हनुमानजीके संदर्भमें मूर्तिविज्ञान एवं पूजाविधी

सारिणी


१. हनुमानजीकी मूर्तिके संदर्भमें मूर्तिविज्ञान 

हनुमानके स्वरूपसंबंधी भी अलग-अलग जानकारी मिलती है । अधिकांशत: हनुमानजीका वर्ण लाल एवं कभी-कभी काला भी होता है । लाल वर्णकी हनुमानजीकी मूर्ति अर्थात सिंदूरसे लीपी हुई । सिंदूरमें तेल मिलाकर उससे यह मूर्ति लीपी जाती है । काले वर्णकी हनुमानजीकी मूर्ति काले पत्थरसे बनी होती है । उस मूर्तिपर केवल तेल चढाया जाता है ।  

पंचमुखी मारुति

मारुतिके विविध रूप हैं । जैसे दासमारुति, वीरमारुति, पंचमुखी मारुति पंचमुखी मारुतिकी मूर्ति बडे आकारकी होती है । इसके पांच मुख होते हैं – गरुड, वराह, हयग्रीव अर्थात घोडा, सिंह एवं कपिमुख । ऐसी दशभुज मूर्तियोंके हाथोंमें ध्वज, खडग, पाश इत्यादि शस्त्र होते हैं । पंचमुखी देवताका एक अर्थ ऐसा है कि, पूर्व, पश्चिम, दक्षिण एवं उत्तर, यह चार तथा ऊध्र्व अर्थात ऊपरी दिशा, इन पांचों दिशाओंपर उस देवताका स्वामित्त्व होता है । 

वाममुखी मारुति

दक्षिणमुखी मारुति

१ अ. दक्षिणमुखी मारुति

इस मूर्तिका मुख दक्षिणकी ओर अर्थात मूर्तिकी दाहिनी ओर होता है, इसलिए इसे दक्षिणमुखी मारुति कहते हैं । दाहिनी ओर देखनेवाले मारुतिकी सूर्यनाड़ी कार्यरत होनेके कारण उनसे शक्तिकी अनुभूति होती है । इनकी उपासना अनिष्ट शक्तियोंके निवारणके लिए की जाती है ।

१ आ. वाममुखी मारुति

इस मूर्तिका मुख मूर्तिकी बाईं ओर होता है, इसलिए इन्हें वाममुखी मारुति कहते हैं । वाममुखी मारुतिकी चंद्रनाडी कार्यरत रहती है । दक्षिणमुखी मारुतिकी तुलनामें इनसे अल्प शक्तिकी अनुभूति होती है ।

 

२. हनुमानजीकी पूजाविधि

पूजापूर्व पूजक अपनी नाकके मूलपर मध्यमासे सिंदूर लगाए । हनुमानजीको अनामिकासे चंदन लगाएं । इसके उपरांत सिंदूर चढाएं । सिंदूर चढानेके उपरांत अक्षत अर्पण करें । हनुमानजीको मदारके पुष्प एवं पत्ते चढाएं । पुष्प एवं पत्ते पांच या पांचके गुणांकमें चढाएं । हनुमानजीको मदारके पुष्प एवं पत्तोंसे बनी माला पहनाएं । हनुमानजीकी पूजाविधिमें केवडा, चमेली या अंबर, इन उदबत्तियोंका उपयोग करें । अगर उदबत्तीकी संख्या दो हो । दाहिने हाथकी तर्जनी अंगूठेके बीच उदबत्ती पकडकर घडीकी सुइयोंकी दिशामें पूर्ण गोलाकार पद्धतिसे तीन बार घुमाएं । इसके उपरांत हनुमानजीको दीप दिखाएं । अंतमें हनुमानजीको नैवेद्य समर्पित करें । इस प्रकार पूजा करनेके उपरांत आरती, मंत्रपुष्प, परिक्रमा एवं नमस्कार करें । हनुमानजीकी अल्पसे अल्प पांच या पांचकी गुणामें परिक्रमाएं करें । स्थानके अभाव अथवा अन्य कारणवश परिक्रमा करना संभव न हो, तो अपने चारों ओर तीन बार गोल घूमकर परिक्रमा लगाएं ।

संदर्भ – सनातनका ग्रंथ – श्री हनुमान

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