सारणी
- १. संवत्सरारंभके साथही वर्षारंभदिन का अतिरिक्त एक विशेष महत्त्व
- २. चैत्र शुक्ल प्रतिपदाके दिन तेजतत्त्व एवं प्रजापति तरंगें अधिक मात्रामें कार्यरत रहती हैं
- ३. ध्वजारोपण अर्थात् ब्रह्मध्वज खडा करनेकी एक चित्रफीत द्वारा
- ४. नीमके पत्तोंका प्रसाद एवं उनकी सूक्ष्म स्तरीय प्रक्रिया
- ५. प्रत्यक्ष ध्वजपूजनकी कृति
- ६. ध्वज खडा करनेके परिणाम
१. संवत्सरारंभके साथही वर्षारंभदिनका अतिरिक्त एक विशेष महत्त्व
२. चैत्र शुक्ल प्रतिपदाके दिन तेजतत्त्व
एवं प्रजापति तरंगें अधिक मात्रामें कार्यरत रहती हैं
३. ध्वजारोपण अर्थात् ब्रह्मध्वज खडा करनेकी पद्धति
३.१ ब्रह्मध्वज अर्थात गुडी खडी करनेके लिए आवश्यक सामग्री
३.२ गुडी सजानेकी पद्धति
१. प्रथम बांसको पानीसे धोकर सूखे वस्त्रसे पोंछ लें ।
२. पीले वस्त्रको इस प्रकार चुन्नट बना लें ।
३. अब उसे बांसकी चोटीपर बांध लें ।
४. उसपर नीमकी टहनी बांध लें ।
५. तदुपरांत उसपर शक्करके पदकोंकी माला बांध लें ।
६. फिर (फूलोंका हार) पुष्पमाला चढाएं ।
७. कलशपर कुमकुमकी पांच रेखाएं बनाएं ।
८. इस कलशको बांसकी चोटीपर उलटा रखें ।
९. सजी हुई गुडीको पीढेपर खडी करें एवं आधारके लिए डोरीसे बांधें।
३.३ ब्रह्मध्वजको सजानेके उपरांत उसके पूजनके लिए आवश्यक सामग्री
४. नीम के पत्तों का मिश्रण
यह मिश्रण बनाने के लिए नीम के पत्ते, नीम के फूल, काली मिर्च, हींग, नमक, ओवा, चीनी आदि को पीसे, इमली के साथ मिलाए तथा उसके उपरांत ग्रहण करें ।
जो यजमान है उसे रोगशांति, व्याधियों का विनाश और सुख, ज्ञान, जीवन, लक्ष्मी (धन) प्राप्ति के लिए इसे ग्रहण करने के लिए कहा जाता है ।
(संदर्भ और इसे बनाने की विधि संवत्सर के पंचग में उद्धृत हैं।)
नीमके पत्तोंसे बने मिश्रण की सामग्री में इस दिन जीवोंके लिए आवश्यक ईश्वरीय तत्त्वों को आकृष्ट करने की क्षमता अधिक होती है ।
यह समझने के लिए एक-एक प्रकार के तरंगों की प्रक्रिया पूर्णरूपसे दर्शाई गई है । इस प्रक्रियाको अब हम समझ लेते हैं..
अ. नीमके पत्तोंका मिश्रण
१. मिश्रणमें ईश्वरसे शक्तिका प्रवाह आकृष्ट होता है ।
२. उसमें कार्यरत मारक शक्तिका वलय निर्माण होता है ।
३. तेजतत्त्वात्मक शक्तिके कण भी उसमें निर्माण होते हैं ।
४. तेजतत्त्वात्मक तारक-मारक शक्तिके कणोंका वातावरणमें संचार होता है ।
५. मिश्रणमें ईश्वरीय चैतन्यका प्रवाह आकृष्ट होता है ।
६. उसका वलय निर्माण होता है ।
७. इस चैतन्यके वलयद्वारा चैतन्यके प्रवाहोंका वातावरणमें प्रक्षेपण होता है ।
८. ईश्वरसे आनंदका प्रवाह मिश्रणमें आकृष्ट होता है ।
९. इस आनंदका मिश्रणमें वलय निर्माण होता है ।
यह मिश्रण ग्रहण करनेसे व्यक्तिके देहमें आनंदके स्पंदनोंका संचार होता है ।
५. प्रत्यक्ष ध्वजपूजनकी कृति
१. सूर्योदयके ५-१० मि. उपरांत ध्वजपूजन आरंभ करनेके लिए पूजक पूजास्थलपर रखे पीढेपर बैठे ।
२. प्रथम (वह) आचमन करे ।
३. उपरांत प्राणायाम करे ।
४. अब देशकालकथन करे ।
५. उसके उपरांत ध्वजापूजनके लिए संकल्प करे ।
अस्मिन प्राप्ते, नूतन संवत्सरे, अस्मत गृहे, अब्दांतः नित्य मंगल अवाप्तये ध्वजारोपण पूर्वकं पूजनं तथा आरोग्य अवाप्तये निंबपत्र भक्षणं च करिष्ये ।
अब गणपतिपूजन करें ।
६. तदुपरांत कलश, घंटा एवं दीपपूजन करें ।
७. तुलसीके पत्तेसे संभार प्रोक्षण करें; अर्थात पूजा सामग्री, आस-पासकी जगह तथा स्वयंपर तुलसीपत्रसे जल छिडकें ।
८. अब ‘ॐ ब्रह्मध्वजाय नमः ।’ इस मंत्रका उच्चारण कर ध्वजापूजन आरंभ करें ।
९. प्रथम चंदन चढाएं ।
१०. तदुपरांत हलदी कुमकुम चढाएं ।
११. अक्षत समर्पित करें।
१२. पुष्प चढाएं ।
१३. इसके उपरांत उदबत्ती दिखाएं ।
१४. तदुपरांत दीप दिखाएं ।
१५. नैवेद्य निवेदित करें ।
१६. अब इस प्रकार प्रार्थना करें ।
ब्रह्मध्वज की पूजा विधि पढें https://www.sanatan.org/hindi/a/20524.html
ब्रह्मध्वज नमस्तेस्तु सर्वाभीष्ट फलप्रद । प्राप्तेस्मिन् वत्सरे नित्यं मद्गृहे मंगलं कुरू ।। |
पूजनके उपरांत परिजनोंके साथ प्रार्थना करें ;
‘हे ब्रह्मदेव, हे विष्णु, इस ध्वजके माध्यमसे वातावरणमें विद्यमान प्रजापति, सूर्य एवं सात्त्विक तरंगें मुझसे ग्रहण हों । उनसे मिलनेवाली शक्ति तथा चैतन्य निरंतर बना रहे । इस शक्तिका उपयोग मुझसे अपनी साधना हेतु हो, यही आपके चरणोंमें प्रार्थना है !
१७. प्रार्थना करनेके उपरांत ध्वजाको चढाया गया नीमके पत्तोंका नैवेद्य वहां उपस्थित सभीमें प्रसादके रूपमें बांटें एवं स्वयं ग्रहण करें ।
६. ध्वज खडा करने के परिणाम
यहां एक बात का ध्यान रहे ब्रह्मध्वजमें शक्ति एवं चैतन्यकी निर्गुण तत्त्वकी तरंगे एकही समयपर आकृष्ट होती है । परंतु उनकी आगेकी प्रकिया समझनेके लिए प्रत्येक तरंगोके लिए जानकारी पूर्ण रूपसे दर्शाई गई है । व्यक्तिद्वारा भावपूर्ण रितीसे तथा सेवाभाव की वृत्तीसे ब्रह्मध्वजको खडा करनेसे उनके अनाहत चक्रके स्थानपर भावका वलय निर्माण होता है । सेवाभावके कारण व्यक्तिका ईश्वरसे संधान साध्य होता है । ईश्वरसे चैतन्यका आशीर्वादस्वरूप प्रवाह वहां उपस्थित व्याक्तियोंकी ओर आकृष्ट होता है । उनके आनहत चक्रके स्थानपर चैतन्यका वलय निर्माण होता है । ब्रह्मांडमंडलसे तेजतत्त्वामक शक्तिका प्रवाह ध्वजमें आकृष्ट होता है । ब्रह्मध्वजमें प्रयुक्त कलशमें शक्तिका वलय निर्माण होता है । वस्त्रमें तारक शक्तिकी तरंगे प्रसारित होती है । बासमें भी शक्तिका प्रवाह आकृष्ट होता है । मारक शक्तिके कण संचारित होते है । ईश्वरीय चैतन्यका प्रवाह कलशमें आकृष्ट होता है । इस कलशमें चैतन्यका वलय निर्माण होता है । ब्रह्मध्वजमें प्रयुक्त बासमें चैतन्यका प्रवाह आकृष्ट होता है । शक्ती स्वरूप चैतन्यके कण ब्रह्मांडसे भूमीकी ओर संचारित होते हैं । परमेश्वरीय निर्गुण तत्त्व कलशमें आकृष्ट होकर उसका एक स्थिर वलय निर्माण होता है । अनिष्ट शक्तियोंद्वारा ब्रह्मध्वजपर आक्रमण करने का प्रयत्न होता है । पूजाविधीके उपरांत प्रक्षेपित शक्तिके कारण ये अनिष्ट शक्तियां दूर हटती है । इस प्रकार भावपूर्ण रितीसे ध्वज खडा करते ही उसमें सूक्ष्म स्तरपर पर गतिविधियांआरंभ होती हैं । ईश्वरीय तरंगे उसकी ओर आकृष्ट होने लगती हैं ।
संदर्भ – सनातनका ग्रंथ ‘त्यौहार, धार्मिक उत्सव एवं व्रत’