रामायणकालीन संस्कृति की ऐतिहासिक धरोहर
का महत्त्व जागतिक स्तर पर सिद्ध होने पर भी भारतीय
राज्यकर्ताआें द्वारा उसकी उपेक्षा करना, एक हिन्दूद्वेषी कर्म !
भारत के उद्योग, विविध संस्थाएं, विश्वविद्यालय, सर्व राजनीतिक पक्ष, समाचारपत्र एवं राज्यकर्ताआें द्वारा रामसेतु एवं लोणार की ऐतिहासिक धरोहरों के जतन और संशोधन की ओर निरंतर अनदेखी हो रही है। दूसरी ओर संसारभर की दिग्गज वैज्ञानिक संस्थाएं विविध शोध कर रामायणकालीन संस्कृति और ऐतिहासिक धरोहर के प्रमाण बार-बार संसार के सामने रख रही हैं । उनमें से कुछ प्रमाण आगे दिए अनुसार हैं ।
रामेश्वरम से लाया रामसेतु का पत्थर पानी में तैर रहे इस पत्थर
का वजन ४ किलो है तथा उसके आसपास के उससे कम वजन के पत्थर जल के नीचे डूबे हुए हैं ।
का वजन ४ किलो है तथा उसके आसपास के उससे कम वजन के पत्थर जल के नीचे डूबे हुए हैं ।
१. इस्रो और नासा इन संस्थाआें द्वारा सिद्ध किए अंतरिक्ष शोध ब्यौरे के अनुसार रामसेतु मानव-निर्मित है ।
२. लोणार (महाराष्ट्र) के जलविवर और रामसेतु की चित्रफीत (वीडियो) और जांच ब्यौरे के अनुसार वैज्ञानिक दृष्टि से रामायणकाल ७ सहस्र ३०० वर्षों से अधिक प्राचीन है । यहां के जलविवर अशनीपात ने बनाए हैं ।
३. नासा, इस्रो, बीएआरसी, नियॉट, जीयोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया और गल्फ ऑफ मन्नार मरीन बायोस्फीयर रिजर्व, इन संस्थाआें ने रामायणकालीन संस्कृति के ऐतिहासिक प्रमाणों के विषय में शोध करने के लिए मन्नार के दक्षिणपूर्व एशिया के सबसे बडे जलक्षेत्र के विविध स्तरों का निरीक्षण किया । उनके निरीक्षण के अनुसार वहां के जीव, वनस्पतियां, प्रजनन, प्रवाल प्रक्रिया आदि का संबंध सीधे रामायणकाल से मिलता जुलता है । १० सहस्र ५०० वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में दिखाई देनेवाली वनस्पतियां और जीवसृष्टि में से ३ सहस्र ६०० बातें रामायणकालीन जीवसृष्टि के समान हैं । रामायणकालीन जीवसृष्टि के समान बातें निम्नांकित हैं ।
- घास की प्रजातियां : ११
- जलचर प्राणियों की प्रजातियां : १४७
- मत्स्य प्रजाति : ४५०
- सीप के भीतर की जीवसृष्टि : ७९
- अन्य विविध जीवसृष्टि : ४६०