नागोला हयातनगर (आंध्र प्रदेश) के याज्ञिक पीठम् के संस्थापक
डॉ. किशोर स्वामी द्वारा रामनाथी (गोवा) के सनातन आश्रम का अवलोकन
रामनाथी (गोवा) : नागोला हयातनगर (आंध्र प्रदेश) के याज्ञिक पीठम् के संस्थापक डॉ. पी.टी.जी.एस्. किशोर स्वामी तथा पीठम् के व्यवस्थापक श्री. पुरुषोत्तमाचार्य ने १९ अक्टूबर २०१९ को यहां के सनातन आश्रम का अवलोकन किया । १९ एवं २० अक्टूबर २०१९ की कालावधि में उनका आश्रम में निवास था । इस अवसरपर स्वामीजी ने सनातन संस्था की साधिका श्रीमती सौम्या कुदरवळ्ळी को आश्रम में चल रहे राष्ट्र एवं धर्म का कार्य तथा आध्यात्मिक शोधकार्य के संदर्भ में जानकारी दी ।
आश्रम का अवलोकन कर डॉ. किशोर स्वामी ने कहा, ‘‘आश्रम के सभी साधक सेवाभाव से कार्य करते हैं, यह देखकर मैं बहुत आनंदित हूं । यहां के साधकों को विशेष व्यावहारिक ज्ञान न होते हुए भी वे यह सब सिखकर कार्य के साथ अपनी आध्यात्मिक उन्नति भी कर रहे हैं । आश्रम में प्रचुर मात्रा में ऊर्जा एवं शक्ति है । साथ ही अध्यात्म का केंद्र एवं सभी के लिए आदर्श संस्था है सनातन संस्था !’’
इस अवसरपर सनातन संस्था के ६५ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त साधक श्री. प्रकाश मराठे के हस्तों डॉ. किशोर स्वामी एवं पुरुषोत्तमाचार्य को शॉल, श्रीफल, भेंटवस्तु प्रदान कर और माल्यार्पण कर सम्मानित किया गया ।
डॉ. किशोर स्वामी द्वारा परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के प्रति व्यक्त गौरवोद्गार !
१. स्वामीजी ने उनकी सेवा में रत साधक से कहा, ‘‘जिनके संकल्प के कारण यह आश्रम खडा है, वे गुरुजी (परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी) बहुत महान हैं ।’’
२. मनुष्य की संपूर्ण आयु १२० वर्ष की होती है । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का १२० वर्ष जीवित रहना आवश्यक है; क्योंकि उनके जैसा दूसरा व्यक्ति उत्पन्न होना असंभव है । अतः उनका स्वास्थ्य ठीक रहना आवश्यक है । उनका स्वास्थ्य यदि ठीक रहेगा, तभी समाज और राष्ट्र ठीक होंगे ।
हिन्दू राष्ट्र-स्थापना के संदर्भ में डॉ. किशोर स्वामी का भाष्य
आनेवाले ५ वर्षों में हिन्दू राष्ट्र की स्थापना तो होने ही वाली है । परात्पर गुरुदेवजी ने हिन्दू राष्ट्र का जो बीज बोया है, उसका उन्हें अनुभव होगा और उसके लिए उन्हें संपूर्ण जीवन प्राप्त होगा । आज जिस प्रकार सनातन आश्रम की व्यवस्था आदर्श है, वैसे ही आगे जाकर साधक समाज के सामने आदर्श रखेंगे । जिस प्रकार कई समस्याओं का सामना करने के पश्चात आदर्श सनातन आश्रम का निर्माण हुआ, उसी प्रकार से हिन्दू राष्ट्र की स्थापना भले ही कठिन हो; परंतु वह होकर रहेगी ।
आश्रम के अवलोकन के पश्चात डॉ. किशोर स्वामी द्वारा व्यक्त गौरवोद्गार
१. आश्रम का निर्माण कार्य बहुत अच्छा हुआ है । अन्यत्र भी कहीं यदि आश्रम का निर्माण करना हो, तो वह रामनाथी आश्रम जैसा ही होना चाहिए ।
२. ‘सनातन प्रभात’ की सेवा करनेवाले साधकों को देखकर उन्होंने कहा, ‘‘आप जो सेवा करेंगे, वह गुरुदेवजी को अपेक्षित कीजिए । नारदमुनि एवं हनुमानजी पत्रकारिता के २ आदर्श हैं । प्रभु श्रीरामजी ने हनुमानजी के माध्यम से सीतामाता को जो संदेश भेजा था, उसे हनुमानजी ने जैसे का वैसा पहुंचाया । इसी प्रकार से आप सनातन प्रभात की पत्रकारिता करें ।’’
३. अगली बार आते समय मैं मेरे १० शिष्यों को साथ लेकर आऊंगा और उनसे आश्रम का ठीकठाकपन, उत्तम व्यवस्था और स्वच्छता सिखने के लिए कहूंगा । आश्रम का अनुशासन और व्यवस्था बहुत अच्छी है और ईश्वर ने मुझे यहां के निवास की अवधि में बहुत कुछ दिया है ।
४. आश्रम का प्रत्येक साधक और वस्तुओं से अच्छे स्पंदन आते हैं । साधना करनेवालों के लिए यह स्थान उत्तम है । बाहरी विश्व में वेदाभ्यास की शिक्षा लेते समय मन बहुत विचलीत होता है; किंतु सनातन आश्रम में सिखने की प्रक्रिया बहुत ही तीव्रगति से हो सकती है ।
५. ‘सनातन आश्रम में सेवा करनेवाले साधक हमारे ही हैं’, ऐसा लगता है ।
६. स्वामीजी ने आश्रम का रसोईघर देखनेपर कहा, ‘‘ऐसी उत्तम व्यवस्था मैने कहींपर नहीं देखी है । यहां कितने भी लोग प्रसाद ग्रहण कर सकते हैं, ऐसी यहां की व्यवस्था है ।’’ इस समय रसोईघर में पापड तले जा रहे थे, तब स्वामीजी ने स्वयं कुछ पापड तले । साथ ही रसोईघर में अलग-अलग कप्पे और लोहे की पंक्तियां देखकर कहा कि मन की शुद्धि होने से यह सुंदर है ।
७. आश्रम से आंध्र प्रदेश लौटते समय उन्होंने बताया कि यहां आकर मानो मेरा पुनर्जन्म हुआ है ।
डॉ. किशोर स्वामी का संक्षिप्त परिचय
डॉ. किशोर स्वामी नागोला हयातनगर, आंध्र प्रदेश में स्थित याज्ञिक पीठम् के संस्थापक हैं । आयु के ७वें वर्ष से उन्होंने श्री श्री श्री त्रिदंडी चिन्नाजीयर स्वामीजी के मार्गदर्शन में शिक्षा ग्रहण की है । वे गोशाला भी चलाते हैं । उन्होंने ग्रामवासियों की सहायता से ४ प्राचीन और जागृत देवस्थानों का नवीनीकरण किया है । वे गांव के प्रत्येक घर से अर्पण इकट्ठा कर मंदिर का व्यय तथा पुजारियों के गौरवधन का प्रबंध करते हैं । उनके द्वारा चलाई जा रही वेदशालाओं से अभीतक ३०० छात्रों को निःशुल्क प्रशिक्षण दिया गया है । वे ज्योतिषशास्त्र के आधार से बाधानिवारण हेतु मंत्रजप एवं नामजप बताते हैं । मंदिर का व्यवस्थापन कैसे करना चाहिए ?, इसके लिए वे जिज्ञासुओं को १०० दिनों का प्रशिक्षण देते हैं । इसके साथ ही वे ७ दिनों का यज्ञ का भी प्रशिक्षण देते हैं । उन्होंने १०८ यज्ञकुंडोंवाले ३-४ यज्ञ किए हैं ।
डॉ. किशोर स्वामी को प्रतीत अद्भुत संयोग
१९ अक्टूबर २०१९ को उन्हें पनामा, सेंटर अमेरिका की युनिवर्सिटी ऑफ स्वाहिली की ओर से ‘डॉक्टर ऑफ फिलासॉफी इन स्पिरिच्युयल एज्युकेशन विथ स्पेशलाईजेशन ऑफ वेद’ की उपाधि प्रदान की गई है । इस उपाधि प्रदान किए जाने के दिन ही अर्थात १९ अक्टूबर को स्वामीजी गोवा के सनातन आश्रम में आए थे, जो स्वामीजी की दृष्टि में अद्भुत संयोग था ।
डॉ. किशोर स्वामी ने साधकों को हो रहे अनिष्ट शक्तियों
की पीडा के निवारण हेतु किया सुदर्शनचक्र शतक स्तोत्र अभिषेक !
रामनाथी के सनातन आश्रम के अपने निवास की अवधि में डॉ. किशोर स्वामीजी ने साधकों को हो रहे अ अनिष्ट शक्तियों के कष्टों के निवारण हेतु २० अक्टूबर को सुदर्शनचक्र शतक स्तोत्र अभिषेक किया । आश्रम के अवलोकन समय स्वामीजी ने स्वयं ही कहा, ‘‘साधकों को हो रहे अनिष्ट शक्तियों के कष्ट दूर हों तथा गुरुजी (परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी) का स्वास्थ्य अच्छा रहे; इसके लिए मैं सेवा के रूप में सुदर्शनचक्र शतक स्तोत्र अभिषेक’ करता हूं । इस विधि में श्री. पुरुषोत्तमाचार्य एवं सनातन पुरोहित पाठकाला के पुरोहित श्री. ईशान जोशी ने भाग लिया ।
पुरोहितों के माध्यम से हिन्दुओं को
संगठित करने हेतु याज्ञिक पीठम् से किया जा रहा कार्य
१. याज्ञिक पीठम् की ओर से जिन मंदिरों का संचालन किया जा रहा है, उन मंदिरों में अथवा जो पुरोहित नए स्थानोंपर कार्यरत होनेवाले हैं, वहां जानेवाले पुरोहितों को गाय-बछडा दिया जाता है, जिससे कि पुजारी को प्रतिदिन अभिषेक हेतु आवश्यक दूध मिलता है, साथ ही गांव के हिन्दू गाय का पूजन करते हेतु मंदिर आते हैं ।
२. मंदिर में प्रतिदिन अभिषेक हेतु हिन्दू आते हैं, तब वे अपनी किस समस्या के समाधान हेतु अभिषेक कर रहे हैं, इसका कारण पूछा जाता है । जब पुरोहित देवता को अभिषेक करता है, तब ध्वनियंत्र से उसकी उद्घोषणा की जाती है, जिससे सभी ग्रामवासियों को अभिषेक संपन्न होने का समाचार मिलता है ।
३. मंदिर में आनेवाले ग्रामवासियों को देवता एवं धर्म के संदर्भ में बताया जाता है ।
४. पीठम् की ओर से पुरोहितों का एक वॉट्स एप समूह बनाया गया है । उसके माध्यम से प्रतिदिन धर्मकार्य, वेदमंत्र, तिथि, वार, नक्षत्र, धर्मरक्षा, मंदिर एवं हिन्दुओं की रक्षा के संदर्भ में संदेश भेजे जाते हैं । पुरोहित इन्हीं संदेशों को स्थानीय ग्रामवासी और हिन्दुत्वनिष्ठों को भेजते हैं, जिससे कि उन्हें धर्मशिक्षा मिलती रहे और वे संगठित रह सकें ।
याज्ञिक पीठम् के माध्यम से सक्षम एवं वेदसंपन्न पुरोहित
बनाकर हिन्दुओं को संगठित करने का प्रयास ! – डॉ. किशोर स्वामी
डॉ. किशोर स्वामी उनके याज्ञिक पीठम् के माध्यम से आंध्र प्रदेश एवं तेलंगना राज्यों में वेदसंपन्न एवं सक्षम पुरोहित बनाने का कार्य कर रहे हैं । इस संदर्भ में उनसे जानकर लिया गया उनका कार्य और उसमें उन्हें मिल रहा प्रत्युत्तर उन्हीं के शब्दों में यहां दे रहे हैं ।
१. गुरुदेव के कार्य से प्राचीन मंदिरों के नवीनीकरण की प्रेरणा मिली !
स्वामीजी ने वर्ष १९७८ से १९९८ की कालावधि में श्री श्री श्री त्रिदंडी चिन्नाजीयर स्वामीजी की वेदपाठशाला में वेदाध्ययन पूर्ण किया । वहां के निवास की अवधि में ही गुरुदेवजी का कार्य देखकर मुझे प्राचीन और जागृत मंदिरों के नवीनीकरण की प्रेरणा मिली तथा उससे ही मैने आगे जाकर याज्ञिक पीठम् की स्थापना की ।
२. प्राचीन मंदिरों को पुनः चालू करने से हिन्दुओं का संगठित होना
हमने अभीतक ४ प्राचीन मंदिरों का नवीनीकरण कर उन्हें पुनः चालू किया है । पहले इस मंदिर की ओर किसी का ध्यान नहीं था और वो बंद स्थिति में होने के कारण सरकार ने भी उन्हें अपने नियंत्रण में नहीं लिया था । एक मंदिर का १ मासतक बंद होने का अर्थ वहां के हिन्दू समाज का १ वर्ष पीछे जाने जैसा है । गांव का एक मंदिर बंद होने से उस गांव के अन्य धर्मीय उनके धर्मांतरण के लिए तुरंत आगे आते है, साथ ही हिन्दू समाज विभाजित होता है । हिन्दुओं को इस हानि का भान दिलाकर हम उन्हें संगठित कर रहे हैं । उसके कारण अब पुनः चालू किए गए मंदिरों के परिसर के हिन्दुत्वनिष्ठ एवं हिन्दू संगठित हो रहे हैं ।
३. याज्ञिक पीठम् की वेदपाठशला में किशोरआयु
बच्चोंसहित गृहस्थ व्यक्तियों को भी स्वरक्षा के पाठ पढाए जाना
वेदपाठशाला में केवल किशोर आयु के बच्चों को ही प्रवेश न देकर गृहस्थ व्यक्तियों को भी प्रवेश दिया जाता है और यही याज्ञिक पीठम् की विशेषता है । उन्हें वेदसंपन्न करने के साथ ही स्वरक्षा प्रशिक्षण और व्यवस्थापन कैसे किया जाता है, इसका भी प्रशिक्षण दिया जाता है, जिससे की मंदिर में कोई चोरी के उद्देश्य से आया, तो उससे मंदिर की रक्षा की जा सकेगी । आज कई मंदिर बंद होने के पीछे वहां देवताओं की पूजा-अर्चना के लिए पुजारियों का न होना मुख्य समस्या है । यदि मंदिर मेें पुजारी होगा, तो वह मंदिर को बंद होने नहीं देगा । मंदिर में पुजारी को आवश्यक गौरवधन न मिलने के कारण वे अन्यत्र नौकरी करते हैं । वे वैसा न करें; इसलिए हम उन्हें ३ मासों का अलग से प्रशिक्षण देते हैं । उसमें विवाह विधि, वास्तुशांत, मुहूर्त देखना, पंचांग देखना जैसे विधि सिखाते हैं, जिससे की उसे मंदिर से मिलनेवाले गौरवधन के साथ ही अन्य उचित मार्ग से धनार्जन करना संभव हो । इसके साथ ही जिन पुजारियों को आगे की शिक्षा लेने की इच्छा हो, उन्हें हम आगे के विधि और यज्ञयाग सिखाते हैं । इसके कारण जो मंदिर बंद होने की कगारपर होते हैं, वहां के पुजारी इन विविध पद्धतियों से गांव के लोगों के संपर्क में होता है और वह इस माध्यम से हिन्दुओं को संगठित करता है । आंध्र प्रदेश अथवा तेलंगना के पुजारियों को शिक्षा लेने हेतु यदि वेदपाठशाला में आना संभव न हो, तो स्वामीजी उनके क्षेत्र में जाकर उन्हें शिक्षा देते हैं ।