(कर्नाटक) के सुप्रसिद्ध शिल्पी श्री. काशीनाथ के. संतपदपर विराजमान !

सनातन संस्था की ओर से पू. रमानंद गौडाजी ने किया सम्मानित !

पू. श्री. काशिनाथ के

शिवमोग्गा (कर्नाटक) : जिस प्रकार से तपसाधना कर ईश्‍वरप्राप्ति करनेवाले अनेक संत-महात्मा हैं, उसी प्रकार से अपने नित्य कर्म एकरूपता से कर उसके माध्यम से ईश्‍वर से अनुसंधान साधनेवाले उन्नत भी हैं । घर के नित्य कर्म करते समय अनाज पीसने के लिए भी ईश्‍वर को पुकारनेवाली संत जनाबाईजी, ‘प्याज- मुला-सब्जी ही मेरे विठ्ठल’ कहते हुए अपने खेत में ही भक्ति की बागबानी करनेवाले संत सावता महाराज, मटकियां बनाते समय भगवान का नामजप करने से उनके द्वारा बनाए गए मटकियों से भी नामजप सुनाई देने की अद्भुत लीला अनुभवनेवाले संत गोरा कुम्हारजी भी हैं । आज के रज-तमात्मक कलियुग में भी इसी प्रकार से शिल्पकला के माध्यम से भगवान से अनुसंधान रखनेवाले सुप्रसिद्ध शिल्पी श्री. काशिनाथ के. संतपदपर विराजमान हुए । सनातन संस्था के धर्मप्रचारक पू. रमानंद गौडाजी ने इसकी घोषणा की । पू. रमानंद गौडाजी ने इस अवसरपर परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा दिए गए संदेश को पढा । इस संदेश में कहा गया था, ‘‘भगवान की मूर्तियां अथवा शिल्प बनाते समय उसमें विद्यमान ईश्‍वरीय तत्त्व के साथ एकरूप होकर अपना कर्म भावपूर्ण एवं निरपेक्षता से करनेवाले श्री. काशिनाथ के. अपने दैवीय गुणों के कारण संतपदपर विराजमान हुए हैं ।’’ और उन्होंने पू. काशिनाथ के. को सम्मानित किया । शिवमोग्गा (कर्नाटक) में १९ दिसंबर को संपन्न एक भावसमारोह में यह शुभसमाचार दिया गया । इस अवसरपर सनातन संस्था के साधकोंसहित पू. काशिनाथजी की पत्नी श्रीमती उषाबाई, पू. काशिनाथजी के भाई श्री. ज्ञानेश्‍वर, श्री. प्रवीण एवं श्री. नारायण; उनकी छोटी बहन श्रीमती रेणुका तथा उनके पति श्री. श्रीधर; पू. काशिनाथजी के शिष्य श्री. बंगारस्वामी एवं श्री. पांडुरंग और उनके मित्र सेवानिवृत्त डाकपाल श्री. बसवराज उपस्थित थे ।

पू. काशिनाथजी (दाहिनी ओर) को सम्मानित करते हुए सनातन संस्था के धर्मप्रचारक पू. रमानंद गौडाजी

 

१. ऐसे हुई घोषणा !

पू. रमानंद गौडाजी द्वारा साधकों का स्वभावदोष एवं अहं निर्मूलन के संदर्भ में मार्गदर्शन किए जाने के पश्‍चात पू. काशिनाथजी के संदर्भ में एक ध्वनिचित्रचक्रिका दिखाई गई । उसके माध्यम से पू. काशिनाथजी किस प्रकार से शिल्पकला के माध्यम से सेवा करते हैं तथा शिल्प बनाते समय वे किस प्रकार भाव रखते हैं, इसके संदर्भ में साधकों को सिखने को मिला । उसके पश्‍चात देवताओं के शिल्प बनाते समय पू. काशिनाथजी ने स्वयं में ही उन दैवीय गुणों को अंतर्भूत किया है, ऐसा बताते हुए पू. रमानंद गौडाजी ने सभी को पू. काशिनाथजी के संतपदपर विराजमान होने का शुभसमाचार दिया ।

 

२. पू. काशिनाथ के. : ‘ईश्‍वर के लिए कर रहे हैं’, यह भाव होना चाहिए !

हमें प्रत्येक कृत्य करते समय ‘हम यह ईश्‍वर के लिए कर रहे हैं’, इस भाव से सेवा करनी चाहिए । ऐसा करने से अपनेआप ही सेवा में एकाग्रता होती है ।

 

३. श्री. ज्ञानेश्‍वर के. (पू. काशिनाथजी के भाई)

मेरे भैया ही मेरे गुरु हैं । मैने उन्हीं से शिल्पकला सिखी है । यह कला हमें हमारे नानाजी (मां के पिता) से मिली है ।

 

४. श्री. नारायण के. (पू. काशिनाथजी के भाई)

हमारे पूर्वजन्म के पुण्यफल के कारण ही हमें पू. काशिनाथजी मिले हैं । ‘कन्नड शिल्पकला को जीवित रखने हेतु ही ईश्‍वर ने उन्हें कर्नाटक राज्य में जन्म दिया है’, ऐसा लगता है ।

पू. काशिनाथजी के परिवार की यह विशेषता है कि इस परिवार के सभी सदस्य इस कला से जुडे हुए हैं ।

पू. काशिनाथजी द्वारा मुरुडेश्‍वर (कर्नाटक) में बनाई गई १२३ फीट ऊंचाईवाली मूर्ति

 

५. साधकों द्वारा बताई गईं पू. काशिनाथजी की गुणविशेषताएं !

अ. राजू सुतार (मूर्तिकला कक्ष, सनातन आश्रम, रामनाथी)

पू. काशिनाथजी से जब मैं पहली बार मिला तभी मुझे ‘वे संत हैं’, ऐसा लगा था । ‘वे प्रतिक्षण आनंदित एवं भावावस्था में होते हैं’, ऐसा प्रतीत हो रहा था । वे मूर्तिकला के संदर्भ में मेरा मार्गदर्शन करनेवाले हैं, यह ज्ञात होनेपर मैने अत्यंत आनंदित होकर परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के चरणों में कृतज्ञता व्यक्त की । उन्होंने मुझे ‘मूर्ति बनाते समय स्वयं का अहं न बढे; इसके लिए कैसे प्रयास करने चाहिएं’, यह बहुत ही प्रेम से बताया । आज उनकी आयु ७५ वर्ष है; परंतु वे थके हुए दिखाई नहीं दे रहे थे । उनके सान्निध्य में प्रतिक्षण उत्साह प्रतीत हो रहा था ।

आ. श्री. रामानंद परब (मूर्तिकला कक्ष, सनातन आश्रम, रामनाथी)

पू. काशिनाथजी एक बडे शिल्पी होते हुए भी उनकी जीवनशैली बहुत सादगीपूर्ण है । पू. काशिनाथगुरुजी में प्रेमभाव होने से उनके सान्निध्य में आनंद प्रतीत होता है और उनसे सिखते समय भी उत्साही लगता है । मुझे भी ‘वे संत हैं, मूर्ति बनाते समय वे उस मूर्ति के साथ एकरूप हो जाते हैं और मूर्ति बनाते समय ध्यानावस्था में होते हैं’, ऐसा प्रतीत हुआ । उनके सान्निध्य में मेरा भाव सहजता के साथ जागृत हो रहा था । पू. गुरुजी ने बताया कि यदि हममें गुरुदेवजी के प्रति निष्ठा हो, तो हम कोई भी कला बडी सहजता से सिख सकते हैं ।

 

पू. काशिनाथजी द्वारा सनातन आश्रम के प्रति व्यक्त गौरवोद्गार

सनातन आश्रम देवलोक ही है !

कुछ दिन पूर्व मैं रामनाथी (गोवा) के सनातन आश्रम गया था । वहां के साधकों की जीवनशैली मुझे बहुत अच्छी लगी । आश्रम में मुझे दैवीय वातावरण प्रतीत हो रहा था । सनातन धर्म की रक्षा हेतु, साथ ही प्रत्येक कला का जतन एवं संवर्धन करने हेतु परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी कार्यरत हैं । उनके साधक भी तन-मन-धन और सर्वस्व को त्यागकर सेवाभाव से सेवारत हैं । सनातन आश्रम तो देवलोक ही है ।

स्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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