१. रामायण
१ अ. रामायण का अर्थ
अधर्मरूपी रावण पर धर्म के प्रतीक राम की विजय एवं रावण के सर्वनाश की कथा को ही प्रमुखतः ‘रामायण’ कहते हैं ।
२. विविध रामायण
१. वाल्मीकिरामायण
२. पूर्वरामायण एवं उत्तररामायण
३. जैनरामायण एवं बुद्धरामायण
४. अद्भुतरामायण
५. अध्यात्मरामायण
६. तुलसीरामायण
३. भूमिकन्या सीता
प्रसंग : भूमि जोतते समय सीता पाई गईं ।
भावार्थ : बालसीता पृथ्वी के गर्भ से उद्भूत होनेवाली हिरण्यगर्भ तरंगों का साकार रूप थीं ।
शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध एवं उनसे संबंधित शक्तियां सहवर्ती होती हैं एवं उनमें से किसी एक घटक के अस्तित्व से अन्य सर्व भी विद्यमान होते हैं, (उदा. नाम के उच्चारण से उससे संबंधित रूप, गंध भी विद्यमान होते हैं) उसी प्रकार बालसीता विशिष्ट शक्ति का, हिरण्यगर्भ शक्ति का, रूप थीं और रामपत्नी सीता राम की शक्ति का रूप थीं ।
४. कैकेयी का वर मांगना
प्रसंग : कैकेयी ने एक वर से राम के लिए चौदह वर्ष का वनवास एवं दूसरे वर से भरत के लिए राज्य मांग लिया ।
भावार्थ : श्रवणकुमार के दादा, धौम्य ऋषि थे एवं उसके माता-पिता रत्नावली एवं रत्नऋषि थे । रत्नऋषि नंदीग्राम के राजा अश्वपति के राजपुरोहित थे । अश्वपति राजा की कन्या का नाम कैकेयी था । रत्नऋषि ने कैकेयी को सभी शास्त्र सिखाए एवं यह बताया कि यदि दशरथ की संतान हुई, तो वह संतान राजगद्दी पर नहीं बैठ पाएगी अथवा दशरथ की मृत्यु के पश्चात यदि चौदह वर्ष की अवधि में राजसिंहासन पर कोई संतान बैठ भी गई, तो रघुवंश नष्ट हो जाएगा । ऐसी घटना को रोकने हेतु, वसिष्ठ ऋषि ने आगे चलकर कैकेयी को दशरथ से दो वर मांगने के लिए कहा । उसमें एक वर से उसने श्रीराम के लिए चौदह वर्ष का वनवास मांगा और दूसरे वर से भरत के लिए राज्य । उन्हें ज्ञात था कि श्रीराम के रहते भरत राजा बनना स्वीकार नहीं करेंगे अर्थात राजसिंहासन पर नहीं बैठेंगे । वसिष्ठ ऋषि के कहे अनुसार भरत ने सिंहासन पर राम की प्रतिमा के स्थान पर उनकी चरणपादुका स्थापित कीं । यदि प्रतिमा स्थापित की होती, तो इस नियम से कि शब्द, स्पर्श, रूप, रस एवं गंध सहवर्ती होते हैं, जो परिणाम राम के सिंहासन पर बैठने से होता, वही उन की प्रतिमा स्थापित करने से भी होता ।
५. भरत का राम की चरणपादुका मांगना
पादुका मांगना अर्थात अपना मस्तक चरणों में रखना अर्थात संपूर्ण शरणागति । भरत की याचना पर राम ने अपनी चरणपादुका दे दी । पादुका के अंगूठे का हिस्सा आगे की ओर कर, उसे अपने सिर पर रख भरत ने सिंहासन पर पादुका की स्थापना की एवं उसे पूजना आरंभ किया । तबसे पादुका पूजन की प्रथा आरंभ हुई ।
६. नंदीग्राम में भरत का रहना
प्रसंग : श्रीराम की पादुका लेकर भरत नंदीग्राम गए और श्रीराम की चरणपादुका की स्थापना की । वे अयोध्या में नहीं रहे ।
भावार्थ : नंदीग्राम अर्थात अंडकोष अर्थात भरत ने ब्रह्मचर्य का पालन किया । श्रीराम की पादुका की स्थापना की अर्थात उसने साधक समान जीवन व्यतीत किया ।
७. सीताहरण
प्रसंग : रावण द्वारा सीता का हरण ।
भावार्थ : वास्तव में सीता रावण के साथ गई ही नहीं । वह अग्नि में प्रवेश कर गई और केवल उसकी छाया रावण के साथ गई । (वास्तविक अर्थों में रामलीला का आरंभ यहीं से होता है ।) पुनः रावण की चंगुल से लौटने पर वह छाया शुद्धिनिमित्त पुनः अग्नि में प्रविष्ट हुई और खरी सीता बाहर आई ।
८. श्रीराम द्वारा वृक्षों का आलिंगन करना
प्रसंग : सीताहरण के उपरांत आक्रोश में सीते, सीते पुकारते हुए श्रीराम वृक्षों का आलिंगन कर रहे थे ।
भावार्थ : श्रीराम ने वृक्ष एवं बेलों के हृदय की व्यथा जानने के लिए ऐसा किया ।
९. बाली का वध
प्रसंग : बाली पर राम ने बाण चलाया, जिससे उसकी मृत्यु हुई ।
भावार्थ : श्रीराम के बाण से, अनाहतचक्र पर रुकी हुई बाली की आध्यात्मिक प्रगति पुनः आरंभ हुई और वह मुक्त हो गया ।
१०. रावणवध
रावण महान शिवभक्त था । उसकी प्रगति सहस्रारचक्रतक आकर अटक गई थी । राम ने रावण का वध नहीं किया, अपितु उसके सहस्रार को भेद कर उसे सद्गति दी ।
११. रजक का सीता पर आरोप
प्रसंग : रजक नाम के एक धोबी ने कहा कि सीता अशुद्ध है, इसलिए राम ने सीता का परित्याग किया ।
भावार्थ १ : सीता को दोषी कहनेवाले रजक को धोबी दर्शाया गया है । धोबी का काम है कपडे धोकर स्वच्छ करना और उन पर किसी प्रकार का धब्बा न रहने देना । श्रीराम पर भी किसी प्रकार का दाग न रहे, इसी उद्देश्य से धोबी ने ऐसा कहा ।
भावार्थ २ : धोबी का नाम रजक था । रजक शब्द रज+क शब्दोंसे बना है । अक्षर क किसी वस्तु का छोटा सा अंश दर्शाता है । रजक अर्थात वह जिसमें रजोगुण का अंश हो । इसलिए वह सीता की सात्त्विकता नहीं पहचान पाया ।
१२. श्रीराम का सरयू में देहत्याग करना
प्रसंग : सीता के धरतीमाता की गोद में समाने के पश्चात श्रीराम ने सरयू नदी में प्राण त्याग दिए ।
भावार्थ : सरयू नदी में श्रीराम ने अपने प्राण नहीं त्यागे, अपितु जलसमाधि ले ली । समाधि के अनेक प्रकार हैं – भूमिसमाधि, जलसमाधि, अग्निसमाधि आदि । संत एकनाथ एवं रामतीर्थ ने भी जलसमाधि ली थी । जिसकी देहबुद्धि नष्ट हो चुकी हो, वही ऐसा कर सकता है । श्रीराम के समाधि लेते ही अयोध्यावसियों ने भी सरयू नदी में जलसमाधि ले ली, क्योंकि उन्हें लगा कि श्रीराम के देहत्याग उपरांत जीवन में राम अर्थात अर्थ नहीं रहा ।