रामनाथी (गोवा) : उडुपी (कर्नाटक) के उदयानंद स्वामीजी ने २ दिसंबर को यहां के सनातन आश्रम का अवलोकन किया । सनातन संस्था के साधक श्री. वैभव माणगावकर ने उन्हें आश्रम में चल रहे राष्ट्र एवं धर्मकार्य की जानकारी दी । नित्यानंद स्वामीजी के शिष्य उदयानंद स्वामीजी का मूल नाम अनंत पद्मनाभस्वामी है, तो प्रचलित नाम उदयानंद स्वामीजी है । उन्हें जन्म से ही वास्तुशास्त्र, संख्याशास्त्र, आयुर्वेद, संगीतशास्त्र आदि विषयों का सूक्ष्म से ज्ञान मिल रहा है ।
१. उदयानंद स्वामीजी की सूक्ष्म का जानने की अद्भुत क्षमता !
स्वामीजी ने अपने आश्रम में निवास की अवधि में संख्याशास्त्र, साथ ही आयुर्वेद आदि विषयोंपर अभ्यासवर्ग लेकर साधकों का मार्गदर्शन किया । संख्याशास्त्र को विस्तार से स्पष्ट करते हुए स्वामीजी ने कुछ साधकों के जन्मदिनांकपर आधारित भविष्यकथन किया । उसमें साधक का स्वभाव तथा उसकी आध्यात्मिक यात्रा के संदर्भ में बताया, जिसका अचूक होने की साधकों ने पुष्टि की । स्वामीजी ने आयुर्वेद की किसी प्रकार की लौकिक शिक्षा नहीं ली है; किंतु उन्हें उसके संदर्भ में सूक्ष्म से ज्ञान प्राप्त होता है उनके द्वारा शारीरिक कष्टोंपर आयुर्वेद के अनुसार बताए गए उपाय मूल आयुर्वेद से मेल खानेवाले हैं ।
२. उदयानंद स्वामीजी की विनम्रता एवं शिष्यभाव !
अ. स्वामीजी बार-बार ‘मैं आपके आश्रम में सिखाने हेतु नहीं, अपितु सिखने हते आया हूं ।’, ऐसा कह रहे थे ।
आ. आश्रम के अपने निवास की अवधि में स्वामीजी के पलंगपर तकिए और सिरहाना रखा गया था; परंतु स्वामीजी ने उस पलंगपर स्वयं विश्राम न कर वहां उनके गुरु नित्यानंद स्वामीजी की प्रतिमा रखी और स्वयं के लिए अन्य पलंग का उपयोग किया ।
३. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के प्रति उदयानंद स्वामीजी द्वारा व्यक्त गौरवोद्गार !
अ. आपके गुरुदेवजी में इतनी शक्ति है कि वे केवल आश्रम के साधकों को ही नहीं, अपितु करोडों साधकों भी संभाल सकते हैं ।
आ. उदयानंद स्वामीजी परात्पर गुरु डॉक्टरजी के कक्ष में नहीं गए थे; परंतु सूक्ष्म से स्वामीजी के ध्यान में यह आया कि परात्पर गुरुदेवजी के कक्ष में स्थित नल से आनेवाले पानी में ॐकार नाद सुनाई देता है । वास्तव में भी साधकों को इसकी अनुभूति होती है ।
४. सनातन आश्रम के संदर्भ में उदयानंद स्वामीजी द्वारा व्यक्त गौरवोद्गार !
अ. सनातन संस्था का कार्य बहुत अच्छा है । यहां जो कुछ हो रहा है, उसे विष्णुस्वरूप गुरुदेवजी ही कर रहे हैं । सनातन आश्रम सचमुच का वैकुंठ है ।
आ. साधक को स्वयं में बदलाव लाने हेतु आश्रम में आकर रहना चाहिए । आश्रम में रहने से ही हममें बदलाव आएंगे ।
इ. मैं इस आश्रम में आया हूं; क्योंकि मेरा अनेक जन्मों का पुण्य है ।
ई. आध्यात्मिक आश्रम में किस प्रकार व्यवस्था होनी चाहिए, इसका सनातन आश्रम एक प्रशिक्षण केंद्र बनना चाहिए । भारतभर के सभी आश्रमों के प्रतिनिधियों को यहां की व्यवस्था सिख लेनी चाहिए ।
उ. इस आश्रम में इतनी सकारात्मकता है कि यहां का वातावरण ध्यान के लिए अत्यंत अनुकूल है ।
ऊ. आश्रम में प्रसादग्रहण करते स्वामीजी ने कहा कि इस अन्न में बहुत सात्त्विक स्पंदन प्रतीत होते हैं ।
५. उदयानंद स्वामीजी द्वारा साधकों का किया गया मार्गदर्शन
अ. गुरु शिष्य के लिए परिश्रम उठाते हैं । शिष्य की उन्नति हो; इसके लिए गुरु ही हमें ढूंढते हुए आते हैं ।
आ. प्रत्येक साधक में यह दृढविश्वास होना चाहिए की गुरुदेवजी मुझ में ही हैं और वहीं मेरी आध्यात्मिक उन्नति करवाकर लेंगे ।
इ. यहां के सभी साधकोंपर मेरे गुरु नित्यानंद स्वामीजी की भी कृपा है । नित्यानंद स्वामीजी गुरुदेवजी और साधकों को कुछ होने नहीं देंगे ।
६. उदयानंद स्वामीजी के संकटकाल के संदर्भ में विचार !
अ. भविष्य में बेंगलुरू, मंगलुरू और मुंबई इन नगरों को खतरा है ।
आ. घर बनाते समय अधिकतम २ मंजिला इमारत बनानी चाहिए; क्योंकि उससे अधिक ऊंची इमारत बनाने के उसे खतरा हो सकता है ।
७. उदयानंद स्वामीजी के अन्य अमूल्य विचार !
अ. पाश्चात्त्य संगीत के कारण भ्रमिष्टता आती है, तो श्लोक गाना और डमरू का नाद सुनने से साधक की कुंडलिनी जागृत होती है ।
आ. समाज के व्यावहारिक लोग सुख प्राप्त करने के लिए परिश्रम लेते हैं; परंतु कुछ समय पश्चात उन्हें उसका पछतावा होता है । ऐसा होते हुए भी कोई शाश्वत सुख के लिए प्रयास नहीं करता ।