१. बुद्ध
यज्ञादि श्रौत-स्मार्त कर्म अनाधिकारी दानवों के हाथ में जाने पर अनाचार होने लगा । उस समय भगवान बुद्ध ने अवतार धारण कर दानवों से विवाद किया और मोहित कर उन्हें यज्ञ से परावृत्त किया ।
एवं बुध्यत बुध्यध्वं बुध्यतैवमितीरयन् ।
मायामोहः स दैत्येयान् धर्ममत्याजयन्निजम् ॥ – विष्णुपुराण, अंश ३, अध्याय १८, श्लोक २०
अर्थ : बुध्यत (जानिए), बुध्यध्वम् (समझ लें), बुध्यत (ध्यान दें) आदि शब्दों द्वारा मायामोह से (भगवान बुद्ध ने) दैत्यों को (यज्ञ के अनाधिकारियों को) उपदेश कर उनके चंगुल से धर्म को मुक्त किया ।
श्रीविष्णु के नौवें अवतार, बौद्ध धर्म संस्थापक गौतम बुद्ध से भिन्न हैं । इसकी कारणमीमांसा आगे दी है । इससे समझ में आएगा कि, श्रीविष्णु ने ही अवतार धारण कर बौद्ध धर्म की स्थापना की, यह धारणा कितनी अयोग्य है ।
२. भगवान बुद्ध और गौतम बुद्ध में भेद
भगवान बुद्ध ही गौतम बुद्ध हैं, इस धारणा के कारण –
अ. अमरकोश नामक संस्कृत समानार्थी शब्दों के कोश में लिखा है कि भगवान बुद्ध व गौतम बुद्ध के नाम समानार्थी हैं । इसके साथ अमरकोश का सर्वत्र प्रसार होने से ऐसी धारणा हुई कि दोनों व्यक्ति समान हैं ।
आ. भगवान बुद्ध और गौतम बुद्ध, दोनों का गोत्र गौतम था ।
इ. अग्निपुराण में भगवान बुद्ध का ध्यान दिया है । इसमें भगवान बुद्ध की मूर्ति का वर्णन दिया है । आगे बौद्ध धर्मियों ने गौतम बुद्ध की मूर्तियां इसी वर्णनानुसार बनाईं, इसलिए दोनों बुद्धों की मूर्तियां समान हुईं ।