सर्दियों में होनेवाले विकारों की सरल चिकित्सा

‘सर्दियों में ऋतु के अनुसार ठंड और सूखापन बढता है और उनका उचित प्रतिकार न करने से विविध विकार होते हैं । इनमें से अधिकांश विकारोंपर तेल का उचित उपयोग करना और सेंकना, इन चिकित्साओं का प्रभावशाली नियंत्रण किया जा सकता है ।

 

१. सर्दियों में होनेवाले विकारों की चिकित्सा में उपयोग किया जानेवाला तेल

नारियल तेल ठंडा होता है, तो अन्य सभी तेल गर्म होते हैं । जिन्हें गर्म तेलों से कष्ट होता है, वे निम्नांकित चिकित्साओं के लिए नारियल तेल का उपयोग करें । सरसों का तेल अधिक गर्म होता है ।

किसी भी कटोराभर खाद्यतेल में १-२ लहसून की कलियां अथवा इंचभर अद्रक अथवा बच का टुकडा रखकर उसे रौंदे और इस तेल का मंच आंचपर उबालें । तेल उबलने के पश्‍चात गैस को बंद करें और उसके ठंडे होनेपर छानकर बोतल में भरकर रखें । इस प्रकार से बनाया गया तेल गर्म गुणधर्मवाला होता है । ऐसे तेल से सर्दियों के दिनों में आनेवाली ठंडक दूर होने में सहायता मिलती है ।

 

२. सेंक लेने के विकल्प

सेंक देने हेतु गर्म पानी की थैली का उपयोग करें । गर्म पानी की थैली न हो, तो किसी भारी कपडे को इस्तरी से गर्म कर उससे सेंकें । सर्दियों में पडनेवाली धूप अधिक कडी नहीं होती । इस धूप में कुछ समयतक बैठने से सेंक लेने की भांति लाभ मिलता है । स्नान के समय गर्म पानी से सेंका जा सकता है ।

 

३. सर्दियों में बढनेवाले कुछ विकार और उसकी चिकित्सा

३ अ. त्वचा में दरारें आना

वातावरण में सूखापन बढने से त्वचा और होंठों में दरारें आती हैं । विशेषकर हाथ और पैरों के तलुओं में दरारें आती हैं । त्वचा सूखी होने से खुजली होती है । ऐसे समय खुजलाने से त्वचा खुरचकर निकलती है और वहां जलन होने लगती है । कभी-कभी मूत्रमार्ग के अग्र की त्वचा सिकुडकर वहां भी दरारें आती हैं । उससे मूत्रविसर्जन के समय पीडा होती है ।

३ अ १. चिकित्सा

अ. प्रतिदिन त्वचा को तेल लगाएं । उससे त्वचा मुलायम रहती है और उसमें आई दरारें शीघ्र भर जाती हैं ।

आ. होंठ निरंतर सूखे होते हों, दिन में ३-४ बार होठोंपर तेल लगाएं ।

इ. मूत्रमार्ग के अग्र को भी दिन में २-३ बार तेल लगाएं ।

ई. ठंड से रक्षा होने हेतु ऊन के कपडे, उदा. स्वेटर का उपयोग करें ।

३ आ. सरदी और खांसी

वैद्य मेघराज माधव पराडकर

रात को ओस में घूमने से सरदी लगती है । कई लोग सुबह व्यायाम हेतु पैदल चलते हैं । ऐसे समय में सिर, नाक, मुंह और कान यदि ढंके न हों, तो ओस के कारण सरदी अथवा खांसी होती है । रात में नींद लेते समय अधिकांश समय मुंह खुला रहता है । तब ठंड से नाक बंद होकर मुंह से सांस चलती है । यह ठंडी हवा निरंतर गले में जाने से गले में सूजन होती है और उससे खांसी आने लगती है । ठंड के कारण नाक की आंतरिक त्वचा को सूजन आती है और नाक की बाजू में स्थित हड्डी के अवकाशों में स्थित प्रवाह में बाधा उत्पन्न होती है । इससे सरदी होती है ।

३ आ १. चिकित्सा

अ. दिन में २-३ बार पानी की भांप लें । गर्म भांप के कारण सांस का मार्ग खुल जाता है और उससे  कफ के निकलने में सहायता होती है ।

आ. दिन में २-३ बार करांगुली को तेल में डुबोकर उससे दोनों नासापुटों के अंदर की बाजू से थोडा तेल लगाएं । उससे नाक अंदर से नहीं सूखती और उससे नाक की सूजन न्यून होती है । नाक में आनेवाली ठंड हवा गर्म होकर अंदर जाती है । वातावरण में स्थित परागकण अथवा धूल नाक को अंदर से लगाए तेल को चिपके रहते हैं और उससे होनेवाली एलर्जी से सरदी अथवा खांसी की संभावना टल जाती है ।

इ. सरदी लगने के समय दिनभर दोनों कानो में कपास के फाएं डालें ।

ई. हस्तवस्त्र अथवा ओढणी से नाक और कान ढंक जाएंगे और सांस भी ठीक से चलती रहेगी, इस प्रकार बांधकर सोएं ।

उ. रात में पंखा लगाकर न सोएं । बहुत ही गरमी हो, तो सीलिंग फैन के स्थानपर घूमते हुए टेबल फैन का उपयोग करें, जिससे ठंडी हवा निरंतर शरीरपर न आकर घूमती हुई आने से उससे अधिक कष्ट नहीं होता ।

३ इ. रुक-रुककर मूत्रविसर्जन होना अथवा मूत्रविसर्जन होने में समय लगना

इस विकार के पहले से ही होने से ठंड के कारण इसमें वृद्धि होने की संभावना होती है ।

३ इ १. चिकित्सा

अ. जिसमें बैठना संभव हो, इतने आकारवाला टब लें । प्रतिदिन सुबह उठनेपर स्वयं को जितना सहन हो सकेगा, उतना गर्म पानी लें और उसमें १०-१५ मिनट बैठें । टब में बैठनेपर पानी नाभितक आए, इस प्रकार से बैठें ।

आ. दिन में २-३ बार ५ से १० मिनटतक पेट के नीचले भाग को सेकें ।

३ ई. मलावरोध

ठंड के कारण गुदा सिकुडती है और उससे मलावरोध उत्पन्न होता है । गुदा के सिकुडने से कई बार शौच के लिए कष्ट होगा, इस भय से शौच के लिए जाना टाला जाता है । उससे मलाशय में मल अधिक समयतक रुककर कडा बन जाता है । ठंडे पानी से धोने से वह अधिक ही सिकुड जाता है और उससे मलावरोध उत्पन्न होता है ।

३ ई १. चिकित्सा

अ. रात को सोते समय छिली हुई सुपारी जितना कपास का फाया किसी भी खाद्यतेल में डुबाकर गुदा से गुदमार्ग में सरकाकर रखें । यह कपास का फाया शौच होते समय निकल जाता है । इस फाए के कारण गुदमार्ग के स्नायु मुलायम रहते हैं और वो सहजता से फैल जाते हैं, जिससे बवासिर एवं परिकर्तिका (फिशर – गुदा में दरारें आना) जैसे विकार में इस प्रकार से फाया रखना लाभदायक होता है । जिन्हें बवासीर का कष्ट अधिक होता है, वे कपास के फाए को भिगोने हेतु एरंडबीज का तेल उपयोग करें ।

आ. शौच के लिए बैठनेपर गुदा, साथ ही कमरपर गर्म पानी छिडकें । उससे गुदा के स्नायु फैल जाते हैं । कमरपर गर्म पानी लेने से शौच का वेग आने में सहायता मिलती है ।

३. उ. गर्दन के, साथ ही अन्य स्नायुओं का सिकुडना

ठंड के कारण गर्दन के स्नायु सिकुडने से गर्दन पकड जाती है । जिन्हें पहले से जोडों का दर्द है, उनके जोडों के स्नायु ठंड के कारण सिकुडते हैं और उनमें और पीडा बढ जाती है ।

३ उ १. चिकित्सा

अ. दिन में २-३ बार सिकुडे हुए स्नायुयों को तेल लगाएं । तेल लगाने से पहले उसे गुनगुना करें और अधिक न घिसें ।

आ. तेल लगाने के ५-१० मिनिट पश्‍चात सेंक लें । सेंकते समय दुख रहे भाग की हलचल करें । सेंकने की गरमी से स्नायु ढीले हो जाते हैं । ऐसे स्नायुओं की हलचल करने से उनका सिकुडना न्यून होता है ।

३ ऊ. एडियों में पीडा होना

ठंडे फर्शपर चलने से अथवा ठंडी फर्शपर पैर रखकर बैठने से एडियों में पीडा होने लगती है ।

३ ऊ १. चिकित्सा

अ. पैरों में चप्पल पहनें ।

आ. एडियों की सिंकाई करें ।

इ. एक ही स्थानपर अधिक समयतक खडा अथवा बैठना होना हो, उदा. संगणक के सामने बैठना अथवा रसोई हेतु शेगडी के सामने खडे रहना) पैर के नीचे किलतान अथवा पायपोश लें ।’

– वैद्य मेघराज माधव पराडकर

 

जिन्हें ठंड सहन नहीं होती, उनके लिए घर
बनाते समय पत्थर से बनी (संगेमरमर, कोटा, गैनाईट इत्यादि)
फर्श के स्थानपर मिट्टी के अथवा सिरैमिक के फर्श बिठा लेना उपयुक्त !

संगेमरमर, कोटा, ग्रैनाईट आदि पत्थर से बने फर्श अधिक ठंडे होते हैं । ठंड में ऐसे फर्श से अधिक कष्ट होता है । इन फर्शों की तुलना में मिट्टी अथवा सिरैमिक से बने फर्श बिठा लेना अधिक उपयुक्त होता है । – वैद्य मेघराज माधव पराडकर

 

सिलिंग फैन की अपेक्षा घूमता हुआ टेबल फैन अच्छा !

सिलिंग फैन के कारण शरीरपर निरंतर हवा को झोंका आता रहता है । निरंतर शरीरपर हवा लेना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है । रात की नींद ६ घंटे हो, तो उतने समयतक अर्थात दिन का १/४ समय शरीरपर निरंतर हवा आती रहती है । निरंतर हवा आने के कारण शरीर में सूखापन बढता है; स्नायु सिकुडते हैं; कमर, पीठ, गर्दन और अन्य जोडों में पीडा बढती है, श्‍वसनमार्ग सूखकर बार-बार सरदी लगना, खांसी होना आदि कष्ट बढते हैं । रात में सोते समय गरमी होती है; इसलिए पंखे की गति बढाकर सोया जाता है; परंतु जब रात में ठंड पडती है, तब नींद में होने के कारण पंखा बंद नहीं किया जा सकता । इस अवधि में शरीर को अनावश्यक हवा का झोंका सहन करना पडता है । जबतक शरीर की रोगप्रतिकारक शक्ति अच्छी होती है, तबतक शरीर इस पंखे की हवा के कारण होनेवाले विकारों का प्रतिकार करता है; परंतु प्रतिकारक्षमता न्यून हो जानेपर इस हवा के कारण विकार उत्पन्न होने लगते हैं, यह रोगी के ध्यान में भी नहीं आता । उसके कारण रोग का यह कारण निरंतर चलता ही रहता है और उससे कितनी भी औषधियां लेनेपर भी सुधार नहीं आता, ऐसी स्थिति बन जाती है । ऐसे समय में पंखे की हवा लेना बंद करने से स्वास्थ्य में सुधार होने लगता है ।

इसके लिए सिलिंग फैन की अपेक्षा घूमते हुए टेबल फैन का उपयोग करना अच्छा होता है । घूमते हुए पंखे के कारण हवा का झोंका एक ही स्थानपर नहीं आता, जिससे सिलिंग फैन के कारण होनेवाले दुष्परिणाम नहीं होते ।’

– वैद्य मेघराज माधव पराडकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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