वामन जयंती के मंगल दिनपर गोवा के सनातन आश्रम में आनंददायक घोषणा !
बालसंत के प्रत्यक्ष दर्शन कराकर ईश्वर द्वारा सभी साधकोंपर की बडी कृपा !
‘विश्वभर में अभीतक जन्म से ही ५० एवं ६० प्रतिशत आध्यात्मिक स्तरवाले कुछ सहस्र बालक उच्च स्वर्गलोक, साथ ही महर्लोक से पृथ्वीपर जन्मे हैं । कर्नाटक के मंगलुरू के जन्म से ही ७१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर के बालसंत पू. भार्गवराम जनलोक से पृथ्वीपर जन्मे हैं । अब जनलोक से पृथ्वीपर जन्मे हैं दूसरे बालसंत पू. वामन ! पुराणों में भक्त प्रल्हाद जैसे अनेक बालभक्तों की कथाएं होती हैं, जिन्हें हम केवल पढते हैं । ईश्वर ने हमें बालसंतों के प्रत्यक्ष दर्शन कराकर हमपर बडी कृपा की है । इसके लिए हमने ईश्वर के चरणों में चाहे कितनी भी कृतज्ञता व्यक्त करें; किंतु वह अल्प ही होगी ! – परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी
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सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा : धर्मसंस्थापक भगवान श्रीकृष्णजी के कई लीलाओं की अनुभूति करानेवाला भूवैकुंठ है सनातन का रामनाथी आश्रम ! इस आश्रम में स्थित कलामंदिर तो विविध ऐतिहासिक घटनाओं का प्रत्यक्षदर्शी ! १० सितंबर को यह कलामंदिर एक दैवीय बाललीलाओं से खिल उठा । उनका रेंगना, मोहकता के हंसना, सद्गुरु एवं संतों की बातों का सूचक प्रत्युत्तर करना आदि सभी लीलाएं उनकी अलौकिकता की प्रतिती कर रही थीं ! उनकी मोहक बाललीलाओं को देखकर सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीलजी ने भावपूर्ण उद्गार व्यक्त करते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हें देखकर सबकुछ भूल गई ।’’ इस प्रकार से सद्गुरु एवं संतों को भी बाह्यविश्व का विस्मरण करानेवाले वे बालमुकुंद हैं कु. वामन अनिरुद्ध राजंदेकर और वह समारोह था समस्त संसार को उनमें प्रदत्त संतत्व के दर्शन करानेवाला संतसम्मान समारोह ! इस भावसमारोह में सनातन संस्था की सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ने बताया, ‘‘ परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने जन्म से ही कई दैवीय गुणों से युक्त कु. वामन अनिरुद्ध राजंदेकर (आयु १ वर्ष) जनलोक से पृथ्वीपर जन्मे दूसरे बालसंत होने की घोषणा की है ।’’ यह सुनते ही उपस्थित सभी के हाथ इस बालक के चरणों में अपनेआप ही जुड गए । वामन जयंती अर्थात १० सितंबर २०१९ को कु. वामन का पहला जन्मदिवस था । इसी दिन संपन्न इस समारोह में यह शुभसमाचार मिलने से सभी का आनंद द्विगुनित हुआ । अत्यंत शारीरिक कष्ट होते हुए भी परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी इस समारोह में उपस्थित रहें । इस अवसरपर सनातन संस्था की सद्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी ने पू. वामनजी का औक्षण किया, तो परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने वेदमंत्रों के घोष में पू. वामनजी को माल्यार्पण कर तथा भेंटवस्तु प्रदान कर सम्मानित किया ।
समारोह में उपस्थित सनातन के अन्य संत
इस भावसमारोह में सनातन संस्था के संत पू. (डॉ.) मुकुल गाडगीळ, पू. पृथ्वीराज हजारे, पू. पद्माकर होनप. पू. भगवंत मेनराय, पू. सीताराम देसाई, पू. (कु.) रेखा काणकोणकर, पू. (श्रीमती) उमा रविचंद्रन्, पू. शेऊबाई लोखंडेदादी एवं पू. कुसुम जलतारेदादी की वंदनीय उपस्थिति थी ।
सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ने किया पू. वामनजी के संतत्व का रहस्यभेदन !
कार्यक्रम के आरंभ में चि. वामन की बाललीलाएं एवं उनके दैवीय गुणों का परिचय करानेवाली दृश्य-श्राव्य चक्रिका दिखाई गई और उपस्थित सभी से ‘इसे देखकर क्या लगता है ?’, यह पूछा गया । उसके पश्चात जनलोक से एक दैवीय बालक को जन्म लेने हेतु ईश्वर ने जिस परिवार का चयन किया, ऐसे आदर्श राजंदेकर परिवार का कु. वामन के संदर्भ में विशेषतापूर्ण मनोगत जानकर लेने हेतु सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ने उनके साथ संवाद किया । जब यह संवाद चल रहा था, तब कु. वामन की बाललीलाओं से वह कोई सर्वसाधारण बालक नहीं है, अपितु संत ही है, इसका बडी सहजता से रहस्यभेदन होता गया । सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी द्वारा परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का संदेश पढे जाने के पश्चात कु. वामन के माध्यम से ईश्वर द्वारा सनातन परिवार को दूसरे बालसंत प्रदान किए जाने का स्पष्ट हुआ ।
सम्मान समारोह से पहले सद्गुरुद्वयी को प्राप्त दैवीय अनुभूति !
समारोह आरंभ होने के कुछ ही समय पूर्व सद्गुरुद्वयी अर्थात सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी जिस कक्ष में सद्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी सेवा करती हैं, उस कक्ष में बैठी हुई थीं । उस समय उन्हें किसी बालक की दैवीय सुगंध आई । इस संदर्भ में सद्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी ने सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी से कहा, ‘‘आज वामन को संत के रूप में घोषित किया जाएगा । इस समारोह को देखने हेतु मानो दैवी जीव ही अवतरित हुए होंगे !’’ जब सद्गुरुद्वयी कार्यक्रमस्थल पहुंची, तब उन्हें यह ज्ञात हुआ कि पू. वामनजी के शरीर को सदैव ही दैवीय गंध आती है ।
पू. वामनजी को मानो परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की
अद्विवितीयता ज्ञात होने का दर्शानेवाली कुछ बाललीलाएं !
पू. वामनजी ने व्यासपीठपर गिरे एक पुष्प को गुरुदेवजी के
चरणोंपर समर्पित किया और सभी को अपनी आध्यात्मिक स्थिति दिखा दी !
१. जैसे ही परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी कार्यक्रमस्थलपर प्रवेश किया, वैसे ही पू. वामनजी विविध ध्वनियां निकालकर उनका प्रत्युत्तर कर रहे हैं, यह ध्यान में आ गया । वे परात्पर गुरुदेवजी की दिशा में स्वयं ही झपट रहे थे ।
२. जब समारोह चल रहा था, तब पू. वामनजी रेंगते-रेंगते परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के चरणों के पास जा रहे थे । उन्होंने वहां खेलते-खेलते ही व्यासपीठपर गिरे एक पुष्प को धीरे से गुरुदेवजी के चरणोंपर समर्पित किया ।
३. पू. वामनजी परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की आसंदी को पकडकर खडे रहकर उनसे संवाद करने का प्रयास कर रहे थे । इससे उपस्थित सभी को ऐसा लगा कि इससे वे परात्पर गुरुदेवजी के साथ पूर्वजन्म का कोई संबंध है’, यही दर्शा रहे हैं । पू. वामनजी को बिना कुछ बताए जानेपर भी विविध प्रसंगों से उन्होंने अपने अंतर से ही परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की अद्वितियता को पहचाना । पू. वामनजी जनलोक के जीव हैं तथा उनके जन्म से ही संत होने की तथा वे परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के लोककल्याणकारी हिन्दू राष्ट्र स्थापना से सर्वव्यापी कार्य से जुडे हुए हैं, इसकी प्रतिती इस बाललीला से सभी साधकों ने अनुभव की ।
भावसमारोह की क्षणिकाएं
१. पू. वामनजी की बाललीलाओं के संदर्भ में जब उनकी मां श्रीमती मानसी राजंदेकर सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी को जानकारी दे रही थीं, तब बीच-बीच में वे भी उनका प्रत्युत्तर कर रहे थे ।
२. पू. वामनजी को सम्मानित किए जाने के पश्चात वे उन्हें समर्पित पुष्पमाला के फूलों के साथ खेलने लगे । व्यासपीठपर फैले हुए फूलों से खेलते समय सद्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी को ऐसा प्रतीत हुआ कि समारोहस्थलपर देवी-देवता आकर पू. वामनजीपर पुष्पवृष्टि कर रहे हैं ।
३. समारोह में व्यासपीठपर सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी जब राजंदेकर परिवार से संवाद कर रहीं थीं तब उपस्थित सभी को तुलसी के समान सुगंध आई और वह बढती ही चली गई । इस समय ‘पू. वामनजी के गले के सामने से और पिछली बाजू से सुगंध आ रही है’, ऐसा ध्यान में आया । इस संदर्भ में एक संतजी ने कहा कि पू. वामनजी में श्रीकृष्णतत्त्व होने के कारण तुलसी की सुगंध आ रही है ।
४. पू. वामनजी के संत होने के संदर्भ में परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का संदेश पढे जाते समय सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी का भाव जागृत होने से उनके शब्द भी भावाश्रुओं से गदगद थे ।
५. श्री. विनायक शानभाग ने महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की ज्योतिष विभाग प्रमुख ज्योतिष फलित विशारद श्रीमती प्राजक्ता जोशी द्वारा पू. वामनजी के संदर्भ में किया गया ज्योतिषशास्त्रीय विवेचन पढा । उसमें श्रीमती जोशी ने ‘कु. वामन १ वर्ष में संत बनेंगे’, यह भविष्यवाणी की थी । महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के ज्योतिषकुशल श्री. राज कर्वे ने पू. वामन के संदर्भ में बताया था, ‘‘कु. वामन में देवता एवं संतों के प्रति आकर्षण होगा, उसे संतों का सान्निध्य प्राप्त होगा और उसे कीर्ति प्राप्त होगी । वामन एक सर्वगुणसंपन्न एवं दैवीय बालक है ।’’
६. कु. मधुरा भोसले ने बताया, ‘‘मेरे मन में यह विचार आए कि वामन केवल दैवी बालक नहीं, अपित वह संत है और परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी उसके संत होने के संदर्भ में शीघ्र ही घोषणा करेंगे ।’’
७. श्री. विनायक शानभाग ने समारोह का भावपूर्ण सूत्रसंचालन किया । तब ‘वे सूत्रसंचालन नहीं कर रहे हैं, अपितु गुरुदेवजी के चरणों में आत्मनिवेदन कर रहे हैं’, ऐसा लग रहा था ।
८. कुछ ही सप्ताह पूर्व श्री. अनिरुद्ध राजंदेकर का परिवार पूर्णकालीन सेवा हेतु गोवा में निवास कर रहा है । श्री. अनिरुद्ध भी शीघ्र ही पूर्णकालीन साधक बननेवाले हैं । जहां यह संपूर्ण परिवार ही अध्यात्म की दिशा में अग्रसर है, ऐसे में ही गुरुदेवजी ने इस परिवार को आनंदपूर्ण भेंट दी है । इसके कारण संपूर्ण परिवार के मुखपर अत्यंत कृतज्ञता प्रतीत हो रही थी ।
९. उपस्थित सद्गुरु, संत और साधकों ने इसका अनुभव किया कि आजतक आश्रम के कलामंदिर में संपन्न कई संतसम्मान समारोह के समय सर्वत्र आनंद ही आनंद फैला है ।