डोंबिवली : कलियुग में स्वभावदोष निर्मूलन प्रक्रिया अपनाए बिना आनंदमय जीवन व्यतीत करना संभव ही नहीं है । अतः स्वयं में व्याप्त दोषों को दूर कर गुणों का संवर्धन करना ही स्वभावदोष निर्मूलन प्रक्रिया है । क्रोध आना, ऊंचे स्वर में बोलना, सुनकर न लेना, आलशीपन, ठीकठाकपन का अभाव, तनाव आना आदि स्वभावदोष एवं अहं के विविध पहलू हैं । नित्य व्यवहार में सभी लोग ‘स्वभाव के लिए औषधि नहीं है’, ऐसा कहते हैं; परंतु स्वभावदोष निर्मूलन प्रक्रिया अपनाना अपने स्वभाव में बदलाव करने की प्रभावशाली औषधि है । इस प्रक्रिया के पीछे संतों की संकल्पशक्ति कार्यरत है । हम सभी इसका लाभ उठाकर इस प्रक्रिया को अपनाएंगे । सनातन संस्था की श्रीमती धनश्री केळशीकर ने ऐसा प्रतिपादित किया । यहां के अहल्याबाई होळकर विद्यालय में आयोजित साधना शिविर में मार्गदर्शन करते हुए वे ऐसा बोल रही थीं । सनातन प्रभात के पाठक और धर्मप्रेमियों ने इस शिविर का लाभ उठाया ।