श्रीरामजीके उपासनाकी सामान्य कृतियां एवं उपासनाके विविध प्रकार

सारणी


 

१. तिलक लगाना

श्रीरामजीके पूजनसे पूर्व उपासक स्वयंको श्रीविष्णु समान खडी दो रेखाओं का अथवा भरा हुआ खडा तिलक लगाए । यह तिलक उपासक अपनी मध्यमासे लगाए ।

 

२. रंगोली

श्रीराम तत्त्वको आकृष्ट करनेवाले आकृतिबंधका उपयोग करना, श्रीराम तत्त्वका अधिकाधिक लाभ प्राप्त करनेमें सहायक है । देखते हैं, श्रीरामतत्त्वको आकृष्ट करनेवाली रंगोली ।

श्रीरामके मारक तत्त्वको आकृष्ट करनेवाली रंगोली
१५ बिंदु : १५ रेखा

श्रीरामके तारक तत्त्वको आकृष्ट करनेवाली रंगोली
१५ बिंदु : १५ रेखा

 

३. चंदन लगाना

श्रीरामजीको अनामिकासे चंदन चढाएं ।

 

४. फूल चढाना

श्रीरामाजीको केवडा, चंपा, चमेली एवं जाहीके फूल चढा सकते है । श्रीरामजीको चार अथवा चार गुणा जाही के फूल चढाएं । फूलोंका डंठल देवताकी ओर होना चाहिए । फूलोंकी रचना भरे हुए या रिक्त लंबगोलाकारमें भी हो सकती है ।

 

५. उदबत्ती

श्रीरामजीकी तारक उपासनाके लिए – चंदन, केवडा, चंपा, चमेली, जाही एवं अंबर इन गंधोंमें से किसी एक गंधकी उदबत्ती जलाएं । श्रीरामजीकी मारक उपासनाके लिए हीना एवं दरबार यह उदबत्ती जलाएं । उदबत्तीकी संख्या दो होनी चाहिए । उदबत्तीको दाएं हाथकी तर्जनी अर्थात अंगूठेके पासवाली उंगली तथा अंगूठेसे पकडकर घडीकी दिशामें पूर्ण गोलाकार पद्धतिसे तीन बार घुमाएं ।

 

६. इत्र

श्रीरामजीको जाहीकी सुगंधवाला इतर लगाएं ।

 

७. परिक्रमा

श्रीरामजीकी परिक्रमा लगाते समय कमसे कम तीन अथवा तीन गुणा परिक्रमा करें ।

 

८. तुलसीदल

श्रीरामजीको पूजामें तुलसीदल अर्पित किया जाता है । हम सभीको ज्ञात है, की तुलसी एक पूजनीय वनस्पति है । इसकी दो जातियां होती हैं – श्यामा एवं गौरी । गौरी तुलसी प्रभु श्रीरामको अर्पित करते हैं । जिस प्रकार श्रीगणेशजीको दूर्वा, शिवजीको बिल्वपत्र अर्पित करनेका महत्त्व है, उसी प्रकार प्रभु श्रीरामजीको तुलसी अर्पित करना महत्त्वपूर्ण होता है । किसीभी देवताको विशेष वस्तु अर्पित करनेका उद्देश्य यह होता है, की पूजी जानेवाली मूर्तीमें चैतन्य निर्माण हो एवं उसका उपयोग हमारी आध्यात्मिक उन्नति के लिए हो । यह चैतन्य निर्माण करनेके लिए देवताको जो विशेष वस्तु अर्पित की जाती है, उस वस्तुमें देवतातत्त्वके सूक्ष्मातिसूक्ष्म कण आकृष्ट करनेकी क्षमता अन्य वस्तुओंकी तुलनामें अधिक होती है ।

 

९. उपासनाके विविध प्रकार

जैसे पूजा, आरती, भजन इत्यादि करनेसे उस देवताका लाभ मिलता है; परंतु इन उपासना-पद्धतियोंकी अपनी सीमा होती है । अर्थात् हम पूजा, आरती, भजन चौबीसों घंटे या किसी भी स्थितिमें नहीं कर सकते । इसलिए लाभ भी उसीके अनुरूप मिलता है । देवताके तत्त्वका निरंतर लाभ मिलता रहे, इस हेतु उनकी उपासना भी निरंतर होनी चाहिए और ऐसी एकमात्र उपासना है नामजप । कलियुगके लिए नामजप ही सरल एवं सर्वोत्तम उपासना है ।

 

१०. प्रभु श्रीरामजीका नामजप

श्रीरामके कुछ प्रचलित नामजप हैं । उनमेंसे ‘श्रीराम जय राम जय जय राम । ’ यह त्रयोदशाक्षरी जप सबसे अधिक प्रचलित है । श्रीराम जय राम जयजय राम । इसमें श्रीराम : यह श्रीरामका आवाहन है । जय राम : यह स्तुतिवाचक है । जयजय राम: ‘नमः’ समान यह शरणागतिका दर्शक है ।

प्रभु श्रीरामजीका नामजप

इसप्रकार नामजप करनेपर अनेक लोग खरे आनंदका अनुभव लेते हैं । एक बार एकाग्रतासे नामजप होने लगे तो अनुभूतियां भी होने लगती हैं ।

११. श्रीरामजीके नामजपसे हुई अनुभूती

यह अनुभूती है, अमरावतीके श्री. धैवत वाघमारेकी । वे कहते हैं, प्रभु श्रीरामके अति विशाल रूपके दर्शन हुए तथा श्रीरामजीके चरणोंके निकट बैठकर नामजप कर रहा हूं, ऐसा अनुभव हुआ । ३० मार्च २००४ को दिनमें ढाई बजे मैं श्रीरामजीका नामजप कर रहा था । मेरा नामजप एकाग्रतासे होने लगा । कुछही क्षणोंमें मुझे एक बहुत बडे राजसिंहासनपर प्रभु श्रीराम अति विशाल रूप धारण कर बैठे हुए दिखाई दिए । इतना विशाल रूप मैं नहीं देख पाया । मैंने उनके चरणोंपर फूलोंका हार अर्पित किया एवं उनके चरणोंके निकट बैठकर नामजप करने लगा । आगे धीरे धीरे मुझे ऐसा अनुभव हुआ, की मैं प्रभु रामजीका दास हूं । वे मेरे स्वामी हैं । प्रभु रामजीके दास्यत्वको मैं बहुत समयतक अनुभव करता रहा । मुझे उसमें आनंद आने लगा ।

श्री. धैवतको प्रभु श्रीरामजीके दास्यत्वका अनुभव हुआ और उसमें उन्हें आनंद आने लगा । यथार्थ ही तो है । प्रभु श्रीरामजीके स्वामित्वका एवं अपने दास्यत्वका अनुभव करनेमें जितना आनंद है, उतना अन्य किसीभी बातमें नहीं । इस प्रकार नामजपका आनंद आपभी ले सकते हैं।

संदर्भ : सनातन-निर्मित ग्रंथ ‘श्रीविष्णु, श्रीराम एवं श्रीकृष्ण’

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