देवतापूजन कैसे करते है ?

सारणी

१. देवतापूजन

२. देवतापूजनकी पद्धति


 

१. देवतापूजन

`आजकलके तनावपूर्ण जीवनमें प्रतिदिन देवतापूजनके लिए समय कैसे निकालें ?’, ऐसी नकारात्मक मानसिकता अनेक लोगोंमें दिखाई देती है । जैसे हम घर आए अतिथिका स्वागत आदरपूर्वक करते हैं, उसी प्रकार भगवानका करें । देवताका आवाहन करना, उन्हें बैठनेके लिए आसन देना, उन्हें पैर धोनेके लिए जल देना, इस प्रकार क्रमानुसार सोलह उपचारोंके माध्यमसे विधिवत भावपूर्ण धर्माचरण धर्मशास्त्रमें सिखाया गया है । षोडशोपचार पूजनके सोलह उपचारोंमेंसे – गंध लगाना, पुष्प चढाना, धूप दिखाना, दीपसे आरती उतारना और नैवेद्य (भोग) निवेदित करना, इन पांच उपचारोंको `पंचोपचार’ कहते हैं । सोलह उपचारोंद्वारा देवताका पूजन करना संभव न हो, तो पांच उपचारोंसे करना भी उपयुक्त है । षोडशोपचार पूजनमें आवाहनात्मक उपचार अर्थात् पूर्वार्ध तथा समापनात्मक बिदाई अर्थात् उत्तरार्ध ।

 

२. देवतापूजनकी पद्धति

अ. आवाहन (पुकारना)

देवताका ध्यान करें । `ध्यान’ अर्थात् देवताका वर्णन और स्तुति । `देवता अपने अंग, परिवार, आयुध और शक्तिसहित पधारें और मूर्तिमें प्रतिष्ठित होकर हमारी पूजा ग्रहण करें’, इस हेतु संपूर्ण शरणागतभावसे देवतासे प्रार्थना करना, यानी `आवाहन’ करना । आवाहनके समय हाथमें गंध, अक्षत एवं तुलसीदल अथवा पुष्प लें । तदुपरांत देवताका नाम लेकर अंतमें `नम:’ बोलते हुए उन्हें गंध, अक्षत, तुलसीदल अथवा पुष्प अर्पित कर हाथ जोडें । उदा. श्री गणपतिके लिए `श्री गणपतये नम:’ । श्री दुर्गादेवीके लिए `श्री दुर्गादेव्यै नम: ।

आ. आसन देना

आसनके रूपमें विशिष्ट देवताको प्रिय पुष्प-पत्र आदि (उदा. श्रीगणेशजीको दूर्वा, शिवजीको बेल, श्रीविष्णुको तुलसी) अथवा अक्षत अर्पित करें ।

इ. चरण धोनेके लिए जल देना

देवताको ताम्रपात्र (तामडी) में रखकर उनपर आचमनीसे जल चढाएं ।

ई. हाथ धोनेके लिए जल देना

आचमनीमें जल लेकर उसमें गंध, अक्षत और पुष्प डालकर, उसे देवतापर चढाएं ।

उ. आचमन (कुल्ला करनेके लिए जल देना)

आचमनीमें कर्पूर-मिश्रित जल लेकर, उसे देवताको अर्पित करने के लिए ताम्रपात्र में छोडें ।

ऊ. स्नान (देवतापर जल चढाना)

धातुकी मूर्ति, यंत्र, शालग्राम इत्यादि हों, तो उनपर जल चढाएं । मिट्टीकी मूर्ति हो, तो पुष्प अथवा तुलसीदलसे केवल जल छिडकें । चित्र हो, तो पहले उसे सूखे वस्त्रसे पोंछ लें । तदुपरांत गीले कपडेसे, पुन: सूखे कपडेसे पोंछें ।

ए. वस्त्र

देवताओंको कपासके दो वस्त्र अर्पित करें । एक वस्त्र देवताके गलेमें अलंकारके समान पहनाएं, तो दूसरा देवताके चरणोंमें रखें ।

ऐ. उपवस्त्र अथवा यज्ञोपवीत (जनेऊ) देना

पुरुषदेवताओंको यज्ञोपवीत (उपवस्त्र) अर्पित करें ।

ओ. गंध (चंदन) लगाना

प्रथम देवताको अनामिकासे गंध लगाएं । इसके उपरांत दाहिने हाथके अंगूठे और अनामिकाके बीच चुटकीभर लेकर, पहले हलदी, फिर कुमकुम देवताके चरणोंमें चढाएं ।

औ. पुष्प-पत्र (पल्लव) चढाना

विशिष्ट देवताको उनका तत्त्व अधिक मात्रामें आकृष्ट करनेवाले विशिष्ट पुष्प-पत्र चढाएं, उदा. शिवजीको बेल और गणेशजीको लाल पुष्प आदि । पुष्प देवताके सिरपर चढानेकी अपेक्षा चरणोंमें अर्पित करें, पुष्पका डंठल देवताकी ओर और मुख अपनी दिशामें रहे ।

क. धूप दिखाना

देवताको धूप दिखाते समय उसे हाथसे न फैलाएं । विशिष्ट देवताका तत्त्व अधिक मात्रामें आकृष्ट कर पाने हेतु, उनके सम्मुख विशिष्ट सुगंधकी उदबत्तियां जलाएं, उदा. शिवजीको हिना और श्री लक्ष्मीदेवीको गुलाब । साधारणत: दो उदबत्तीसे आरती उतारें ।

ख. दीपसे आरती उतारना

घडीके कांटोंकी दिशामें देवताकी दीप-आरती तीन बार धीमी गतिसे उतारें । साथ ही, बाएं हाथसे घंटी बजाएं ।

अ. नैवेद्य निवेदित करना

अ. देवताको नैवेद्यके रूपमें दूध-शक्कर (दुग्ध-शर्करा), मिश्री, शक्कर-नारियल, गुड-नारियल, फल, खीर, भोजन इत्यादि पदार्थोंमेंसे अपने लिए जो संभव हो, वह समर्पित करें । नैवेद्य केलेके पत्तेपर परोसें । नमक न परोसें ।

 आ. मिर्च, नमक और तेलका प्रयोग कम करें और घी जैसे सात्त्विक पदार्थोंका प्रयोग अधिक करें ।

 इ. देवतासे प्रार्थना कर देवताके सामने धरतीपर जलसे चौकोर मंडल बनाएं और उसपर नैवेद्यका पत्ता (या थाली) रखें । नैवेद्यके पत्तेका डंठल देवताकी ओर और अग्रभाग अपनी ओर हो ।

 ई. नैवेद्यके पत्तेके चारों ओर तुलसीके दो पत्तोंसे जलसे गोलाकार मंडल बनाएं । तदुपरांत तुलसीदलसे पत्तोंसे नैवेद्यपर जल प्रोक्षण कर उसमेंसे एक पत्ता नैवेद्यपर (अन्नपर) रखें और दूसरा देवताके चरणोंमें चढाएं ।

कर्मकांडके स्तरकी पद्धति

अ. बाएं हाथका अंगूठा बाईं आंखपर और बाएं हाथकी अनामिका दाईं आंखपर रखकर आंखें मूंद लें और `ॐ प्राणाय स्वाहा । ॐ अपानाय स्वाहा ।ॐ व्यानाय स्वाहा ।ॐ उदानाय स्वाहा ।ॐ समानाय स्वाहा ।ॐ ब्रह्मणे स्वाहा ।।’, पंचप्राणोंसे संबंधित इस मंत्रका उच्चारण करते हुए नैवेद्यकी सुगंधको दाहिने हाथकी पांचों उंगलियोंके सिरोंसे देवताकी ओर दिशा दें ।

आ. उसके उपरांत `नैवेद्यमध्येपानीयं समर्पयामि ।’ बोलते हुए दाहिने हाथसे ताम्रपात्रमें थोडा जल छोडें और पुन: `ॐ प्राणाय…’, पंचप्राणोंसे संबंधित इस मंत्रका उच्चारण करें । उसके उपरांत `नैवेद्यम् समर्पयामि, उत्तरापोशनम् समर्पयामि, हस्तप्रक्षालनम् समर्पयामि, मुखप्रक्षालनम् समर्पयामि’ बोलते हुए दाहिने हाथसे ताम्रपात्रमें जल छोडें ।

इ. नैवेद्य अर्पित करनेके उपरांत अंतमें देवताके सामने नारियल, दक्षिणा, तांबूल और सुपारी रखें । देवताकी दीप-आरती करें । तदुपरांत देवताकी कर्पूर आरती करें । देवताको मन:पूर्वक नमस्कार करें ।

ई. नमस्कारके उपरांत देवताके चारों ओर परिक्रमा करें । परिक्रमाके लिए स्थान न हो तो अपने आसनपर ही तीन बार घूम जाएं ।

उ. मंत्रपुष्पका उच्चारण कर, देवताको अक्षत अर्पित करें । पूजामें हमसे जाने-अनजानमें हुई गलतियों और कमियोंके लिए अंतमें देवतासे क्षमा मांगें और पूजाकी समाप्ति करें ।

संदर्भ : सनातन-निर्मित ग्रंथ ‘षोडशोपाचर पूजनका शास्त्र’
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