक लोग उन्हें दिनू कहकर बुलाते थे ।) तब बाबा ने मन ही मन कहा, ‘मेरे पास तो पैसे नहीं हैं और घर में भंडारा के लिए आवश्यक सामग्री भी नहीं है । ऐसे में मैं भंडारा कैसे कर पाऊंगा ? तब बाबाजी ने ‘अब गुरुदेवजी ही सब निभा लेंगे’, यह विचार कर भंडारा करना सुनिश्चित किया । गुरुदेवजी ने बहुत लोगों को भंडारे का निमंत्रण दिया । उसके पश्चात गुरुकृपा से भंडारा हेतु आवश्यक सामग्री का प्रबंध अपनेआप ही हुआ और भंडारे में किसी बात का अभाव नहीं रहा । गुरुदेवजी द्वारा की गई परीक्षा में बाबाजी उत्तीर्ण हुए । आगे जाकर बाबाजी ने उनके पास पैसे न होते हुए भी असंख्य भंडारे किए और भक्तों को सिखाया, ‘गुरु के प्रति दृढ श्रद्धा रखें और गुरु के लिए सबकुछ त्याग कर देखें कि कैसे गुरुकृपा होती है !’
४. भक्तों से समरस संत भक्तराज महाराज !
सामान्यरूप से महान संत-महात्मा जपजाप, ध्यानधारणा, समाधी आदि में व्यस्त होते हैं और कुछ समय भक्तों का मार्गदर्शन करते हैं; परंतु बाबाजी को भक्तों के बिना स्वस्थ ही नहीं लगता था, इतने वे भक्तों से समरस थे ।
५. माया में होते हुए भी वैराग्यभाव में रहनेवाले आदर्श गुरु प.पू. भक्तराज महाराजजी !
प.पू. बाबा कलियुग में भक्तों के आधारस्तंभ थे । उन्होंने अनेक भक्तों को कठिन परिस्थितियों से बाहर निकाला । ‘मैं ऐसा-वैसा गुरु नहीं हूं । मैं मार्ग बतानेवाला नहीं, अपितु मार्ग पर चलानेवाला गुरु हूं’, ऐसा वे कहते थे । प.पू. बाबा ने विविध प्रकार से शिष्यों को तैयार किया । शब्दजन्य और शब्दातीत, अर्थात अनुभूतिजन्य, ऐसी दोनों पद्धतियों से वे शिष्यों को सिखाते थे; परंतु शब्दों द्वारा सिखाते समय कई बार वे क्या सिखा रहे हैं ?, यह समझ में नहीं आता था; क्योंकि तब मन शून्य हो जाता था अथवा ध्यान लग जाता था । प.पू. बाबा केवल अध्यात्म नहीं सिखाते थे; अपितु शिष्यों से साधना, एवं नामजप करवा लेते थे ।
‘माया में रहकर भी संन्यस्त जीवन कैसे जीएं ?’, इसका आदर्श उदाहरण हैं प.पू. बाबा ! वैराग्यभाव के कारण निरंतर शिवब्रह्म स्थिति में रहनेवाले वे अलौकिक संत थे । आज प.पू. बाबा हमारे बीच नहीं हैैं, तब भी जहां ‘बाबा’ ऐसी आर्त पुकार गुंजती है, वहां वे दौडे चले आते हैं, इसकी अनुभूति भक्तों को हुई है । इससे निर्गुण स्थिति में वे हमारे साथ हैं, यह ध्यान में आता है । ऐसे गुरु के चरणों में भक्तों द्वारा कितनी भी कृतज्ञता व्यक्त की जाए, तब भी वह अल्प है ।
६. भक्तों को विविध पद्धतियों से सिखानेवाले संत भक्तराज महाराज !
अधिकांश संत केवल मार्गदर्शन के माध्यम से भक्तों को सिखाते हैं; परंतु बाबाजी के पास भक्तों को सिखाने के लिए विविध पद्धतियां थीं । वे मार्गदर्शन के माध्यम से तो सिखाते ही थे; परंतु उसके साथ सहज बातों और आचरण से, व्यंग कर, कभी क्रोधित होकर, तो कभी गालियां देकर भी सिखाते थे । इतना ही नहीं, अपितु कभी भक्तों ने चूकें की, तो बाबा उनको मारते भी थे । भले ही ऐसा हो; परंतु भक्तों को उनके क्रोध में और मारने में प्रेम की नमी और भक्तों के कल्याण की तडप ही प्रतीत होती थी । इसीलिए ही आज भी बाबाजी का केवल स्मरण करने से ही भक्तों के नेत्र भावाश्रुओं से भरे बिना नहीं रहते ।
७. संत भक्तराज महाराज के आशीर्वाद के कारण सनातन संस्था का कार्य ऐसे बढता गया
संत भक्तराज महाराज के आशीर्वाद में कितना सामर्थ्य है, यह समझाने हेतु मैं सनातन संस्था के कार्य के संदर्भ में संक्षेप में जानकारी देता हूं ।
७ अ. संत भक्तराज महाराज द्वारा सनातन संस्था के कार्य हेतु
दिए गए आशीर्वाद और उसके फलस्वरूप सनातन संस्था का वर्धिष्णु कार्य
अनेक संत एवं नाडिपट्टिका (नाडीभविष्य) द्वारा बताए जाने के अनुसार वर्ष २००७ से मेरा महामृत्युयोग चल रहा है । अत्यंतिक थकान के कारण मैं कक्ष के बाहर भी नहीं गया । केवल इतना ही नहीं, अपितु मुझे चलना तो दूर; किंतु बिना किसी के आधार से खडा रहना भी संभव नहीं होता । ऐसी स्थिति में प.पू. बाबाजी के आशीर्वाद के कारण संस्था द्वारा अभीतक जो कार्य हुआ है, उसके संदर्भ में संक्षेप में जानकारी देता हूं । मैं यह जानकारी किसी अहंकार के कारण नहीं बता रहा, अपितु बाबाजी के आशीर्वाद में कितना सामर्थ्य है, यह ध्यान में आए; इसके लिए बता रहा हूं । वर्ष १९९१ में बाबाजी के आशीर्वाद से सनातन संस्था की स्थापना हुई । उन्होंने ही संस्था का नामकरण भी किया था । सनातन संस्था के अध्यात्मप्रसार के कार्य का बीज बाबाजी के संकल्प में है; इसीलिए आज सनातन संस्था का कार्य शुक्ल पक्ष की चंद्रकला की भांति प्रतिदिन बढता ही जा रहा है । बाबाजी द्वारा सनातन संस्था के कार्य के लिए दिया गया आशीर्वाद और उनकी फलश्रुति आगे दी गई है ।
७ अ १. प.पू. बाबा के भजन
बाबाजी के भजनों से चैतन्य मिलता है और उसके कारण अनिष्ट शक्तियों का कष्ट दूर होता है; इसलिए साधना के लिए पूरक के रूप में सर्वत्र के साधक भजन सुनते हैं और उसके कारण वे सेवा कर सकते हैं ।
७ अ २. गुरुकृपायोग
बाबाजी से मैने जो कुछ सिखा, उसके अनुसार मैने ‘साधना कैसे करनी चाहिए ?’, इसके संदर्भ में एक ग्रंथ लिखा और उसे बाबाजी को दिखाकर पूछा, ‘‘बाबाजी, मैं इस साधनामार्ग को क्या नाम दूं ?’’ तब वे कहने लगे, ‘‘नामसंकीर्तनयोग !’’ तब मैने उनसे पूछा, ‘‘इस साधनामार्ग में स्वभावदोष निर्मूलन, अहं निर्मूलन, नामजप, सत्संग, सत्सेवा, भावजागृति, त्याग एवं प्रेमभाव ऐसे ८ अंग बताए गए हैं । उनमें से एक है नामजप ! इन सभी अंगों के अनुसार साधना करने से गुरुकृपा शीघ्र होने हेतु सहायता मिलनेवाली है; इसलिए क्या इसे गुरुकृपायोग’ नाम दिया जाए ?’’ उसपर बाबाजी बहुत आनंदित होकर कहने लगे, ‘‘हां ! यही नाम रखिए !’’ बाबाजी द्वारा दिए गए इस आशीर्वाद के कारण आज सहस्रों साधक गुरुकृपायोग के अनुसार साधना कर रहे हैं ।
७ अ ३. प.पू. बाबाजी द्वारा सिखाई गई व्यष्टि एवं समष्टि साधना
व्यष्टि एवं समष्टि साधना, ये साधना के २ प्रकार हैं । सनातन संस्था व्यष्टि और समष्टि साधना सिखाती है । व्यक्तिगत साधना हेतु अर्थात ईश्वरप्राप्ति होने हेतु व्यष्टि साधना तथा समाज के जिज्ञासुओं की उन्नति हो और उससे ईश्वरीय राज्य की स्थापना हो; इसके लिए उन्होंने समष्टि साधना सिखाई । उन्होंने मुझे समष्टि साधना हेतु ही भारत के अनेक स्थानोंपर और अमेरिका जाने के लिए कहा था, यह अब मेरे ध्यान में आया । समष्टि साधना के कारण ही आज विश्वभर के सहस्रों साधक साधना कर रहे हैं ।
७ अ ४. ग्रंथलेखन हेतु आशीर्वाद !
वर्ष १९९२ में प.पू. बाबाजी मुझे कहने लगे, ‘‘मेरे गुरुदेवजी ने मुझे ‘तू किताबोंपर किताबें लिखेगा’, यह जो आशीर्वाद दिया था, वह अब मैं आपको दे रहा हूं ।’’ उस आशीर्वाद के फलस्वरूप ही दिसंबर २०१९ तक सनातन संस्था द्वारा संकलित किए गए ३२२ ग्रंथों की ११ भारतीय और ६ विदेशी भाषाओं में ७८ लाख ५४ सहस्र प्रतियां प्रकाशित हो चुकी हैं । समाज में इन ग्रंथों की स्वीकार्यता का मुख्य कारण है कि ये सभी ग्रंथ आधुनिक वैज्ञानिक भाषा में हैं और उसमें विविध विषयों के संदर्भ में मन में आनेवाले प्रश्नों के, साथ ही ‘क्यों और कैसे ?’, ऐसे प्रश्नों के उत्तर दिए गए हैं । अभी भी १० सहस्र ग्रंथों का प्रकाशत होना शेष है । प.पू. बाबाजी की कृपा से यह कार्य अगली कुछ पीढीयोंतक चलते रहने हेतु उन्हीं के आशीर्वाद से साधक तैय्यार हो रहे हैं ।
७ अ ५. रामनाथी आश्रम हेतु आशीर्वाद
वर्ष १९९३ में गोवा के श्री रामनाथ देवस्थान में बाबाजी का गुरुपूर्णिमा महोत्सव संपन्न हुआ । उस समय श्री रामनाथ देवस्थान के बाजू में स्थित भूमि की ओर संकेत करते हुए बाबाजी ने कहा था, ‘‘यह सनातन संस्था के भावी आश्रम के लिए नियोजित भूमि है । भविष्य में यह आश्रम विश्वदीप बनेगा !’’ वास्तव में भी आज इसी स्थानपर सनातन संस्था का आश्रम बन गया है । इस आश्रम में भारतसहित अन्य देशों के जिज्ञासु एवं साधक साधना का मार्गदर्शन लेने हेतु आते हैं ।
७ अ ६. ध्वनिचक्रिकाएं और ध्वनिचित्रचक्रिकाएं
अभीतक ‘विविध देवी-देवताओं का नामजप कैसे करना चाहिए ?’, यह सिखानेवाली मराठी और हिन्दी भाषा की ध्वनिचक्रिकाएं और ‘धार्मिक कृत्य कैसे करें ?’, यह सिखानेवाली तथा ‘देवालय में दर्शन कैसे करें ?’, ‘जन्मदिवस कैसे मनाएं ?’ इत्यादि ध्वनिचक्रिकाएं सनातन संस्था द्वारा बनाई गई हैं । उनमें से कुछ ध्वनिचित्रचक्रिकाओं का प्रसारण विविध दूरचित्रवाहिनियों से किया गया है ।
७ अ ७. भारतभर के धर्मप्रसार के कार्य हेतु आशीर्वाद
प.पू. बाबाजी ने मुझे वर्ष १९९२ से १९९५ की अवधि में महाराष्ट्र, गोवा एवं कर्नाटक इन राज्यों में चरणबद्ध पद्धति से साधना का प्रसार करने हेतु आशीर्वाद दिए और आगे जाकर भारत में सर्वत्र प्रसार करने के लिए कहा । उनके आशीर्वाद के कारण ही आज धर्मप्रसार का कार्य विविध उपक्रमों के माध्यम से प्रतिदिन बढता जा रहा है । इसके कुछ उदाहरण आगे दिए गए हैं ।
अ. प.पू. बाबाजी की प्रेरणा से मुंबई के निकट के देवद, साथ ही गोवा में आश्रम स्थापन किए गए हैं और उससे प्रेरणा लेकर मिरज, कर्नाटक, केरल एवं वाराणसी में भी आश्रमों का निर्माण हुआ है । अनेक स्थानोंपर सेवाकेंद्र हैं । विदेश के साधक गोवा के रामनाथी आश्रम आते हैं ।
आ. भारतभर के अनेक स्थानोंपर सत्संग चल रहे हैं, साथ ही प्रतिवर्ष समाज के जिज्ञासुओं के लिए साधना-शिविरों का आयोजन किया जाता है ।
इ. प्रतिवर्ष देश-विदेशों के अनेक स्थानोंपर गुरुपूर्णिमा महोत्सव मनाए जाते हैं, साथ ही कुंभपर्व एवं राज्यों-राज्यों में लगनेवाले मेलों में धर्मप्रसार किया जाता है ।
ई. भारत के विविध राज्यों में हिन्दू राष्ट्र-जागृति सभाएं हो रही हैं ।
उ. प्रतिवर्ष गोवा में अखिल भारतीय हिन्दू अधिवेशन होता है, साथ ही वर्षभर में अनेक प्रांतीय हिन्दू अधिवेशन भी होते हैं ।
७ अ ८. सनातन संस्था के साधकों की अभूतपूर्व आध्यात्मिक उन्नति
सनातन संस्था का एक भी साधक सकाम भक्ति करनेवाला नहीं है । सभी में ईश्वरप्राप्ति की लालसा है । ६० प्रतिशत से भी अधिक आध्यात्मिक स्तर प्राप्त किए गए अर्थात जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त सनातन संस्था के अनेक साधक अब संतपद की ओर अग्रसर हैं । कुछ साधकों ने तो संतपद, तो कुछ साधकों ने सद्गुरुपद भी प्राप्त किया है ।
७ अ ९. ‘सनातन प्रभात’ नियतकालिक
मराठी, हिन्दी, कन्नड एवं अंग्रेजी इन ४ भाषाओं में ‘सनातन प्रभात’ नियतकालिकों का प्रकाशन होता है । दैनिक के ८ पन्नों में से २ से ३ पन्ने केवल अध्यात्म एवं साधना के संदर्भ में होते हैं ।
७ अ १०. विविध संकेतस्थल
संकेतस्थलों के माध्यम से भी बडी मात्रा में अध्यात्मप्रसार का कार्य किया जा रहा है । नवंबर २०१९ में संकेतस्थल को भेंट देनेवालों की कुल संख्या ५ लाख से भी अधिक हैं ।
७ अ ११. अनेक संतों का सनातन संस्था के कार्य से जुड जाना
७ आ. विदेशों के कार्य हेतु आशीर्वाद !
वर्ष १९९५ में प.पू. बाबाजी मुझसे कहने लगे, ‘‘अब तुम प्रसार के लिए अमेरिका जाओ ।’’ तब मैने कहा, ‘‘अमेरिका में मेरा किसी से परिचय नहीं है और वहां जाने के लिए मेरे पास पैसे भी नहीं हैं ।’’ तब वे कहने लगें, ‘‘ठीक है ! तो अमेरिका ही तुम्हारे पास आएगी ।’’ इस आशीर्वाद के कारण अब केवल अमेरिका ही नहीं, अपितु विश्वभर के साधक साधना सिखने हेतु रामनाथी आश्रम आ रहे हैं ।
७ आ १. विदेशों के साधकों की एस्.एस्.आर्.एफ्. (स्पिरिच्युयल साईन्स रिसर्च फाऊंडेशन) के माध्यम से अभूतपूर्व आध्यात्मिक उन्नति
विदेशों के कुछ साधक अब संत एवं सद्गुरु बन गए हैं और ६० प्रतिशत तथा उससे अधिक आध्यात्मिक स्तर प्राप्त साधक संतपद की ओर अग्रसर हैं ।
७ इ. महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय
प्राचीन भारत में नालंदा और तक्षशिला ये २ बडे विश्वविद्यालय थे । ‘इतिहास बनाने की अपेक्षा इतिहास बनाया जाए’, यह सीख होने से वर्ष २४.३.२०१४ को महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की स्थापना की गई ।
अध्यात्म विश्वविद्यालय के संगीत विभाग द्वारा किए गए शोधकार्य में बाबाजी के भजनों में बहुत चैतन्य होने की बात प्रमाणित हुई है ।
अध्यात्म विश्वविद्यालय द्वारा विविध विषयोंपर शोधकार्य चल रहा है । अक्टूबर २०१६ से जनवरी २०२० की अवधि में १५ राष्ट्रीय एवं ४७ अंतरराष्ट्रीय, ऐसे कुल मिलाकर ६२ वैज्ञानिक परिषदों में शोधनिबंध प्रस्तुत किए गए । इनमें से अनेक शोधनिबंधों की मान्यवरों ने प्रशंसा की है । उनमें से ४ अंतरराष्ट्रीय परिषदों में सर्वोत्कृष्ट शोधनिबंध का पुरस्कार प्राप्त हुआ है ।
१. ९ सितंबर २०१८ (दक्षिण कैरोलिना, अमेरिका) : ‘क्या समाजसेवा के कारण आध्यात्मिक उन्नति हो सकती है ?’ – प्रस्तुतकर्ता श्री. कृष्ण मंडावा
२. १६ सितंबर २०१८ (पुरी, ओडिशा) : ‘उच्च आध्यात्मिक स्तर का व्यक्ति ही वास्तविक नेतृत्व कर सकता है !’ – प्रस्तुतकर्ता श्री. शंभु गवारे
३. ३० सितंबर २०१९ (बेंगलुरू) : ‘उद्योगों का समाजपर आध्यात्मिक स्तर का होनेवाला परिणाम ! : प्रस्तुतकर्त्री श्रीमती शिल्पा मगदूम
४. १५ नवंबर २०१९ (जयपुर) : ‘तनावग्रस्त विश्व में आनंद एवं मनःशांति की खोज’ – प्रस्तुतकर्त्री डॉ. स्वाती मोदी
७ ई. सनातन संस्था के सकल कार्य हेतु आशीर्वाद
फरवरी १९९५ में एक भक्त के सामने ही बाबाजी ने कहा था, ‘‘मैं सनातन संस्था को चलाऊंगा !’’ उनके यह बोल अक्षरशः सत्य प्रमाणित हुए हैं । आज सनातन संस्थापर अनेक संकट आ कर भी सनातन संस्था का कार्य बढता ही जा रही है और इस कार्य के लिए कभी भी किसी बात का अभाव नहीं हुआ ।
८. संत भक्तराज महाराज की कृपा का प्रत्यक्ष प्रमाण देनेवाली विशेषतापूर्ण घटनाएं
आज भले ही बाबाजी देहरूप में नहीं हों; परंतु हम सभी बाबाजी की कृपा की प्रचिती कर रहे हैं ।
८ अ. संत भक्तराज महाराज के छायाचित्र में अपनेआप आए बदलाव
वर्ष २००६ में सनातन संस्था के रामनाथी आश्रम में स्थित मेरे कक्ष के पूजाघर में बाबाजी का छायाचित्र रखा हुआ था । उस छायाचित्र में अगस्त २०१० में अपनेआप बदलाव हुए । उस छायाचित्र में बाबाजी का मुखमंडल श्वेतसा पीला और थोडा सा धुंधला होना, निर्गुण तत्त्व की ओर अग्रसर होने की बात को दर्शाता है, तो ‘प्रभामंडल का गहरा और गुलाबी होना’, धर्मप्रसार हेतु आवश्यक कार्यकारी शक्ति के प्रकटीकरण का दर्शक है ।
८ आ. संत भक्तराज महाराजजी का पादुकाओं के रूप में रामनाथी आश्रम में शुभागमन
पणजी, गोवा की प.पू. बाबाजी की भक्त स्मिता राव ने अंतःप्रेरणा से अप्रैल २०१९ में उनके पास स्थित प.पू. बाबाजी की पादुकाएं रामनाथी आश्रम को रखने हेतु सौंप दीं । इसमें हम सभी में ‘पादुकाओं के रूप में बाबा ही पधारे हैं’, यह भाव है ।
उक्त घटनाओं से यह प्रतीत होता है कि मानो प.पू. बाबाजी ही हमें बता रहे हैं, ‘‘आप चिंता न करो । मेरा आपपकर ध्यान है !’’
८ इ. देश-विदेशों के साधकों को संत भक्तराज महाराजजी के संदर्भ में प्राप्त अनुभूतियां
केवल भारत ही नहीं, अपितु विदेशों के अनेक जिज्ञासु एवं साधकों ने बाबाजी को कभी नहीं देखा है; परंतु बाबाजी का छायाचित्र देखने से उनमें भाव जागृत होता है, साथ ही उन्हें उनके संदर्भ में अनेक अनुभूतियां होती हैं ।
‘प.पू. बाबा केवल उच्च कोटि के संत ही नहीं अपितु अवतारी पुरुष भी हैं’, ऐसा सभी का भाव है । घोर कलियुग में भक्तिबीज अंतरंग में रोपनेवाले, मोक्षद्वार तक जाने के लिए दीपस्तंभ समान मार्गदर्शन करनेवाले प.पू. बाबा का चैतन्य उनके भक्त भावस्मृति और सीख द्वारा आगामी अनेक वर्षों तक प्राप्त करेंगे !
९. श्री गुरुचरणों में प्रार्थना !
श्री गुरु की महिमा चाहे कितनी भी गाई जाए, तब भी वह अल्प ही होती है । ‘प.पू. बाबाजी की कृपा सभीपर ऐसी ही अखंडित रहे और वे हमें अध्यात्मप्रसार के कार्य हेतु निरंतर शक्ति प्रदान करें, यह उनके चरणों में भावपूर्ण प्रार्थना कर मैं अपनी वाणी को विराम देता हूं ।’
– शिष्य डॉ. जयंत आठवले
अद्भुत, अकल्पनीय एवं विराट महातेजस्वी स्वरूप वाले ऐसे प.पूजनीय सर्वोच्च आनंद का अनुभव कराने वाले व जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त कराने वाले श्री गुरु चरणों में साष्टांग दंडवत-प्रणाम कर कोटि-कोटि कृतज्ञता व्यक्त करता हूं ।