भूमिपर सद्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी के पदचिन्ह अंकित होनेपर उनमें विविध शुभचिन्ह दिखाई देना

भारत में प्राचीन काल से कई देवताओं के, साथ ही द्वापरयुग के पांडवों के हाथों के और पैरों के पदचिन्ह आज भी दिखाई देते हैं, उदा. श्रीलंका में हनुमानजी के पदचिन्ह, शिरोळ (जनपद कोल्हापुर, महाराष्ट्र) मे एक शिलापर दत्तात्रेयजी के हस्तचिन्ह, साथ ही तमिलनाडू में कन्याकुमारीदेवी के पदचिन्ह इत्यादि । इस प्रकार से १०.३.२०१८ को रामनाथी (गोवा) के सनातन आश्रम में आयोजित सौरयाग के दिन भूमिपर सद्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी के पदचिन्ह अंकित हुए तथा उनमें विविध शुभचिन्ह दिखाई दे रहे थे ।

सद्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी

 

१. भूमिपर देवताओं के हस्तचिन्ह अथवा
पदचिन्ह अंकित होने की आध्यात्मिक कारणमीमांसा

हमने अभीतक भूमिपर किसी विशिष्ट स्थानोंपर ही देवताओं के पदचिन्ह अथवा हस्तचिन्ह अंकित हुए देखे हैं । जहां ये चिन्ह अंकित होते हैं, वहां की भूमि में दूरतक वो स्पंदन कार्यरत रहते हैं, साथ ही वहां उनमें विद्यमान शक्ति भी कार्यरत होती है । आजकल के बढती हुए रज-तम प्रधानता के कारण वातावरण दूषित होता जा रहा है । इन मुद्राओं से प्रक्षेपित होनेवाली गतिमान तेजतरंगें वायुमंडल में विद्यमान सूक्ष्मतर तेजरूपी रज-तमात्मक तरंगों का विघटन करवाते हैं, साथ ही वायुमंडल में इन मुद्राओं से प्रक्षेपित होनेवाले स्पंदनों का दीर्घकालीन अस्तित्व बना रहता है । अतः साधकों में तथा उनके इर्द-गिर्द पंचतत्त्वों के स्तरपर कवच बनता है ।

स्वस्तिक एवं ॐ शुभचिन्ह दिखाई देनेवाले पदचिन्हों का छायाचित्र (नीचे वृत्त में स्पष्टता से दिखाया गया है ।)

 

२. भूमिपर (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी के
चरणों की अंकित मुद्राओं के विशिष्ट आकार का कार्य

अ. सौरयाग से कार्यरत ऊर्जा के कारण शरीर से पसीने के रूप में आपतत्त्व के माध्यम से ऊर्जा बाहर निकली तथा भूमिपर अंकित मुद्रा के विशिष्ट आकार के कारण उस ऊर्जा का तेजतत्त्व के कारण घनीकरण होकर उसने सगुण-साकार रूप धारण किया । (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी के भूमिपर अंकित पदचिन्हों से उत्पन्न तेजतरंग वायुमंडल के रज-तमात्मक तरंगों से युद्ध के रूप में लडकर उनके निर्मूलन का कार्य करते हैं । इसलिए जीव के शरीर के इर्द-गिर्द आवरण का विघटन होता हुआ प्रतीत हुआ ।

आ. मुद्राओं से उत्पन्न तेजतरंग इच्छा-क्रियाशक्ति से संबंधित होते हैं । उससे दूरे दिन देवताएं उन तेजतरंगों को मारक-तारक स्तरपर भूमंडल एवं वायुमंडल में चैतन्य फैलाने का कार्य करते हैं । ये तरंगें प्रकाश के स्तरपर कार्यरत होते हैं । इसके कारण जीव को कष्ट पहुंचानेवाली बडी शक्तियों द्वारा उत्पन्न किए गए बंध एवं स्थानों का विघटन होता है ।

इ. मुद्राओं के उत्पन्न चैतन्य वायुमंडल में दीर्घकालतक चैतन्य को टिकाए रखने का कार्य करता है । उससे जीव का आध्यात्मिक अनुभूति करना संभव होकर उसका उत्साह बढता है ।

 

३. भूमिपर अंकित सद्गुरु (श्रीमती) बिंदा
सिंगबाळजी के पदचिन्हों में विद्यमान शुभचिन्हों का कार्य

भूमिपर अंकित सद्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी की पदचिन्हों में अंकित ॐकार से उत्त्पत्ति, स्थिति एवं लय का कार्य होता हुआ प्रतीत हुआ । समष्टि के संरक्षण हेतु तेजोमय कणों की उत्पत्ति कराकर तथा स्थितिस्वरूप तेजवलयों को कार्यकारी रखकर लयदर्शक तेजतरंगों के माध्यम से कष्टदायक शक्तियों के निर्दालय का कार्य होता है । स्वस्तिक एवं ॐ इन शुभचिन्हों के माध्यम से ईश्‍वर के द्वारा वास्तविकरूप में परिपूर्ण एवं साकार यज्ञ के संपन्न होने की दी गई अनुभूति है ।’

– कु. प्रियांका लोटलीकर, महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय, गोवा

Leave a Comment